Indore BRTS Demolish: नगर निगम,प्रशासन जो करे सो खरी

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Indore BRTS Demolish: नगर निगम,प्रशासन जो करे सो खरी

रमण रावल

अब इस पर तो चर्चा करने की तुक नहीं कि इंदौर के सीने पर BRTS क्यों तान दिया था और उस पर करीब 350करोड़ रुपये जो खर्च किया था, वह फिजूल रहा। अब तो बात इस पर होना चाहिये कि तीन महीने पहले मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी थी,तब मप्र उच्च न्यायालय का भी आदेश हो जाने पर इसे ताबड़तोड़,रातोरात ही हटाने की क्या आपात स्थिति बन गई थी ?

क्या नगर निगम व प्रशासन को अंदाज भी है कि इससे ई बसों में यात्रा करने वाले हजारों यात्रियों की किस बुरी तरह से फजीहत हुई है। बीआरटीएस और बस ही नहीं वे यात्री भी सड़क पर आ गये, जो बरसोबरस से इनके भरोसे थे। उनके आने-जाने के समय व बस निर्धा्रित थे। स्टापेज निश्चित थे। वे अब हतप्रभ हैं कि कहां खड़े रहें,कैसे टिकट मिलेगा, कब बस आयेगी,आयेगी भी या नहीं ?

27 फरवरी को अदालत का फैसला आता है और नगर निगम के जिम्मेदार,कानून के पालनहार,शहर के हितचिंतक प्रशासनिक अधिकारी वगैरह,वगैरह राकेट की गति से सक्रिय हुए और जो बीआरटीएस शहर के यातायात का सत्यानाश किये हुए था,जिसकी ओर से हर संबंधित जिम्मेदार ने अभी तक आंखें मूंद रखी थी-बिल्ली की तरह,उसने 28 फरवरी को चांदनी की पहली किरण के साथ घन,हथोड़े बरसाने प्रारंभ कर दिये। ऐसा लगा, जैसे सुबह की लालिमा छाने तक तो 11.5 किलोमीटर बीआरटीएस को ऐसे जमींदोज कर दिया जायेगा, जिसका अस्तित्व ढूंढना भी मुश्किल हो जायेगा।

इधर, एक मार्च की सुबह जब इंदौरवासी जागे तो क्या देखते हैं कि चंद कदमों की रैलिंग उखड़ी हुई है और बसें कॉमन लेने में घुसी हुई हैं। इन बसों से यात्रा जिनकी दिनचर्या थी, उन्हें सूझ ही नहीं पड़ रही थी कि जायें तो कहां और करें तो क्या ? वे रैलिंग के अंदर टिकट काउंटर तलाश रहे थे, बसों की बाट जोह रहे थे और उधर बसें सड़क के दायीं-बायीं और चल रही थीं।

यह समूची प्रक्रिया निहायत गैर जिम्मेदाराना,चलताऊ ढंग से की गई। न तो उन्हें मुख्यमंत्री डांट पिला रहे थे, न माननीय न्यायालय अवमानना का प्रकरण लगा रही थी। आपको बस इतना करना था कि पूरी योजना बनाते कि कैसे पहले सडक के दोनों किनारों पर स्टापेज बनाएं। वहां टिकट काउंटर तैयार करते। बस में उद्घोषणा की व्यवस्था है,उसे लगातार सक्रिय रख यात्रियों को अवगत कराते,तारीख सुनिश्चत करते और जैसे ही वैकल्पिक व्यवस्था हो जाती,नई व्यवस्था लागू कर देते। मुख्यमंत्री द्वारा तीन महीने पहले घोषणा कर दिये जाने के बावजूद राई-रत्ती भर व्यवस्था क्यों नहीं कर पाये? यहां तक कि योजना भी नहीं बना पाये कि कैसे चरणबद्ध तरीके से यह हटेगा।

निगम को तो एक ही तरीका पता है। पहले अतिक्रण हो जाने दो,फिर सेटिंग न हो या न्यायालय से फटकार मिले या कोई गली-मोहल्ले का नेता अपने हित पूरे न होने पर शिकायत करे तो बुलडोजर लेकर चढ़ाई कर दो। भले ही वह निर्माण नियम सम्मत हो, वैध हो या जिसे तत्काल तोड़े जाने लायक स्थिति न हो । तब तो जवाबदार लोग मोबाइल बंद कर भूमिगत हो जाते हैं। आप रोते रहो। बाद में भी कभी यह नहीं देखा जाता कि किस जोन प्रभारी,इंजीनियर,दरोगा वगैरह के इलाके में यह काम हुआ था,उन्हें भी नापा जाये।

ऐसी ही लमतरानी बीआरटीएस उखाड़ने को लेकर हुई, जो कि बेहद शर्मनाक तो है ही, तेजी से विकसित हो रहे,सुंदर हो रहे,शहर की प्रतिष्ठा पर धब्बा भी है। कुछ नहीं बिगड़ता यदि बीआरटीएस हफ्ते-पंद्रह दिन बाद तोड़ना प्रारंभ करते। ताज्जुब की बात तो यह भी है कि एक भी जन प्रतिनिधि ने इस पर आपत्ति नहीं उठाई, नगर निगम के रवैये पर सवाल नहीं उठाये। यह बड़ी अजीब प्रवृत्ति हो गई है कि सत्तारूढ़ दल की किसी भी सरासर गलत कार्रवाई का विरोध उनके विधायक,सांसद,पार्षद बिल्कुल नहीं करते। इंदौर में अक्सर इस तरह की बेजा कार्रवाई जब भी होती है,जनता के नुमांइदे चुप्पी साध लेते हैं।

हमारा इंदौर उसके बाद भी खुश है,संतुष्ट है,प्रसन्न है और अपने कामकाज में मगन है। सेव-मिक्चर, पोहे-जलेबी,कचोरी-समोसे,पानी-पुरी,कट चाय का आनंद ले रहा है। सड़क खुदी पड़ी हो या रोज शाम को प्रमुख चौराहों पर जाम लगा हो,या बेतरतीबी से, बिना कोई सूचना दिये बीआरटीएस खोदना शुरू किया हो, हम तो पतली गली से निकलने का रास्ता ढूंढ ही लेंगे।