Get Will Registered : वसीयत को पंजीकृत करवाया जाए, तो भविष्य में विवाद की संभावना बहुत कम!
Indore : वसीयत करने का अर्थ मरना नहीं है। इसके विपरीत वसीयत वह घोषणा है जो व्यक्ति अपनी संपत्ति अपने बाद अपने वारिसों अथवा अपने परिवार के व्यक्तियों में विभाजित करना चाहता है। यह बात पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं उच्च न्यायालय अभिभाषक संघ के पूर्व अध्यक्ष विनय झैलावत ने लायंस क्लब, इंदौर सिटीजन के सदस्यों को वसीयत विषय पर संबोधित करते हुए कही। कोई भी कानून यह नहीं कहता है की वसीयत पंजीकृत होना चाहिए। लेकिन, विवाद की दशा में पंजीकृत वसीयत को अधिक महत्व दिया जाता है ।इसलिए प्रयास करें कि वसीयत पंजीकृत ही हो।
उन्होंने कहा कि दुनिया में सबसे सुखी व्यक्ति वह है जिसके पास संपत्ति और धन आवश्यकता अनुसार ही हो तथा जिनकी संतान भी कम हो। विनय झैलावत ने कहा कि इससे परिवार में विवाद कम होंगे तथा सुख शांति से पिता की संपत्ति आसानी से विभाजित हो सकेगी। उन्होंने कहा कि वसीयत के बारे में कोई कानून नहीं है, जिससे यह तय हो सके की वसीयत का प्रारूप कैसा होना चाहिए। वसीयत में सरलता से अपनी संपत्ति के पूरे विवरण का उल्लेख किया जाना चाहिए। इसके साथ ही संपत्ति किसको प्राप्त होगी इसका भी स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिए। साथ ही उस निष्पादक व्यक्ति के हस्ताक्षर भी होना चाहिए जो वसीयत निष्पादित कर रहा है। इसके अलावा दो साक्षियों के हस्ताक्षर भी वसीयत में होना चाहिए।
विनय झैलावत ने बताया कि अल्फ्रेड वन हार्ड नोबेल स्वीडिश रसायन शास्त्री थे। उन्होंने डायनामाइट के आविष्कार किया था। वह हथियार डीलर भी थे ।अंतिम समय में वे पक्षाताप से पीड़ित थे। उन्हें यह लगता था कि उन्हें मृत्यु के संरक्षक के रूप में याद ना किया जाए। इसलिए उन्होंने वसीयत की और परिवार और फाउंडेशन के बीच अपनी संपत्ति को विभाजित किया। उनका उद्देश्य रसायन विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य, भौतिक और शांति की क्षेत्र में मानवता के लिए उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित करने का नोबेल पुरस्कार घोषित किया ।उस वसीयत से आज भी नोबेल पुरस्कार यथावत वितरित किए जाते हैं तथा अत्यंत ही सम्मानित है।
झैलावत ने बताया कि वसीयत के संबंध में कोड़ीसील का भी अपना महत्व है। इसके द्वारा वसीयत में आवश्यक चीजों को जोड़ा जा सकता है। यदि निष्पादक व्यक्ति चाहे तो पुरानी वसीयत को निरस्त करके नई वसीयत भी बनाई जा सकती है। झैलावत में यह भी कहा की कोई भी व्यक्ति जो स्वस्थ सक्षम हो वह व्यक्ति वसीयत निष्पादित कर सकता है। लेकिन ऐसी वसीयत धोखाधड़ी अथवा दबाव में नहीं होना चाहिए। भारत में वयस्कता की उम्र 18 वर्ष मानी जाती है। यदि किसी मामले में यह कहा जाए कि वह निष्पादक व्यक्ति पागल है तो उसके विषय में यह देखा जाएगा कि जिस अवधि में वसीयत निष्पादित की गई थी उस अवधि में वह स्वस्थ था अथवा नहीं। वसीयत में निष्पादक के हस्ताक्षर होना चाहिए तथा दो गवाह के हस्ताक्षर भी होने चाहिए, जिनके समक्ष निष्पादक ने हस्ताक्षर किए हों। संपत्ति का पूरा विवरण और इन संपत्तियों को जिन व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए उनका उल्लेख होना चाहिए।
वसीयत के मामले में निष्पादक अपने जीवनकाल में संपत्ति का उपयोग, उपभोग कर सकता है तथा वह वसीयत जीवनकाल के बाद ही लागू होगी। उन्होंने यह जानकारी भी दी कि रजिस्ट्रार ऑफिस में भी वसीयत को रखा जा सकता है तथा निष्पादक की मृत्यु के पश्चात उसे रजिस्ट्रार ऑफिस से लेकर खोला जा सकता है। विनय झैलावत ने बताया कि निष्पादक यदि चाहे तो वसीयत की संपत्ति का वितरण उसकी इच्छा अनुसार हो तो वह इसके लिए एक ऐसे व्यक्ति को भी एग्जीक्यूटिव के रुपए नियुक्त कर सकता है जो उसकी भावना के अनुरोध संपत्ति का वितरण करवाने में मदद करें।
झैलावत ने बताया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 30 के संदर्भ में कोई भी हिंदू वसीयत या आने वसीयत स्वभाव के दस्तावेज जैसे पारिवारिक न्यास विलेख, मंदिरों के प्रबंधन के अधिकार का आवंटन आदि किसी भी संपत्ति का निपटारा कर सकता है, जो उसके द्वारा इस अधिनियम के प्रावधानों में या किसी अन्य कानून के अनुसार वह इसको निपटने में सक्षम हो।
झैलावत ने बताया कि यदि कथित वसीयत में संपत्ति के निपटान का कोई संदर्भ नहीं है, बल्कि केवल एक उत्तराधिकार का प्रावधान है अथवा संपत्ति के लिए एक प्रबंधक नियुक्त किया गया है तो, उसे वसीयत नहीं माना जा सकता है ।संपत्ति अभिव्यक्ति को किसी भी अधिनियम में परिभाषित नहीं किया है। इसलिए व्यक्ति को उसे अभिव्यक्ति के सामान्य अर्थ के अनुसार चलना होगा। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि कोई भी संपत्ति अभिव्यक्ति द्वारा वसीयत के रूप में लिखी जा सकती है। वसीयत करता संपत्ति के निपटान के संबंध में घोषणा कर सकता है तथा उस का उद्देश्य उनकी मृत्यु के बाद प्रभावित होना चाहिए ।यदि घोषणा को तुरंत लागू करना है तो वह वसीयत नहीं है। वसीयत का सार यह है कि इससे निष्पादन करता के जीवनकाल के दौरान निष्पादित किया जाना चाहिए।
विनय झैलावत ने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि आपकी उम्र कोई भी हो लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए वसीयत जरूर करें ताकि आपका 100 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी परिवार में संपत्ति को लेकर विवादों से बचा जा सके। उन्होंने यह भी आग्रह किया की वसीयत पंजीकृत करवाई जाना चाहिए, ताकि उसका महत्व विवाद की दशा में अधिकतम रहे। झैलावत ने अपने उद्बोधन के पश्चात सदस्यों की समस्याओं और उनके सवालों के जवाब भी दिए और उनकी समस्याओं का समाधान किया। संस्था के अध्यक्ष कुशल खराबियां एवं सचिव से जाय आहूजा ने झैलावत का स्वागत किया एवं सदस्यों का आभार माना।
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