विपक्ष संग इंडिया या मोदी मय रहेगा भारत…!

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विपक्ष संग इंडिया या मोदी मय रहेगा भारत…!

आम चुनाव से नौ माह पहले 26 दलीय विपक्ष ने मोदी से पार पाने के लिए खुद को ही “इंडिया” बना लिया। इंडिया यानि इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस (आईएनडीआईए)। इस इंडिया शब्द के जरिए विपक्ष हर भारतीय के मन में यह मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने का मन बना चुकी है कि असल राष्ट्रवाद की भावना उनमें समाहित है। एक तरफ मोदी तो दूसरी तरफ इंडिया। अब इंडिया बनाम मोदी के मध्य संघर्ष का परिणाम हर भारतीय की उत्सुकता का केंद्र रहेगा। इंडिया के हाथों में इंडिया होगा या मोदी मय भारत रहेगा। विपक्ष की तड़प साफ जाहिर है। मोदी शासन के नौ साल ने विपक्षी खेमे में हलचल मचा दी है। पटना से बैंगलुरू होते हुए “इंडिया” अब मुंबई में एकत्र होकर सामूहिक संकल्प का दम भरेगा। 26 का दम किस तरह बम बनकर मोदी खेमे को तहस नहस कर पाता है या फुस्सी साबित होता है, यह नौ माह बाद साफ हो जाएगा। और तब 26 की असल परीक्षा होगी।

क्योंकि सामूहिक संकल्प यही है कि हम शासन के सार और शैली दोनों को बदलने का वादा करते हैं जो अधिक परामर्शात्मक, लोकतांत्रिक और सहभागी होगा। अगर यह अवसर नहीं मिला तब मोदी शासन का सार और शैली अपने उस संकल्प का विस्तार करेगी, जिसमें भारत को कांग्रेस मुक्त की जगह विपक्ष से मुक्त इंडिया ही लक्ष्य रहेगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि लोकतंत्र और देश को बचाने को सभी ने गठबंधन के एक नाम पर सहमति दी। यूपीए का नाम बदल कर ‘इंडिया’ रखा गया है। विपक्षी गठबंधन की अगली बैठक मुंबई में होगी। 11 सदस्यों की समन्वय समिति गठित की जाएगी। मुंबई में होने वाली बैठक चुनाव के लिए दिल्ली में नया सचिवालय भी बनाया जाएगा।

हालांकि संकल्प पत्र में कुछ नया नहीं है‌। वही सब है, जिसकी पीड़ा अलग-अलग मंचों पर कांग्रेस और विपक्ष व्यक्त करता रहा है। इसमें कांग्रेस का दर्द सबसे ज्यादा है। बैंगलुरू में 26 दलों के सामूहिक संकल्प  का सार यही है कि नौ साल में मोदी राज में देश रसातल में पहुंच गया है। विपक्षी दलों की बैठक की अध्यक्षता कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने की है। खास बात ये रही कि बैठक के बाद जब ‘आईएनडीआईए’ का संकल्प पत्र जारी हुआ, तो उसमें ‘कांग्रेस’ के एजेंडे की झलक साफ तौर पर दिखाई दी। जिन मुद्दों को लेकर कांग्रेस पार्टी, मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रही है, उन्हें ‘संकल्प’ पत्र में शामिल किया गया है। इतना ही नहीं, संकल्प पत्र में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के मुद्दे का भी पूरा ख्याल रखा गया है। विपक्षी खेमे के ये दोनों नेता, चुनी हुई सरकारों को केंद्र द्वारा राज्यपाल-एलजी के माध्यम से परेशान करने का मुद्दा उठाते रहे हैं। संकल्प पत्र में यह मुद्दा शामिल किया गया है। कांग्रेस पार्टी लंबे समय से धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और संघवाद पर बात करती रही है। कांग्रेस ने अपने 85वें राष्ट्रीय महाधिवेशन में उक्त मामलों को केंद्र में रखा था।

पार्टी के बयान में कहा गया, भारत का विचार, पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और संघवाद के लिए खड़ी है। कांग्रेस को वर्तमान ध्रुवीकृत राजनीति में केंद्र स्थान पर कब्जा करके राजनीतिक स्वरूप को फिर से परिभाषित करना चाहिए। मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर कांग्रेस ने भरपूर आवाज उठाई है। राहुल गांधी ने हिंसा ग्रस्त इलाकों में दो दिवसीय दौरा किया था। राहुल गांधी ने पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान कहा था, उनके लिए मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक महत्वपूर्ण नहीं थी। मणिपुर जलता रहा, लेकिन प्रधानमंत्री चुप रहे। कांग्रेस पार्टी ने कई बार कहा है कि मोदी सरकार में ईडी ने जिन राजनेताओं के यहां पर रेड की है या उनसे पूछताछ की है, उनमें 95 फीसदी विपक्ष के नेता हैं। इसमें सबसे ज्यादा रेड तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं के घरों और दफ्तरों पर की गई हैं। पार्टी ने आशंका जताई थी कि 2024 से पहले विपक्ष के अनेक नेता, केंद्रीय जांच एजेंसियों के जाल में फंस सकते हैं। संकल्प पत्र में कहा गया है कि सरकार द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ एजेंसियों का खुल्लम-खुल्ला दुरुपयोग कर हमारी राजनीति के संघीय ढांचे को जानबूझकर कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। गैर-भाजपा शासित राज्यों की वैध जरूरतों, आवश्यकताओं और अधिकारों को केंद्र द्वारा सक्रिय रूप से अस्वीकार किया जा रहा है।

तो बैंगलुरू का सार यही है कि हम, भारत के 26 प्रगतिशील दलों के हस्ताक्षरित नेता, संविधान में निहित भारत के विचार की रक्षा के लिए अपना दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हैं। हमारे गणतंत्र के चरित्र पर भाजपा द्वारा व्यवस्थित तरीके से गंभीर हमला किया जा रहा है। हम अपने देश के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। भारतीय संविधान के मूलभूत स्तंभों-धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, आर्थिक संप्रभुता, सामाजिक न्याय और संघवाद-को व्यवस्थित रूप से और खतरनाक रूप से कमजोर किया जा रहा है। हम मणिपुर को तबाह करने वाली मानवीय त्रासदी पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं। प्रधानमंत्री की खामोशी चौंकाने वाली और अभूतपूर्व है। मणिपुर को शांति और सुलह के रास्ते पर वापस लाने की तत्काल आवश्यकता है। हम संविधान और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य सरकारों के संवैधानिक अधिकारों पर जारी हमले का मुकाबला करने और उनका सामना करने के लिए दृढ़ हैं।

हमारी राजनीति के संघीय ढांचे को जानबूझकर कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। गैर-भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों और उपराज्यपालों की भूमिका सभी संवैधानिक मानदंडों से अधिक रही है। हम आवश्यक वस्तुओं की लगातार बढ़ती कीमतों और रिकॉर्ड बेरोजगारी के गंभीर आर्थिक संकट का सामना करने के अपने संकल्प को मजबूत करते हैं। विमुद्रीकरण अपने साथ एमएसएमई और असंगठित क्षेत्रों में अनकही दुर्दशा लेकर आया, जिसके परिणामस्वरूप हमारे युवाओं में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी आई। हम पसंदीदा मित्रों को देश की संपत्ति की लापरवाही से बिक्री का विरोध करते हैं। हमें एक मजबूत और रणनीतिक सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ एक प्रतिस्पर्धी और फलते-फूलते निजी क्षेत्र के साथ एक निष्पक्ष अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहिए, जिसमें उद्यम की भावना को बढ़ावा दिया जाए और विस्तार करने का हर अवसर दिया जाए। किसान और खेत मजदूर के कल्याण को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम अल्पसंख्यकों के खिलाफ पैदा की जा रही नफरत और हिंसा को हराने के लिए एक साथ आए हैं। महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और कश्मीरी पंडितों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए एवं सभी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए एक निष्पक्ष सुनवाई की मांग करते हैं। पहले कदम के रूप में, जाति जनगणना को लागू करें। हम अपने साथी भारतीयों को निशाना बनाने, प्रताड़ित करने और दबाने के लिए भाजपा की प्रणालीगत साजिश से लड़ने का संकल्प लेते हैं। नफरत के उनके जहरीले अभियान ने सत्तारूढ़ दल और उसकी विभाजनकारी विचारधारा का विरोध करने वाले सभी लोगों के खिलाफ द्वेषपूर्ण हिंसा को जन्म दिया है। ये हमले न केवल संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि उन बुनियादी मूल्यों को भी नष्ट कर रहे हैं, जिन पर भारत गणराज्य की स्थापना हुई है। हम राष्ट्र के सामने एक वैकल्पिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडा पेश करने का संकल्प लेते हैं।

तो संकल्प पत्र में वही सब कुछ है जो बातें कर्नाटक चुनाव के समय सामने आई, जो मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों के चुनावों में भी सामने आएंगीं। और लोकसभा चुनाव 2024 में 26 दलों के नेता एक मंच से नफरत-मौहब्बत सहित अन्य मुद्दों को उठाएंगे। विपक्षी इंडिया की बेचैनी और दर्द इतना ज्यादा है कि नौ माह की सामूहिक कोशिश भी दर्द और पीड़ा से राहत दे पाएगी या दर्द और पीड़ा में इजाफा कर मर्ज बढ़ाएगी, यह देखने वाली बात होगी। पूरे खेल में एक तरफ मोदी है तो दूसरी तरफ पूरा विपक्षी इंडिया। इधर यदि संकट में है तो सिर्फ मोदी का चेहरा और उधर दांव पर लगा है पूरा विपक्षी इंडिया। देखने वाली बात यही रहेगी कि इंडिया विपक्ष के हाथ जाएगा या मोदी के साथ रहेगा। शासन की सार और शैली बदलाव पर भरोसा करेगी या आगामी पांच साल के लिए मोदी सरकार के सार और शैली पर मुहर लगाएगी। पर यह बात सौ फीसदी सच है कि 2024 का लोकसभा चुनाव भारतीय राजनीति का ऐतिहासिक मोड़ साबित होगा…।