भारत का स्वर्ण युग- एक आधुनिक विश्लेषण

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भारत का स्वर्ण युग- एक आधुनिक विश्लेषण

भारत और भारतीय सभ्यता का अतीत निश्चित रूप से गौरवशाली और प्रतिभाशाली रहा है।सिन्धु घाटी की सभ्यता की विकसित नगर संरचना इसके समृद्ध सहायक ग्रामीण जीवन और उन्नत सामाजिक व्यवस्था का परिणाम थी। इसके पश्चात वेदों से अभी तक भारतीय संस्कृति की परंपरा सदैव अक्षुण्ण रही है। आध्यात्मिक संस्कृति के साथ-साथ भौतिक रूप से भी भारत का प्राचीन काल अत्यधिक सम्पन्न माना गया है। यह सर्वमान्य मान्यता इस कथन में झलकती है कि भारत में दूध-दही की नदियाँ बहती थीं। भारत के स्वर्णकाल की परिकल्पना मूल रूप से आर्थिक समृद्धि और सामाजिक स्थायित्व पर आधारित है।लगभग सभी इतिहासकार गुप्त-साम्राज्य काल को भारत का स्वर्णिम युग मानते हैं। यह काल 240 ई. से 550 ई. तक था। इस काल में महाभारत और रामायण को विहित किया गया तथा कालिदास, आर्यभट्ट, वराहमिहिर और वात्स्यायन जैसे विद्वान हुए।गुप्त काल में ही विज्ञान, राजनीतिक प्रशासन, वास्तुकला, मूर्तिकला और चित्रकला में अनेक उपलब्धियां प्राप्त हुईं।

आधुनिक युग में संचार माध्यमों के बढ़ने से देशों और सभ्यताओं के बीच में वैचारिक आदान प्रदान हुआ। वैज्ञानिक पद्धति से सभी विषयों के अध्ययन करने को बढ़ावा मिला। इतिहास के आंकलन और समीक्षा पर भी नई दृष्टि डाली गई। देशों और सभ्यताओं के आर्थिक इतिहास का भी अध्ययन किया गया जिससे किसी भी युग की समग्र स्थिति को समझा जा सके। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न कालों में GDP तथा जनसंख्या का आंकलन किया गया। GDP एक वर्ष में समस्त उत्पादित वस्तुओं (और सेवाओं ) का कुल मूल्य होती है। जनसंख्या का अनुमान होने पर प्रत्येक व्यक्ति की आय का आँकलन किया जा सकता है। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन ने अत्यधिक श्रम साध्य शोध के बाद आंकड़े एकत्र कर इतिहासकारों को एक नई सोच दी है। उनकी पुस्तक The World Economy: A Millennial Perspective का मैंने अध्ययन किया।

मैडिसन ने अपना अध्ययन ईसवी सन् के प्रारंभ से किया है, क्योंकि उसके पहले के आंकड़ों का आँकलन करना लगभग असंभव है। अपने शोध में उन्होंने भारत के इतिहास को तीन कालखंडों में बाँटा है। 1 ई. से 1000 ई. को उन्होंने हिंदू युग परिभाषित किया है। इस काल में उनके अनुसार भारत की GDP 33.75 अरब डॉलर थी जो पूरे विश्व की GDP की 32% थी। 1000 ई. से 1700 ई. तक उन्होंने भारत का मुस्लिम युग माना है और इसमें भारत की GDP 90.7 अरब डॉलर थी जो विश्व की 28.1% थी। तीसरा युग 1700 ई.से 1947 ई. तक ब्रिटिश युग था जिसमें भारत की GDP 222 अरब डॉलर थी और उसकी हिस्सेदारी विश्व की GDP में घटकर 24.4% रह गई।इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रथम सहस्त्राब्दी अर्थात हिन्दू युग में भारत की विश्व अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक हिस्सेदारी थी, जबकि मुस्लिम तथा ब्रिटिश युग में यद्यपि GDP बढ़ती गई परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था की विश्व में हिस्सेदारी कम होती गई। इस आधार पर हिन्दू युग ( जिसका एक भाग गुप्त-साम्राज्य है ) हमारा सर्वश्रेष्ठ काल था।

आइये उपरोक्त तीनों युगों की औसत जनसंख्या पर भी दृष्टि डालें जिससे प्रति व्यक्ति आय का आंकलन किया जा सके। मैडिसन की शोध के अनुसार हिन्दू युग में औसत जनसंख्या 7.5 करोड़ थी और इस आधार पर प्रति व्यक्ति आय 450 डॉलर थी। मुस्लिम युग में जनसंख्या बढ़कर 16.5 करोड़ हो गयी और प्रति व्यक्ति आय भी बढ़कर 550 डॉलर हो गयी। ब्रिटिश युग में जनसंख्या 35.9 करोड़ हो गई और प्रति व्यक्ति आय और बढ़कर 619 डॉलर हो गई। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय बढ़ती गई।

मैंने वित्तीय वर्ष 2022-23 के आंकड़ों की खोज बीन की। देश की वर्तमान GDP 3700 अरब डॉलर है।यह विश्व अर्थव्यवस्था की 7.1% है जो विश्व हिस्सेदारी में पूर्व की तुलना में बहुत कम है। परन्तु भारत की वर्तमान जनसंख्या 142 करोड़ के आधार पर प्रति व्यक्ति आय 2210 डॉलर है। यह प्रति व्यक्ति आय पूर्व की तुलना में गुणात्मक रूप से बहुत अधिक है। यह प्रति व्यक्ति आय विशाल जनसंख्या पर आधारित होने के कारण निर्धनतम व्यक्ति भी हमारे इतिहास में पूर्व की अपेक्षा कहीं अधिक सम्पन्न है । मैडिसन का अनुमान पूर्ण सत्य से कुछ दूर हो सकता है, परन्तु वे एक दिशा निर्धारित करते हैं।
आज का समय संभवतः हमारा स्वर्ण युग है !!