
संस्मरण-1
जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की बात :जब गीले कपड़ों में पर्चा दिया !
बात उस समय की है जब मेरी एम ए फाइनल की परीक्षा चल रही थी। परीक्षा केंद्र हमारे घर से बहुत दूर था।मैं साइकिल से परीक्षा देने जाती थी ।तीसरे पेपर के समय जब मैं घर से साइकिल से निकली तब बादल छाए हुए थे। मुझे लगा कि मैं बारिश शुरू होने से पहले ही पहुंच जाऊंगी, लेकिन कुछ दूर जाते ही बारिश शुरू हो गई । मैं कहीं रुक भी नहीं सकती थी क्योंकि परीक्षा का समय हो रहा था।मैं भीगती हुई साइकिल चलाती रही। आंखों में आंसू, परीक्षा की चिंता और समय पर पहुंचने की हड़बड़ी ने मुझे निराश कर दिया था।

जब मैं परीक्षा केंद्र पहुंची तब पूरी भीग चुकी थी। आंसू रुक नहीं रहे थे।
परीक्षिका मैडम ने मुझे ढाढस बंधाया और ऑफिस से नैपकिन मंगा कर मुझे दिया ,लेकिन कपड़े तो गीले हो चुके थे।
मैंने उन्हीं गीले कपड़ों में पर्चा दिया।वो बारिश मैं आज तक भूल नहीं पाई हूं जिसने मुझे सिखाया कि मुसीबत कभी बता कर नहीं आती। हमें हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।उस दिन यदि मैं रेनकोट पहन कर जाती तो शायद मुझे परेशान नहीं होना पड़ता।वो बारिश एक सबक थी मेरे लिए।

अचला गुप्ता
इंदौर




