Indore Made 2 Records : इंदौर की टोपी में 2 नए पंख लगे, भाजपा की रिकॉर्ड जीत का और ‘नोटा’ में पड़े वोट का!
Indore : इंदौर के चुनाव नतीजे अनुमान से अलग नहीं रहे। जो समझा और सोचा गया था वही हुआ। ‘मीडियावाला’ ने 28 मई को यह अनुमान स्पष्ट कर दिया था कि ‘इंदौर में 4 जून को कोई चुनाव नहीं हारेगा, न बीजेपी न कांग्रेस’ वो सच साबित हुआ। इंदौर में कोई नहीं हारा। भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी को 12 लाख 26 हजार 751 वोट मिले और वे 10 लाख 8077 वोट के अंतर से जीते। जबकि, कांग्रेस की अपील पर ‘नोटा’ में 2,18,674 वोट पड़े, जो देश में एक रिकॉर्ड है। इस तरह इंदौर में दो रिकॉर्ड बने। एक भाजपा उम्मीदवार की जीत का और दूसरा ‘नोटा’ में पड़ने वाले वोटों का। यानी भाजपा अपनी सबसे बड़ी जीत का जश्न मना रही है और कांग्रेस ‘नोटा’ में पड़े रिकॉर्ड वोटों का।
इंदौर संसदीय सीट का नतीजा क्या होगा, इससे कोई अनजान नहीं था। यही वजह है कि यहां न तो कोई उत्सुकता थी और न नतीजे का इंतजार। इस सीट पर कोई मुकाबला भी नहीं था। सारी उत्सुकता दो आंकड़ों को लेकर बची थी, जिसका आज खुलासा हो गया। पहला तो यह कि भाजपा उम्मीदवार अपने निकटतम उम्मीदवार से कितने अंतर से चुनाव जीतते हैं। दूसरा, ‘नोटा’ के खाते में जाने वाले वोट कितने होंगे। कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों ही मामलों में इंदौर रिकॉर्ड बनाएगा जो सही रहा। रिकॉर्ड बनाना और कुछ नया करना इंदौर वासियों आदत रही है। स्वच्छता में सात बार अव्वल रहने वाला इंदौर अब राजनीतिक उलटफेर में भी देश में छाया हुआ है।
*टिप्पणी:इंदौर में 4 जून को कोई चुनाव नहीं हारेगा, न बीजेपी न कांग्रेस!*
इंदौर संसदीय क्षेत्र के चुनाव में इस बार जो हुआ, वो वास्तव में अजूबा ही कहा जाएगा। यहां जिस दिन नाम वापसी का दिन था, उसी दिन कांग्रेस के उम्मीदवार ने अपना नाम वापस लेकर कांग्रेस पार्टी को मुकाबले से बाहर कर दिया। उन्होंने न सिर्फ चुनाव मैदान छोड़ा, बल्कि उसी समय प्रतिद्वंदी पार्टी बीजेपी में शामिल हो गए। ये देश के चुनाव इतिहास में हुई अजीब घटना थी। कई घंटों तक कांग्रेस की राजनीति में सन्नाटा छाया रहा। क्योंकि, नया फैसला करने का समय भी नहीं बचा था। कांग्रेस ने कोई नया प्रयोग नहीं किया और बजाए किसी उम्मीदवार का समर्थन करने के एक तरह से समर्पण ही किया। लेकिन, मतदाताओं से यह आह्वान जरूर किया कि वे यदि इन हालातों को लोकतंत्र के लिए सही नहीं मानते. तो ईवीएम मशीन का सबसे आखिरी वाला ‘नोटा’ का बटन दबाएं। इससे देश के सामने यह संदेश जाएगा कि जो हुआ वो ठीक नहीं था। कांग्रेस की इस अपील का अच्छा असर हुआ।
इस शहर ने चुनाव के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। भले ही यह एक संभावना जताई जा रही थी, लेकिन जो हुआ उससे इंकार भी नहीं किया। यहां 25 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें से करीब साढे 15 लाख ने वोट डाले। यानी मतदान करीब 61% से ज्यादा हुआ। तय था कि इसमें ज्यादातर वोट उस भाजपा उम्मीदवार के खाते में जाएंगे, जिसके सामने कोई मुकाबले में ही नहीं था। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के मैदान छोड़ने के बाद किसी निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया। उसने कांग्रेस समर्थकों से अपील की थी कि वे ईवीएम में ‘नोटा’ का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करें। इस वजह से उम्मीद की जा रही थी कि ‘नोटा’ में सर्वाधिक वोट का देश में दर्ज पुराना रिकॉर्ड टूटेगा, जो अभी तक बिहार की गोपालगंज संसदीय सीट के नाम है। वहां 2019 में ‘नोटा’ के खाते में 61,550 वोट पड़े थे। अनुमान था कि इस बार इंदौर इस आंकड़े से बहुत आगे निकल सकता है, वही हुआ भी। क्योंकि, कांग्रेस ने ‘नोटा’ के बटन को अपने उम्मीदवार की तरह समझा और मतदाताओं को भी समझाया। इसका फायदा रिकॉर्ड बनने में मिला।
भाजपा उम्मीदवार ने पिछला चुनाव साढ़े 5 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीता था, संभावना लगाई गई थी, कि इस बार वह करीब दुगना होगा, वही हुआ भी। इससे एक तरफ ईवीएम में ‘नोटा’ के बटन दबाने का रिकॉर्ड बना, दूसरी तरफ भाजपा उम्मीदवार की जीत का। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां अब अपनी-अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। कांग्रेस को इस बात की ख़ुशी है कि मतदाताओं ने ‘नोटा’ में बटन दबाकर उसका साथ दिया और देश में ‘नोटा’ का रिकॉर्ड बना। भाजपा भी जीत की ख़ुशी मना रही है। पर, उसके समर्थकों में ये कसक है कि वे ऐसा मुकाबला जीते, जिसमें कोई प्रतिद्वंदी ही नहीं था। सीधे शब्दों में कहा जाए तो इंदौर में भाजपा भी जीती और कांग्रेस भी।