
अयोध्या में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर परिसर में सप्त मंदिरों के दर्शन कर आशीर्वाद लिया
डॉ. तेज प्रकाश व्यास की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री ने 25 नवंबर 2025 को अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि मंदिर परिसर के भीतर नवनिर्मित सप्त मंदिर (Sapt Mandir) में दर्शन और पूजा-अर्चना की। यह दर्शन ‘ध्वजारोहण उत्सव’ से ठीक पहले हुआ, जहाँ उन्होंने रामलला की पूजा की और मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वज को फहराया।आज अयोध्या में रामलला मंदिर के ध्वजारोहण अनुष्ठान से पूर्व मंदिर परिसर में सप्त मंदिरों के दर्शन कर आशीर्वाद लेने का सौभाग्य भी मिला। महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, महर्षि वाल्मीकि, देवी अहिल्या, निषादराज एवं माता शबरी के सप्त मंदिरों से वह बोध एवं भक्ति प्राप्त होती है, जो हमें प्रभु राम के चरणों के योग्य बनाती है।”
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहां विश्राम
सप्त मंदिर सात ऐसी पूजनीय विभूतियों को समर्पित है, जो भगवान राम के जीवन में महत्वपूर्ण गुरु, भक्त और साथी रहे। ये सात विभूतियाँ हैं:
महर्षि वशिष्ठ
महर्षि विश्वामित्र
महर्षि अगस्त्य
महर्षि वाल्मीकि
देवी अहिल्या
निषादराज गुहा
माता शबरी
आज अयोध्या में रामलला मंदिर के ध्वजारोहण अनुष्ठान से पूर्व मंदिर परिसर में सप्त मंदिरों के दर्शन कर आशीर्वाद लेने का सौभाग्य भी मिला। महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, महर्षि वाल्मीकि, देवी अहिल्या, निषादराज एवं माता शबरी के सप्त मंदिरों से वह बोध एवं भक्ति… pic.twitter.com/SkyS8BmYXD
— Narendra Modi (@narendramodi) November 25, 2025
सप्त पूजनीय विभूतियों का वर्णन है:
“सप्त मंदिरों के सभी सात ऋषियों एवं महा भागवतों की उपस्थिति से ही रामचरित पूर्ण होता है। महर्षि वशिष्ठ एवं महर्षि विश्वामित्र ने प्रभु रामलला के विद्याध्ययन की लीला पूरी कराई। महर्षि अगस्त्य से वन गमन के समय ज्ञान चर्चाएं हुईं एवं राक्षसी आतंक के विनाश का मार्ग प्रशस्त हुआ। आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने अलौकिक रामायण विश्व को प्रदान की। देवी अहिल्या, निषादराज एवं माता शबरी ने महान भक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया और हम प्रभु राम के उस समरस आदर्श से परिचित हो पाए, जिसमें उन्होंने खुद कहा है – कह रघुपति सुनु भामिनि बाता। मानउँ एक भगति कर नाता॥”
1. महर्षि वशिष्ठ
महर्षि वशिष्ठ भगवान राम के कुलगुरु (शाही गुरु) और रघुकुल के प्रमुख मार्गदर्शक थे। उन्हें सप्तऋषियों में से एक माना जाता है और वे राजा दशरथ के मुख्य सलाहकार भी थे। अपनी असाधारण ज्ञान, तपस्या और नैतिक दृढ़ता के लिए प्रसिद्ध वशिष्ठ जी ने ही राम और उनके भाइयों को वेदों, शास्त्रों और धर्म के सिद्धांतों की शिक्षा दी। उन्होंने राजा दशरथ को महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मार्गदर्शन किया और उनका सम्मान एक पिता तुल्य था। उनका जीवन मर्यादा, ज्ञान और धर्म की स्थापना का प्रतीक है, और वे सदैव राम के जीवन में उच्च आदर्शों के प्रेरणास्रोत रहे।
2. महर्षि विश्वामित्र
महर्षि विश्वामित्र एक प्रसिद्ध क्षत्रिय राजा थे, जिन्होंने घोर तपस्या के बल पर ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त किया। वे तपस्या की शक्ति और दृढ़ संकल्प के अद्भुत उदाहरण हैं। उन्होंने भगवान राम और लक्ष्मण को राक्षसों से यज्ञ की रक्षा के लिए अपने साथ लिया, जहाँ उन्होंने उन्हें दिव्यास्त्रों (Divine Weapons) और युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया। उन्हीं के मार्गदर्शन में राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध किया। विश्वामित्र ही राम और लक्ष्मण को मिथिला ले गए, जहाँ राम ने शिव का धनुष तोड़कर माता सीता से विवाह किया। इस प्रकार, वे राम के जीवन के आरंभिक वर्षों के महत्वपूर्ण गुरु रहे।
3. महर्षि अगस्त्य
महर्षि अगस्त्य एक महान ऋषि थे, जिन्हें दक्षिण भारत में वैदिक संस्कृति के प्रसार का श्रेय दिया जाता है। वे सप्तऋषियों में भी गिने जाते हैं। राम के वनवास काल में, वे उनसे गोदावरी नदी के तट पर स्थित पंचवटी में मिले थे। अगस्त्य मुनि ने ही राम को राक्षसों के आतंक से मुक्त कराने का संकल्प लेने और धर्म की स्थापना के लिए प्रेरित किया। उन्होंने राम को शक्तिशाली दिव्यास्त्र प्रदान किए, जिनमें भगवान सूर्य द्वारा दिया गया ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ भी शामिल था, जिसका उपयोग राम ने रावण के साथ अंतिम युद्ध से पहले किया था। उनका मार्गदर्शन राम के मिशन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था।
4. महर्षि वाल्मीकि
महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का आदिकवि (प्रथम कवि) माना जाता है और वे महाकाव्य ‘रामायण’ के रचयिता हैं। अपने पूर्व जीवन में ‘रत्नाकर’ नाम से जाने जाने वाले, उन्होंने गहन तपस्या के बाद ऋषि पद प्राप्त किया। उन्होंने सीता को अपने आश्रम में आश्रय दिया, जब राम ने उन्हें त्याग दिया था। उन्होंने राम के जुड़वाँ पुत्रों, लव और कुश को आश्रय दिया और उन्हें रामायण का पाठ पढ़ाया, साथ ही उन्हें शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान भी दिया। उनका योगदान न केवल एक महान कृति की रचना में है, बल्कि उन्होंने ही राम की कथा को अमरता प्रदान की।
5. देवी अहिल्या
देवी अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थीं, जिन्हें एक छल के कारण श्राप मिला और वे पत्थर में बदल गईं। वर्षों तक निराकार रूप में रहने के बाद, भगवान राम के चरण स्पर्श से उनका उद्धार हुआ और वे वापस अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त हुईं। यह घटना राम के वनवास के मार्ग में हुई और रामायण में इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और नैतिक प्रसंग माना जाता है। देवी अहिल्या की कथा हिंदू धर्म में शुद्धि, प्रायश्चित और मुक्ति का एक शक्तिशाली प्रतीक है। यह दर्शाती है कि भगवान के स्पर्श और उनकी करुणा से सबसे बड़ा श्राप भी दूर हो सकता है।
6. निषादराज गुहा
निषादराज गुहा श्रृंगवेरपुर के निषादों (नाविकों और मछुआरों) के राजा और भगवान राम के प्रिय मित्र थे। राम के वनवास जाने पर, जब वे गंगा नदी के तट पर पहुँचे, तो गुहा ने ही उन्हें सहर्ष आश्रय दिया और अपनी नाव में बिठाकर गंगा पार कराई। उन्होंने राम, सीता और लक्ष्मण की सेवा एक भाई के समान की और उनके प्रति अपनी अटूट भक्ति और मित्रता का प्रदर्शन किया। उनकी कथा जाति-भेद से परे निस्वार्थ प्रेम, भक्ति और सच्ची मित्रता के उच्चतम आदर्श को दर्शाती है। राम ने उन्हें अपने गले लगाकर समाज के सभी वर्गों के प्रति प्रेम और समानता का संदेश दिया।
7. माता शबरी
माता शबरी एक भीलनी (आदिवासी) भक्त थीं, जो अपने गुरु मतंग ऋषि के कहने पर वर्षों से भगवान राम की प्रतीक्षा कर रही थीं। राम जब उनके आश्रम में पहुँचे, तो शबरी ने उन्हें अत्यंत प्रेम और भक्ति से जूठे (चखकर मीठे) बेर खिलाए। राम ने उनके प्रेम को स्वीकार करते हुए उन बेरों को सहर्ष खाया। माता शबरी की भक्ति को शास्त्रों में ‘नवधा भक्ति’ (भक्ति के नौ मार्ग) का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि भगवान केवल हृदय की सच्ची भावना और अटूट भक्ति को देखते हैं, न कि व्यक्ति के सामाजिक या आर्थिक स्तर को।





