कितने धारदार साबित होंगे, गुजरात में पाटीदार!!

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गुजरात में आने वाले महीनों में होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी ने प्रधानमंत्री के गुजरात दौरे के साथ शंखनाद कर दिया है। उसके बाद गुजरात के राजनीतिक तामनान में गर्माहट शुरू हो गई। इस दौरान मोदी ने सरदार पटेल सेवा समाज द्वारा निर्मित मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल का उद्घाटन किया है।  यह हास्पिटल राजकोट-भावनगर हाइवे पर 40 करोड़ रुपए की लागत से 200 बेड का अस्पताल बनाया गया है। दर असल इस अस्पताल का उद्घाटन महज एक औपचारिकता थी, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य को भी अच्छी तरह से समझा जा सकता है।
दो जून से गुजरात की सियासत में तब थोड़ी हलचल मची, जब कभी केन्द्र और भाजपा के मुखर आलोचक रहे हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का हाथ थाम लिया। देखा जाए तो गुजरात के राजनीतिक भारोत्तोलन पर हार्दिक पटेल के आने से भाजपा का पलड़ा कोई खास भारी नहीं हुआ! फिर भी वह इस बात पर संतोष कर सकती है कि 2024 के चुनाव में भाजपा जिस पटेल और पाटीदार समाज की पूंछ पकड़कर चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है, उसमें उसकी पकड़ भले ही पहले से ज्यादा मजबूत न हुई हो, लेकिन इस समूह को रूठा हुआ एक धडा उसने थाम लिया है। इससे अपने आपको अग्रिम मोर्चे पर मान सकती है। क्योंकि 2024 के चुनाव के केंद्र में पाटीदार समाज निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
प्रधानमंत्री दौरे के समय भाजपा की राज्य इकाई को आलाकमान से यह निर्देश मिले थे कि जितना ज्यादा हो सके इस कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न हिस्सों से पाटीदार समाज को इकट्ठा कर कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। वैसे तो भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि है कि यह जनकल्याण से जुड़ा कार्यक्रम था।  लेकिन, जानकारों का मानना है कि इसके ज़रिए भाजपा ने आने वाले चुनावों के लिए पाटीदार समुदाय के लोगों को सहलाने का काम ही किया है।
यदि  गुजरात के राजनीतिक इतिहास पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि चिमनभाई पटेल पहले पाटीदार मुख्यमंत्री थे। वह पहले जनता दल से और फिर कांग्रेस से मुख्यमंत्री बने। उनसे पहले के सभी मुख्यमंत्री व्यापारी और ब्राह्मण समुदायों से रहे। चिमनभाई पटेल के बाद बाबूभाई जशभाई पटेल दो बार मुख्यमंत्री बने और फिर केशुभाई पटेल और आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री बनीं। इन सभी ने पाटीदार समूह का नेतृत्व किया। लेकिन, बीच में भाजपा और पाटीदार समूह के बीच तनाव की स्थिति तब बन गई, जब भाजपा ने पाटीदार समूह की मांग को दरकिनार कर विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बना दिया था। तब से लेकर आजतक भाजपा पाटीदार समूह को मनाने की कोशिश में लगी है।
पाटीदार समाज ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं । उनके लिए भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस और अब तो ‘आप’ भी पलक पांवड़े बिछाकर बैठी है। हार्दिक पटेल के आने से भाजपा का उत्साह कुछ बढ़ा है और राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से मजबूत पाटीदार समूह को अपने पाले में लाने की दौड़ में फिलहाल भाजपा अपने प्रतिद्वंदी दलों से कुछ कदम आगे चल रही है। यदि संख्याबल की बात की जाए, तो इस समय गुजरात में पाटीदारों की संख्या 12% के लगभग है। वैसे तो गुजरात में आदिवासी आबादी लगभग साढे 15% प्रतिशत है, जो पाटीदारों से अधिक है। लेकिन, आदिवासी समाज राजनीति में इतने सक्रिय नहीं है, जितना पाटीदार। दूसरी बात यह है कि आदिवासी जहां समाज के पिछड़े और गरीब तबके से आते हैं, वहीं पाटीदार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर पर सबसे ताकतवर है।
गुजरात विधानसभा की ज्यादातर सीटों पर भी पाटीदार समाज ही काबिज है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों को मिलाकर पाटीदार समुदाय के 51 विधायक थे, जो किसी भी समुदाय के लिए बड़ी बात है। मौजूदा हालात यह है कि राजनीतिक पंडित यह कयास लगाने में जुटे हुए हैं कि क्या पाटीदार 2017 की तरह भाजपा से नाराज़ होकर पहले की तरह दूरियां बनाए रखेंगे और कांग्रेस से नहीं बल्कि गुजरात में पैठ बनाने को आतुर आम आदमी पार्टी (आप) को तरजीह देगे। आम आदमी पार्टी ने  इसके लिए कमर कस ली है। यही कारण है कि ‘आप’ ने राज्य में पार्टी की कमान युवा पाटीदार नेता गोपाल इटालिया को सौंपकर पाटीदारों की तरफ अपना हाथ बढ़ाया है।
वैसे तो गुजरात के सभी प्रमुख दल पाटीदार मतदाताओं को रिझाने के लिए अपनी अपनी रणनीति बना रहे हैं। फिर भी बिखरती कांग्रेस और असंगठित आम आदमी पार्टी को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है, कि चुनाव में अबकी बार भाजपा पाटीदारों को ख़ुश रख पाने में कामयाब हो जाएगी। जिस समय गुजरात में जय रूपाणी मुख्यमंत्री थे, तब पटेलों ने मुख्यमंत्री पद की मांग की थी और भाजपा इस मांग से संतुष्ट भी थी। इसी के चलते विजय रूपाणी समेत पूरे मंत्रिमंडल को हटा दिया गया है और राज्य की कॉमन पाटीदार समाज के सशक्त नेता भूपेंद्र पटेल को सौंपकर भाजपा ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है।

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भाजपा और पाटीदार समाज के बीच की खाई को भरने में नरेंद्र मोदी बहुत पसीना बहा रहे है। उमिया माता मंदिर का उद्घाटन हो या पाटीदारों द्वारा निर्मित अस्पताल का उद्घाटन, नरेंद्र मोदी कभी भी पाटीदारों के बीच आने का मौका नहीं छोड़ते। इस बार जब मौका मिला तो नरेंद्र मोदी ने पाटीदारों को सीघे संबोधित किया। इसके बाद हार्दिक पटेल को भाजपा मे जगह देकर संबंधों को सामान्य करने की जबरदस्त कोशिश की गई।
पाटीदार समाज के पास पास ज़मीन के अलावा व्यापार करने का कौशल है। वे सिर्फ़ किसान नहीं हैं। इसलिए हर राजनीतिक दल को उनसे बात करनी है। उनके पास एक बड़ा जनाधार भी है। उनके पास उद्योग हैं, स्कूल हैं। यानी कुल मिलाकर उनकी अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है। गुजरात का इतिहास गवाह है.कि पाटीदार जिस पार्टी के साथ रहे, वह चुनाव जीतती है। यही कारण है कि आजकल गुजरात की राजनीति सिर्फ़ पाटीदारों के इर्द-गिर्द घूम रही है। अब देखना यह है कि पाटीदार किस को अपनी नाव में बैठाकर राजनीतिक वैतरणी को पार करवाने का निर्णय लेते हैं।