विस्मृत योद्धा वीर पुरिया के योगदान की अक्षुण्ण प्रतिष्ठा -कर्मयोगी
उत्तराखंड में कालांतर, गोरखा युद्ध व अंग्रेजों के वर्चस्व के बीच समय के थपेड़ों के चलते वीर पुरिया को विस्मृत कर दिया गया। स्वतंत्र भारत में कई इतिहासकारों ने उनके बारे में लिखा, लेकिन उनके योगदान से परिचित होने में नई पीढ़ी वंचित रही। कालांतर कुछ जागरूक लोगों ने उन पर कई किताबें लिखी और उनका स्मारक उनके गांव में बनाने का प्रण लिया। ग्राण नैथाणा में वीर पुरिया स्मारक की आधारशिला 27 अक्टूबर 2021 को रखी गई। लंदन में रहने वाले समाजसेवी डॉ सतीश चंद्र नैथानी ने 4 लाख का चेक देकर अभियान की शुरूआत की गई। उनका स्मारक अब बनकर तैयार हो चुका है।
उत्तराखंड के गढ़वाल के मध्ययुगीन नरेशों के इतिहास में विलक्षण प्रतिभा के धनी पुरिया नैथानी का नाम एक कुशल-चतुर कूटनीतिज्ञ और सेनापति के रूप में याद किया जाता है। जिन्होंने वाक्चातुर्य से न केवल गढ़वाल राज्य की सीमाओं को अक्षुण्ण बनाया बल्कि अपनी क्रूरता के लिये जाने वाले औरंगजेब से गढ़वाल पर लगे जजिया कर तक माफ करवाया दिया था। उनकी मेधा व हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रयासों से औरंगजेब इतना प्रसन्न हुआ है कि उसने गढ़वाल के लोगों पर लगे जजिया कर माफ करने की घोषणा कर दी। विलक्षण प्रतिभा के धनी पूर्णमल उर्फ पुरिया नैथानी का जन्म शुक्ल पक्ष पूर्णमासी भाद्रपद यानी अगस्त 1648 ई को पौड़ी जनपद के ग्राम नैथाणा में गौंडु नैथाणी के घर हुआ।
तत्कालीन गढ़ नरेश पृथ्वी शाह के करीबी मंत्री डोभाल, जो एक प्रसिद्ध ज्योतिषज्ञ भी थे, ने पुरिया जी की जन्मपत्री देखकर उनके असाधारण उज्ज्वल भविष्य को दर्शाते ग्रहों को पहचाना। पुत्रहीन डोभाल ने पुरिया जी के पिता से उन्हें अपने कन्या के वर के रूप में मांग लिया था। साथ ही उनके पिता के भरण-पोषण के लिये मासिक पेंशन की व्यवस्था भी की। इस तरह कुशाग्र बुद्धि के मेधावी पुरिया की शिक्षा-दीक्षा राजकुमारों के साथ हुई। राजगुरु के सानिध्य में उन्होंने संस्कृत, इतिहास, भूगोल, अस्त्र-शस्त्र, धर्म शास्त्रों व घुड़सवारी की शिक्षा हासिल की। कालांतर मंत्री डोभाल की पुत्री से उनका विवाह हुआ।
वीर पुरिया वर्ष 1668 में गढ़वाल नरेश पृथ्वीपति शाह के प्रतिनिधि के रूप में औरंगजेब की बेटी रोशनआरा के विवाहोत्सव में भाग लेने गये। उन्होंने अपनी प्रतिभा से औरंगजेब को प्रभावित किया। एक छत्रप से कोटद्वार के भावर इलाके के एक बड़े भूभाग को औरंगजेब के निर्देश पर मुक्त कराया, जिसके लिए गढ़ नरेश से सैकड़ों बीघा जमीन पुरिया जी को भेंट की। वहीं वर्ष 1680 में औरंगजेब के दरबार में अपने वाक्चातुर्य से आर्थिक रूप से कमजोर गढ़वाल की जनता को जजिया कर से मुक्त कराने में सफलता प्राप्त कर ली। पुरिया जी के सांप्रदायिक सद्भाव के तर्कों से औरंगजेब इतना प्रभावित हुआ कि उसने गढ़ नरेशों की प्राचीन राजधानी देवलगढ़ में प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिये आर्थिक सहायता प्रदान की। इस ऐतिहासिक सफल यात्रा के बाद गढ़वाल नरेश ने उन्हें अपना सेनापति बना दिया। उन्होंने गढ़वाल की सीमाओं को अक्षुण्ण बनाने के लिये कई युद्धों में वीरतापूर्वक निर्णायक भूमिका निभाई और कई विद्रोहों व हमलों में राजवंश की रक्षा की।
उत्तराखंड सरकार की आंशिक मदद के साथ इसके निर्माण में करीब 24 लाख रुपये का खर्च आया। 31 मार्च 2024 को उनके स्मारक का लोकार्पण होना है। जिसमें अनेक जनप्रतिनिधियों के साथ आसपास के 82 गांवों को इसके लिये निमंत्रण दिया गया है। श्री पुरिया ट्रस्ट के संरक्षण निर्मल प्रकाश बताते हैं कि मूर्ति के अनावरण समारोह का खर्च करीब साढ़े चार लाख रुपये अनुमानित है। इस आयोजन में आंशिक मदद उत्तराखंड सरकार ने भी की। जिसमें पुरातत्व विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई पांच लाख की मूर्ति भी है। साथ ही तीन लाख रुपये की राशि स्मारक के पिलर निर्माण में भी दी गई। यह स्मारक पहाड़ी ढलान जमीन पर स्थित होने के कारण दो मंजिले भवन के रूप में बनाया गया।
‘वीर पुरिया: उत्तराखंड का एक विस्मृत योद्धा’ पुस्तक के लेखक निर्मल प्रकाश बताते हैं कि वीर पुरिया लंबे अंतराल तक वे एक विस्मृत योद्धा की तरह रहे। इतिहासकारों ने उनके योगदान को नजरअंदाज किया। वे नैथाणा गांव के गौरवशाली पूर्वज थे। ऐसे में उनकी स्मृतियों को संजोये और नई पीढ़ियों को उनके योगदान से अवगत कराने के लिये हमने स्मारक बनाने का संकल्प लिया। कालांतर निर्णय लिया गया कि स्मारक के साथ ही एक सामुदायिक केंद्र भी बनाया जाए। ताकि देश-विदेश से आने वाले प्रवासियों को गांव में रहने में दिक्कत न हो।
दरअसल, इस काम को आगे बढ़ाने में श्री पुरिया नैथाणी सेवा ट्रस्ट की स्थापना की गई। ट्रस्ट की स्थापना श्रीमती गोदबंरी की प्रयासों से देहरादून में हुई, जिसे श्रीमती विजय सामल के प्रयासों से आगे गति मिली।। कालांतर ट्रस्ट के प्रयासों से सामुदायिक भवन की आधारशिला 27 अक्टूबर 2021 को की गई। सामुदायिक भवन एक डबल स्टोरी के रूप में बनाया जा रहा है। जिसमें सांस्कृतिक आयोजनों के लिये एक हाल भी बनाया जा रहा है। निश्चित रूप से स्मारक के लिये चंदा जुटाना एक बेहद मुश्किल कार्य था। सेवा ट्रस्ट के पहले अध्यक्ष व वर्तमान संरक्षक निर्मल प्रकाश व वर्तमान प्रधान श्री सुनील गांव-गांव व शहरों में बसे प्रवासी नैथाणा वासियों के पास गए। निर्मल नैथानी व उनकी टीम ने गढ़वाल के करीब 32 गांवों में लोगों को संपर्क किया। ये वे गांव थे जहां नैथाणा से प्रवास करके लोग बसे थे। ये ग्रामीण संपन्न वर्ग से नहीं थे, लेकिन इस संपर्क अभियान का उद्देश्य वीर पुरिया की विरासत व स्मारक से सबको जोड़ना भी था। इन सभी गांव में प्रचार-प्रसार के साथ प्रतीकात्मक चंद कार्यक्रम में भागीदारी के लिया गया। साथ ही उन स्थानों को भी छूने का प्रयास किया गया, जहां वीर पुरिया जी के पांव पड़े थे। मकसद उस मिट्टी का प्रणाम करना था जहां हमारे पुरखों के पांव पड़े थे।
निर्मल व उनकी टीम मदन मोहन मालवीय की तरह चंदा जुटाने घर-घर गए। पहले वे अध्यक्ष के रूप में वन मैन आर्मी की तरह जूझे। कालांतर सुनील नैथानी की अध्यक्षता में अभियान चला तो वे निर्मल प्रकाश संरक्षक की भूमिका में आ गये। दरअसल, मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस से सेवानिवृत्त अभियंता के उनके अनुभव स्मारक व सामुदायिक केंद्र के निर्माण में काम आये। उन्होंने वीर पुरिया के योगदान व इस अभियान से जुड़ी पुस्तक ‘वीर पुरिया: उत्तराखंड का एक विस्मृत योद्धा’ भी लिखा। जिसका विमोचन 22 अगस्त 2020 को पुरिया जी की जयंती पर देहरादून में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किया।
श्री पुरिया नैथाणी सेवा ट्रस्ट की एक कामयाबी यह भी रही कि वीर पुरिया के योगदान को उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों की पुस्तकों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। इसके लिये ट्रस्ट को लंबा संघर्ष करना पड़ा। दरअसल, उत्तराखंड सरकार ने राज्य की पाठ्य पुस्तकों में राज्य के महत्वपूर्ण नायकों, स्वतंत्रता सेनानियों, मेले व सांस्कृतिक पुरुषों को शामिल करने के लिये एक बोर्ड गठित किया। पहले बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि कुछ किताबें लिखने से कोई व्यक्ति इतिहास का हिस्सा नहीं बन जाता। दलील दी कि इन पुस्तकों के लेखक इतिहासकार नहीं थे। ट्रस्ट ने दलील दी कि यू ट्यूब व सोशल मीडिया पर उन पर्याप्त सामग्री मौजूद है। वीर पुरिया पर दिल्ली व अन्य भागों में नाटक खेले गए हैं। तब ट्रस्ट ने उत्तराखंड के प्रतिष्ठित इतिहासकार शिव प्रसाद डबराल ,जिनके गढ़वाल के इतिहास पर 22 वॉल्यूम मौजूद हैं।
हरिकृष्ण रतूड़ी, उत्तर प्रदेश के शिक्षा व सांस्कृतिक मंत्री रहे भक्त दर्शन द्वारा 26 पेजों में वीर पुरिया के बारे में लिखे लेख व गोविंद चातक द्वारा लिखे इतिहास के दस्तावेज बोर्ड को पेश किये। तब जाकर वीर पुरिया को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। इसमें सेनापति वीर पुरिया द्वारा टिहरी राज्य के अल्पवयस्क वारिस व रानी की कठैत विद्रोहियों से रक्षा से जुड़े अद्वाणी के रानीगढ़ आदि महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का उल्लेख है। साथ ही वीर पुरिया से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रमों व स्थानों का विवरण शामिल है। ट्रस्ट की कोशिश है कि वीर पुरिया से जुड़े द्वारहाट स्थित नैथाणी गढ़, नैथाणी देवी मंदिर व नैथाणी पहाड़ आदि विवरणों से अगली पीढ़ी को अवगत कराया जा सके।