लोकतंत्र और ईमानदारी के बल पर ही निर्भर भारत की तरक्की
राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल इस समय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी , केंद्रीय जांच एजेंसियों के साथ सम्पूर्ण लोकतंत्र के ख़त्म होने तक के गंभीर आरोप लगा रहे हैं | शराब घोटाला हो अथवा अडानी की कंपनियों में गड़बड़ी और सरकार से प्रश्रय के मामलों पर अदालतों में सुनवाई और जांच चल रही है | चुनाव आयोग अथवा मीडिया की स्वतंत्रता जैसे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले केंद्र सरकार के लिए अनुकूल नहीं हुए | इसी तरह सरकारी जाँच एजेंसियों द्वारा पूछताछ के लिए बुलाने अथवा अदालत में पेश होते समय राहुल गाँधी या अरविन्द केजरीवाल के समर्थकों द्वारा सैकड़ों समर्थकों के साथ राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन क्या न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह की तरह दबाव का तरीका माना जा रहा है | यही नहीं सड़कों पर हजारों लोग क्या किसी तानाशाही व्यवस्था में सड़कों पर महीने भर से प्रधान मंत्री और सरकार को दिन रात गलियां देते हुए आंदोलन कर सकते हैं ? अख़बारों , टी वी चैनलों , सोशल मीडिया पर विभिन्न दलों के बड़े या अदने नेता बिना सबूतों के भी अनर्गल बयानबाजी क्या बिना लोकतंत्र के संभव है ? इसे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का दुरुपयोग ही कहा जाएगा |
राहुल गाँधी ने कांग्रेस के सत्ता काल में कोई पद नहीं लिया | अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री रहते हुए चतुराई से कोई विभाग अपने पास नहीं रखा , ताकि भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में उनके दस्तखत की कोई फाइल न मिले | लेकिन मोदी सरकार पर सबूतों के बिना वे गंभीरतम आरोप लगाते जा रहे हैं | यही नहीं देश विदेश में भ्रामक प्रचार से न केवल नई पीढ़ी भी भविष्य की चिंता को लेकर परेशान हो रही है , छवि बिगड़ने से भारत में भारी पूंजी लगाने के लिए उत्सुक विदेशी कंपनियां और प्रवासी भारतीय भी दुविधा में फंस रहे हैं | लोकतंत्र में मतभेद , असंतोष , राजनीतिक विरोध , आरोप – प्रत्यारोप , क़ानूनी कार्रवाई के साथ सामाजिक आर्थिक विकास स्वाभाविक है , लेकिन क्या कोई सीमा रेखा नहीं होनी चाहिए |
राहुल गाँधी और उनके अज्ञानी सहयोगी कम से कम अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के पचास सालों के भाषण , सम्मेलनों में कही गई बातों और संसद में अथवा बाहर भी विरोधी नेताओं के तीखे भाषणों का अध्ययन कर सकते हैं | आपात काल के अपवाद को छोड़कर लगभग सभी प्रमुख दलों , विचारों के नेता सत्ता और प्रतिपक्ष में रह चुके हैं | इंदिरा गाँधी को सत्ता से हटने के बाद कुछ दिन जेल भी जाना पड़ा , कितने छापे पड़े , लेकिन उन्होंने या उनके सहयोगियों ने लोकतंत्र ख़त्म होने का आरोप नहीं लगाया | बाद में वह और पार्टी सत्ता में आई , तो आंदोलनों से विरोध हुआ लेकिन यह किसी ने नहीं कहा कि लोकतंत्र ही ख़त्म हो गया | | जय प्रकाश नारायण , मोरारजी देसाई , चौधरी चरण सिंह , अटल बिहारी वाजपेयी , मधु लिमये , जॉर्ज फर्नांडीज जैसे नेता जेल में रहे , लेकिन बाद में सम्पूर्ण व्यवथा पर अनर्गल और अशोभनीय वक्तव्य नहीं देते रहे | किसानों और मजदूरों के लिए आज से कई गुना अधिक लाखों लोगों के प्रदर्शन दिल्ली में हुए हैं , लेकिन ऐसी अराजकता के साथ सीमाओं पर सडकों की हफ्तों की घेराबंदी , राजनीतिक अथवा परदेसी समर्थन से पांच सितारा सुविधाओं वाला आंदोलन दुनिया में देखने को नहीं मिल सकता है | भीड़ तो सामान्य लोगों को भ्रमित कर कोई अपराधी भी जुटा सकता है |
जहाँ तक भ्रष्टाचार की बात है , सम्पूर्ण व्यवस्था को भ्रष्ट करार देना भी निहायत अनुचित है | निश्चित रूप से निचले स्तर पर भ्रष्टाचार चल रहा है | राजनीति में धन बल महत्वपूर्ण हो गया | लेकिन सब बेईमान और भ्रष्ट नहीं हैं | युवाओं के साथ संवाद में मैं ऐसे मुद्दों पर नामों के साथ ध्यान दिलाता हूँ कि भारतीय राजनीति और समाज ईमानदार नेताओं , उनके सहयोगियों , अच्छे अधिकारियों, कानून और न्याय के रक्षक न्यायाधीशों के कन्धों पर ही सुरक्षित रहा है | डॉक्टर शंकरदयाल शर्मा और प्रकाश चंद्र सेठी जैसे ईमानदार नेताओं के आगे बढ़ाने से महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे थे | डॉक्टर शर्मा भी मुख्यमंत्री , केंद्रीय मंत्री , राज्यपाल , राष्ट्रपति तक रहे , लेकिन एक निजी दाग नहीं लगा | सेठीजी तो मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र में गृह , रक्षा , विदेश , पेट्रोलियम , रसायन , इस्पात सहित अधिकांश मंत्रालयों में दशकों तक मंत्री रहे , पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे | एक बार तो मैंने उनके सचिव के केबिन में बिड़लाजी तक को इन्तजार करते देखा | लेकिन सेठीजी ने कभी व्यक्तिगत लाभ नहीं लिया | मध्य प्रदेश के लोग जानते हैं कि जीवन के अन्तिंम वर्षों में उन्हें कितनी आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , इलाज तक के लिए मुश्किल से इंतजाम हुए | भागवत झा आज़ाद , मुरली मनोहर जोशी , कुशाभाऊ ठाकरे , सुन्दर सिंह भंडारी जैसे नेताओं ने अनेकानेक लोगों को तैयार किया | ईमानदारी के आदर्श प्रस्तुत किए |
इसी परम्परा में नरेंद्र मोदी तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बाद नौ वर्षों से प्रधान मंत्री हैं , लेकिन व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा | उनके साथ मंत्रिमण्डल में अमित शाह , राजनाथ सिंह , निर्मला सीतारमण , एस जयशंकर , किरण रिजूजी जैसे कई मंत्री हैं और उन पर भ्रष्टाचार कोई आरोप नहीं लगाया जा सका |इसी तरह विभिन्न दलों के कई महत्वपूर्ण सांसदों के नाम ईमानदार सूची में गिनाये जा सकते हैं | लोकतंत्र ऐसे लोगों के बल पर ही जीवित है और रहेगा | फिर भी यह तथ्य ध्यान रखना होगा कि सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था में सुधार के लिए सभी दलों और संस्थाओं को कुछ बदलाव करने होंगे | वर्षों से चुनावी खर्च पर अंकुश के लिए विभिन्न मंचों , चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट तक बहस होती रही है | लेकिन सारे नियम कानून के बावजूद खर्च कम होने के बजाय बढ़ रहा है | अब कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले ही टिकट और उम्मीदवारी के रेट करोड़ों में खरीद फरोख्त की बातें सामने आ रही हैं | महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्रों में बीस पच्चीस करोड़ तक खर्च की संभावनाएं बताई जा रही हैं | इसी तरह अंतिम समय में नेता दल बदल रहे हैं | यदि चुनाव में इतना खर्च होगा , तो चुने जाने के बाद क्या नेता या उसे सहायता करने वाले ब्याज सहित वसूली नहीं करेंगें ? सबसे दिलचस्प बात यह है कि दस साल पहले बनी पार्टी और उसके नेता भी चुनाव प्रचार और अन्य गतिविधियों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं | बाद में चाहे उनके भ्रष्टाचार के आरोप सामने आते रहें | इसी तरह गंभीर अपराधों में चार्जशीट हो चुके लोगों के उम्मीदवार बनने पर रोक के पुराने प्रस्तावों पर शीघ्र निर्णय की जरुरत है |
आलोक मेहता
आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
7 सितम्बर 1952 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।
प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान, राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।