प्रसंगवश – विश्व गौरैया दिवस विशेष:इको सिस्टम बचाने में मददगार चिड़िया – उसे बचाना रहेगा बढ़िया

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प्रसंगवश – विश्व गौरैया दिवस विशेष:इको सिस्टम बचाने में मददगार चिड़िया – उसे बचाना रहेगा बढ़ियाIMG 20240320 WA0010

डॉ उर्मिला सिंह तोमर
( शिक्षा एवं पर्यावरणविद)
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(प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर )

चुन चुन करती आई चिड़िया, दाल का दाना लाई चिड़िया – – – यह घर – आंगन में गूंजते स्वर थे , बच्चे और बड़े , महिलाओं और पुरुषों को बहुत भाती रही थी गौरेया चिड़िया और पक्षियों की चहचहाहट , पर अब सब जैसे खो गया है , यकीनन इन सब परिवर्तन के पीछे की कहानियों में हमारी – आपकी मानव मात्र की भूमिका ही अधिक पाई गई है ।

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याद करें हम सभी का बचपन
इन्हीं चिड़ियों की चहचहाहटों के बीच बीता है , पर अब वह चिड़िया हमारे आंगन नहीं आती, वह चिड़िया गौरैया जो हमारे घर परिवार की सदस्य हुआ करती थी अब कहीं रूठ गई है हमसे,
और क्यों ना रूठ जाए सारे दरवाजे उसके लिए बंद हो गए हैं ।अब रोशनदान नहीं होते घरों में जहां वह अपने घोंसले बना लेती थी। पहले चिड़ियाएं बेधड़क घरों में आती थीं फोटो के पीछे अपना घोंसला बना लेती थीं घर के लोग इनके प्रति इतने संवेदनशील होते थे की कभी कोई उसको रोक-टोक नहीं करते थे। वह हमारे जीवन का अभिन्न अंग थी ऐसी-ऐसी जगह चिड़िया घोंसला बना लेती थी जहां कल्पना नहीं कर सकते बिजली के मीटर के पीछे भी यानी कहीं भी, अब उन्हें कोई गुंजाइश नहीं दिखती अब वे विरल हो गई हैं उनकी चहचहाट के बिना हमारे घर सूने हो गए हैं ।

एक सर्वे के मुताबिक शहरीकरण के चलते 70% से 80 % तक गौरैया खत्म हो गई हैं हमारे परिवेश और वातावरण से, वे हमारी मित्र थीं वह छोटे-छोटे हानिकारक कीड़े मकोड़े खाकर हमें उनसे सुरक्षित रखती थीं। हमारे खेतों के अनाज को सुरक्षित रखती थी जो कीट फसलों पर लग जाते हैं वह उन्हें चट कर जाती थीं इसीलिए सैकड़ो की संख्या में झुंड के झुंड में चिड़िया खेतों में देखी जाती थी अब वहां से भी चली गई हैं क्योंकि किसानों ने जहरीली विषाक्त दवाइयां कीटनाशक डाल कर उनके जीवन को खतरे में डाल दिया है, जबकि चिड़िया अनाज कण और लार्वा भक्षण कर प्रभावी कीट नियंत्रक साबित हुई है साथ ही पौधों के पराग कण स्थानांतरित करने में भी बड़ी संवाहक रही है । सबसे अहम बात तो यह प्रमाणित हुई है कि प्रकृति संतुलन बनाने में इनका योगदान कम नहीं आंका जा सकता ।

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कई कारकों के साथ बड़े-बड़े 4G – 5G के जो टावर लग रहे हैं इनका रेडिएशन पक्षियों के लिए जानलेवा है, पेड़ पौधों जंगल जमीन की कमी भी बढ़ी है , सीमेंट कंक्रीट के जंगल उगा रहे हैं हम प्राकृतिक संपदा मिटा रहे हैं हम ? इसीलिए इनके संरक्षण के लिए गौरैया दिवस मनाने की आवश्यकता पड़ी, और 2010 से प्रतिवर्ष 20 मार्च हम गौरैया के संरक्षण के लिए गौरैया दिवस मनाने लगे।
अब हालात ये होते जारहे हैं कि चिड़िया व अन्य पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त होती जारही है , वस्तुतः इन्हें बचाने की जरूरत है , वरना प्रकृति से खिलवाड़ सम्पूर्ण मानव मात्र को संकट में डालेगा ।

विचारणीय है प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने में मानव की भूमिका ही अधिक सामने आई है अपनी सुविधाओं , क्षुद्र स्वार्थों के चलते पशुओं – पक्षियों के प्रति अन्याय करते चल रहे हैं और भोग रहे हैं स्वयं आमंत्रित समस्याओं को ।
शस्त्र से मारने और घायल करने से बड़ा अपराध होरहा है जो इन चिड़ियाओं को बेधर करते जा रहे हैं ।
मज़ेदार तथ्य है कि हम अपने बच्चों को चिड़िया घर और प्राणी संग्रहालय ले जाते हैं और विभिन्न प्राणियों से रूबरू कराते हैं ऐसे में चिड़ियों के साथ बच्चों का मुस्कुराना और बतियाना हमें कितना भाता है , तो फिर क्यों न पुनः दुनिया बसाएं और नन्ही पीढ़ी को चिड़िया व पक्षियों के माध्यम से प्रकृति से जोड़ें ।

लेकिन मुझे ऐसा लगता है न जाने ऐसे अभी भी कितने लोग हैं जिन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है हम अपने बच्चों को आईटी कॉमर्स मैथ्स साइंस आदि पढ़ाते हैं सबको वही करना है फिर प्रकृति से प्रेम कौन करेगा ? हमारी बायोडायवर्सिटी की रक्षा कौन करेगा ? हम इतने संवेदनहीन कैसे हो गए ? क्यों हम घर के एक कोने में कहीं छोटा सा घोसला नहीं लगा देते, क्यों नहीं चिड़ियों के लिए पानी रख देते क्यों नहीं उनके लिए थोड़ा सा दाना एक मुट्ठी दाना ही तो खाती है चिड़िया। चिड़िया बहुत थोड़ा सा खाती है पर काम बड़ा करती है । एक मुट्ठी अनाज चिड़ियों और पक्षियों के लिए जरूर रखिए ।
अपने घर के आसपास कहीं भी झाड़ी ऐसी सुरक्षित जगह हो वहां 8 से 10 फीट की ऊंचाई पर एक घोंसला जरूर लगाइए। हाथ से बनाना सीखें बनाकर लगाइए ,बाजार से खरीद कर लगाइए उन्हें संरक्षण दीजिए फिर आने लगेगी वह रूठी हुई चिड़िया वह गौरैया हमारे अंगना में बस इतना ही कहना है। उनका पक्षियों का चहचहाना किसे खुशी नहीं देता। हमे अलार्म लगाने की जरूरत नहीं पहले पक्षियों की चहचहाहट से नींद खुलती थी ,पर हमनें खिड़कियां बंद कर ली हैं लोग इतनी जल्दी भूल जाते हैं कोरोना काल में कितने पक्षी आने लगे थे कितनी चिड़िया दिखने लगी थी लोगों ने प्रकृति की शरण में ही अपने आपको संभाला था। उस समय घर में कैद लोग पेड़ पौधे उगाने लगे थे, प्रदूषण और पक्षियों के लिए हमारे संवेदनहीनता ने हमें उस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब उन्हें बचाने की कवायदें हो रही है।

पर्यावरण बचाने के लिए नारों , प्रदर्शन और भाषण से अधिक छोटे छोटे स्तर पर , व्यक्तिगत स्तर पर और सामाजिक स्तर पर प्रयास की जरूरत है । केवल सरकारों के भरोसे न प्रदूषण थमेगा और न पर्यावरण में सुधार होगा , आज इस विश्व गौरेया दिवस पर चिड़िया को बचाने और बसाने का संकल्प लें तो आने वाला कल शुभ और मन को सुकून देने वाला हो सकता है , प्रयास करने ही होंगे ताकि आने वाली पीढ़ी को दिशा और दृष्टि मिल सकेगी ।