Hindi Diwas 2023: भारत में हिंदी की वर्तमान स्थिति, लेखकों के साथ ही प्रकाशकों की भीड़ ने हिन्दी के सारे मानक तोड़ दिये!

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Hindi Diwas 2023: भारत में हिंदी की वर्तमान स्थिति, लेखकों के साथ ही प्रकाशकों की भीड़ ने हिन्दी के सारे मानक तोड़ दिये!

Hindi Diwas 2023: हिंदी भाषा विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है. हिंदी (Hindi) को भारत की पहचान के रूप में भी देखा जाता है. पूरे देश में 14 सितम्बर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस (national hindi day) मनाया जाता है. ये दिन देश में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है. हमारे देश की आधिकारिक भाषा के रूप में जानी जाने वाली हिंदी भाषा आज विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 60. 22 करोड़ लोग हिंदी भाषा का उपयोग करते हैसंसद भवन में 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. इसके बाद से हर साल इस दिन को नेशनल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. वहीं राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की सिफारिश के बाद से 14 सितंबर 1953 से हिंदी दिवस मनाया जाने लगा. आपको बता दें कि पूरी दुनिया में विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को मनाया जाता है, इस तरह से भारत में दो बार हिंदी दिवस मनाया जाता है.  ,देवनागरी लिपि से उपजी हिन्दी भाषा का वर्तमान स्वरूप और भविष्य में उपयोगिता पर विचार आमंत्रित किए

ममता सक्सेना,संयोजक

” क्या साहित्य को सरल और सुलभ बनाने के लिये उसकी मर्यादाएं ही समाप्त कर दी जाएं?”

साहित्य में भाषा केवल भावों की अभिव्यक्ति ही नहीं, उसमें कलात्मकता, रोचकता, श्रृंगारिकता और चमत्कार की उपस्थिति, पाठक को बांधे रखने के लिए बहुत आवश्यक है।
छंद और अलंकार जहाँ काव्य का सौंदर्य बढ़ाते हैं, वहीं गद्य में भी व्याकरणिक दृष्टि से भाषा की कसावट लेखन को प्रभावी बनाती है. फिर चाहे वह वर्तनी संबंधी शुद्धि हो या वाक्य विन्यास की योग्यता , पाठक को लुभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

नई कविता में जहाँ, अभिव्यक्ति को प्रधान मानकर मन में उमढ़े भाव, ज्यों के त्यों गद्य रूप में रखने का चलन बढ़ा है, वहां यह तो समझना ही होगा, कि नई कविता में भी गद्यात्मकता के साथ एक क्रम, लय और रिदम् की आवश्यकता होती है ।

हिन्दी में अनेक छंद है। उनकी गणना और चमत्कारिक भाषा निश्चित रूप से दुरूह कार्य है जिसे अभ्यास द्वारा साधना असंभव भी नहीं .किन्तु अपनी सरलता के लिए लेखक, उन दुरूह छंदों से, इस तर्क के साथ दूरी बना लेता है, कि नई कविता की भावाभिव्यक्ति, सामान्य पाठक के मन के करीब होती है , और दुरूह छंदों को समझने वाले विशिष्ट सुधि पाठकों की संख्या लगभग गौण हैं ।
एक विचार जो सदा मन को उद्वेलित करता है – ” क्या साहित्य को सरल और सुलभ बनाने के लिये उसकी मर्यादाएं ही समाप्त कर दी जाएं?” “साहित्य के आवश्यक तत्व- भाव, कल्पना, विचार (बद्धि) और शैली के फ्रेम को तोड़ कर
उसे निरंकुश कर दिया जाए ?”
यह हर रचनाकार के लिए विचारणीय प्रश्न है।

इस  त्वरित संचार युग में, धैर्य और समय के अभाव की शिकायत बहुधा आम है।प्रश्न उठता है, कि आखिर लेखक ऐसा क्या लिखे, जिससे उसकी लेखन क्षुधा तो शांत हो ही, पाठक को भी एक गुणवत्तापूर्ण सामग्री प्राप्त हो ?
जो लेखक आत्म तुष्टि के लिए कलम चलाते हैं, वो कभी संतुष्ट होते हों, ऐसा लगता नहीं ; क्योंकि उनका मन पहले से, और अधिक बेहतर की खोज में सदैव निरत रहता है। वो अपने सृजन का बार-बार अवलोकन कर, उस पर चिंतन-मनन कर, भाषाई शब्द शुद्धता और अभिव्यक्ति की सशक्तता द्वारा, सुधारात्मक परिवर्तन के साथ ही, अच्छे साहित्य के अध्ययन के अभिलाषी भी होते हैं ।

लेखकों का दूसरा वर्ग जो स्वयं को स्थापित करने की शीघ्रता में, अपने मन में उपजे विचार, या कुछ इधर-उधर से सुनी-पढ़ी बातों को तुरत-फुरत लिखकर, लोगों तक पहुँचाने के लिए उतावला रहता है.
दुर्भाग्य यह कि रचना प्रकाशित हो जाने और मंचों पर सम्मान की तस्वीर खिंच जाने को ही वह अपना ध्येय मान बैठा है ।

यहाँ निश्चित रूप से प्रथम वर्ग का लेखक, अपने लेखकीय दायित्व का, सही अर्थों में, निर्वहन करता हुआ दिखाई देता है। जिसमें स्वयं संतुष्ट होने तक  न तो पाठक तक पहुँचने की शीघ्रता होती है, और न ही, यत्र-तत्र रचना प्रकाशित करने तथा सम्मान पा लेने का व्यर्थ अभिमान ।

लेखकों के साथ ही प्रकाशकों एवं संपादकों की भीड़ ने हिन्दी के सारे मानक तोड़ दिये हैं। अब सरस्वती पत्रिका के महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे सिद्धांत के पक्के और सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले संपादक कहाँ ?

फिर भी कहना चाहूँगी कि प्रयास सदैव जारी रहे; जो साहित्य के लोककल्याण के उद्देश्य को पूरा कर, साहित्य को उन्नति के शिखर तक पहुँचाने में मददगार साबित हो।आप सभी को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

                                                                                                             -वंदना राजीव दुबे
                                                                                                                धार, मध्यप्रदेश

          “हिंदी बोलने पर हमारे देश के कुछ लोग हेय दृष्टि से देखते हैं”

वर्तमान में हिंदी विश्व की तीसरी बोली जाने वाली भाषा है पर आज हमारे देश में स्थित कोई ज्यादा अच्छी नहीं है, सरकारे तो आती है, जाती है ।पर उनकी इच्छा शक्ति नहीं कि वह हिंदी को बढ़ावा दें और हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे।रकारी कामकाज आज भी अंग्रेजी में ही होता है ।
हिंदी बोलने पर हमारे देश के कुछ लोग हेय दृष्टि से देखते हैं क्योंकि वह अंग्रेजी बोलना ,लिखना, पढ़ना पसंद करते हैं और गर्वित होते हैं कि हमें अंग्रेजी आती है ।और इस तरह वह हिंदी बोलने वालों की अपेक्षा करते हैं।
टाइपिंग की समस्या क्योंकि इंग्लिश में टाइपिंग करना आसान होता है,
अंग्रेजी में मैं टाइपिंग के 26 लेटर्स ही होते हैं।
जबकि हिंदी में दोगुने अर्थात 43 वर्ण होते हैं साथ ही स्वर, व्यंजन की भी समस्या आ जाती है और इसीलिए टाइपिंग की समस्या आती है हिंदी मे।
न्यायालय में भी कमोबेश यही स्थिति है सारे व्यवहार अंग्रेजी में ही होते हैं। तीसरा बिंदु है कि जो बच्चे विदेश में पढ़ने जाते हैं या नौकरी के लिए जाते हैं उन्हें सारे व्यवहार अंग्रेजी में ही करने पड़ते हैं।
राज्यों की भी यही स्थिति है कुछ राज्यों में जहां हिंदी भाषा बोली व पढ़ी जाती है ,वहां तो सरकारी कार्य हिंदी में हो जाते हैं ।
पर कुछ राज्य ऐसे भी है जहां पर हिंदी बिल्कुल भी नहीं बोली जाती या पढ़ाई जाती और वहां सारे कार्य अंग्रेजी में किए जाते हैं‌
वस्तुतः यह सभी कारण हमारी हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा होने से रोकती है।
और सरकार यदि चाहे तो हिंदी को उपेक्षित होने से बचाएं ।तो वह दिन दूर नहीं जब हिंदी , हिंदी राष्ट्रभाषा बन जाएगी।

                                                                                                      संध्या राणे,

                              “एक ऐसी भाषा जिसका अपना विज्ञान है”

हिंदी भाषा एक ऐसी भाषा जिसका अपना विज्ञान है कोनसे वर्ण मुह के किस भाग से प्रस्तुत होंगे जैसे ओष्ठव दन्तव्य तालव्य आदि आदि विश्व की किसी भी भाषा का ऐसा अद्भुत विज्ञान नही है पर लोग विलायती उर्दू फारसी रशियन बोलने में अपने आपको बड़ा महसुस करते है ।और उन लोगो मे हम हिंदी भाषी भी सम्मिलित हो जाते है ।तभी आज इंग्लिश मीडियम के कुकुरमुत्तों की तरह स्कूल खुल गए हैं सँस्कृत ओर हिंदी को दरकिनार कर दिया है ।हम हर वर्ष हिंदी माह या सप्ताह मनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते है ।हमे चाहिए हम हर स्थान पर हिंदी में बात करें इसे अपने विचार विमर्श का माध्यम बनाये अहिदी भाषीनसे भी हिंदी में बात करे वह भारत मे रहता है तो हिंन्दी तो समझता ही है उसे हिंदी में समझाए ओर बोलने के लिए प्रेरित करे तो हम सच्चे अर्थों में हिंदीके प्रसार में अपना योगदान अंकित कर सकते है ।बस मेरा निवेदन है यदि हम अपनी माँ को माँ नही कहेंगे तो पड़ोसी मौसी नही कहेगा ।

                                                                                                       नवीन शर्मा

मुख्यमंत्री श्री चौहान करेंगे हिन्दी भाषा के साहित्यकारों को सम्मानित राष्ट्रीय हिन्दी भाषा सम्मान अलंकरण एवं कवि सम्मेलन 

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