अच्छा होता कि राष्ट्रपति मुर्मू, खुद गुलजार को ज्ञानपीठ से सम्मानित करतीं…

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अच्छा होता कि राष्ट्रपति मुर्मू, खुद गुलजार को ज्ञानपीठ से सम्मानित करतीं…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

देश की विशिष्ट विभूति 90 वर्षीय गुलजार को न्यास सदस्यों ने मुंबई जाकर ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कर दिया। सूचना यही है कि प्रसिद्ध कवि-गीतकार गुलजार को गुरुवार यानि 22 मई 2025 को मुंबई उपनगरीय बांद्रा में मौजूद उनके आवास पर भारत के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 90 वर्षीय गीतकार स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण पिछले सप्ताह यानि 16 मई 2025 को नई दिल्ली में आयोजित समारोह में शामिल नहीं हो पाए थे। गुलजार को भारतीय ज्ञानपीठ के ट्रस्टी मुदित जैन, पूर्व सचिव धर्मपाल और महाप्रबंधक आरएन तिवारी सहित सदस्यों की तरफ से प्रशस्ति पत्र, 11 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और वाग्देवी सरस्वती की कांस्य प्रतिकृति प्रदान की गई। जगद्गुरु रामभद्राचार्य और गुलजार को इस बार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली में आयोजित समारोह में जगद्गुरु रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। पर गुलजार इस समारोह में शामिल नहीं हो पाए थे। और अब गुलजार को न्यास सदस्यों ने मुंबई आकर सम्मानित किया। सामान्य नजरिए से यह सामान्य सी बात है। और गुलजार के नजरिए से भी यह सामान्य सी बात है। पर गुलजार के करोड़ों प्रशंसकों के नजरिए से यह सामान्य बात नहीं है। देश की 90 वर्षीय गुलजार जैसी प्रतिभा की अगर बात करें तो स्वास्थ्य खराब होने पर या तो आयोजन टालकर आगे बढ़ा दिया जाता या फिर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मुंबई जाकर गुलजार से मुलाकात कर उन्हें सम्मानित करतीं या फिर गुलजार को राष्ट्रपति भवन बुलाकर भी उन्हें खुद सम्मानित करतीं…तब शायद वह क्षण अतिविशिष्ट और गौरवशाली बन जाते। ज्ञानपीठ पुरस्कार गुलजार को मिलने पर खुद भी गौरवान्वित हुआ है। ऐसे में देश के गौरव बन चुके 90 वर्षीय गुलजार का सम्मान पूरे देश का सम्मान था। और गुलजार को अपने हाथों सम्मानित करना राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भी सम्मान था। खैर बातें बहुत बोझिल हो चुकी हैं। आओ रास्ता बदलें और गुलजार की जीवन को शब्दों में बांधे हुए नज्मों से मन को सुकून दें।

‘आदमी बुलबुला है पानी का

और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,

फिर उभरता है, फिर से बहता है,

न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,

वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।’

और यह दूसरी नज्म –

आज फिर चाँद की पेशानी से उठता है धुआँ

आज फिर महकी हुई रात में जलना होगा

आज फिर सीने में उलझी हुई वज़नी साँसें

फट के बस टूट ही जाएँगी, बिखर जाएँगी

आज फिर जागते गुज़रेगी तेरे ख्वाब में रात

आज फिर चाँद की पेशानी से उठता धुआँ।

तो आइए थोड़ा सा वक्त गुलजार के साथ बिताते हैं। उनके बारे में पढ़कर भी यही अहसास होगा जैसे गुलजार हमारे सामने बैठकर अपनी जिंदगी को साझा कर रहे हों।

गुलजार जिनका असल नाम सम्पूर्ण सिंह कालड़ा है, 18 अगस्त 1934 को अविभाजित हिंदुस्तान के ज़िला झेलम के गांव देना में पैदा हुए। उनके पिता का नाम मक्खन सिंह था जो छोटा मोटा कारोबार करते थे। गुलजार की माता का देहांत तभी हो गया था जब वो दूध पीते बच्चे थे और सौतेली माँ का सुलूक उनके साथ अच्छा नहीं था। इसलिए गुलजार अपना ज्यादा वक़्त पिता की दुकान पर गुजारते थे। पाठ्य पुस्तकों से उनको ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और इंटरमीडिएट में फेल भी हुए लेकिन अदब से उनको लड़कपन से ही गहरा लगाव था और रवीन्द्रनाथ टैगोर और शरत चंद उनके पसंदीदा अदीब थे। दरअसल इसी बंगला पंजाबी पैवंदकारी से जो फलदार पेड़ पैदा हुआ उसका नाम गुलजार है।

1947 में देश विभाजन की परेशानियों से गुजरते हुए गुलजार का खानदान जान बचा कर पहले अमृतसर और फिर दिल्ली में डेरा डाला। दिल्ली में ये लोग सब्जी मंडी के इलाक़े में रहते थे। गुलजार की शिक्षा का खर्च मक्खन सिंह बर्दाश्त करने में असमर्थ थे इसलिए बेटे को एक पेट्रोल पंप पर मुलाजमत करनी पड़ी। फिर कुछ दिन बाद तकदीर उनको बंबई खींच ले गई। दिल्ली हो या बंबई गुलजार को शायर बनने की धुन थी और यही उनकी असल मुहब्बत थी। बंबई आकर गुलजार ने अदबी हलक़ों में असर-रसूख बढ़ाया, वो प्रगतिशील लेखक संघ की सभाओं में पाबंदी से शरीक होते। इस तरह इन्होंने कई अदीबों से ताल्लुकात पैदा कर लिए थे जिनमें एक शैलेंद्र भी थे जो उस वक़्त जाने माने फिल्मी गीतकार थे। 1960 के प्रथम दशक में मशहूर फिल्म निर्माता बिमल राय “बंदिनी” बना रहे थे जिसके म्यूजिक डायरेक्टर प्रसिद्ध संगीतकार एसडी बर्मन और गीतकार शैलेंद्र थे। इत्तेफाक से किसी बात पर बर्मन की शैलेंद्र से अन-बन हो गई और शैलेंद्र रूठ कर उनसे अलग हो गए। लेकिन फिल्म से उनका भावनात्मक लगाव था, उन्होंने गुलजार से कहा कि वो उस फिल्म के लिए गीत लिखने के लिए बिमल राय से मिलें। बिमल राय ने आरम्भिक संकोच के बाद सिचुएशन समझा कर एक गाना लिखने का काम गुलजार को सौंप दिया। गुलजार ने इस तरह अपना पहला गाना “मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दइ दे” लिखा जो एसडी बर्मन और बिमल राय को बहुत पसंद आया और बाद में खासा मशहूर भी हुआ। ये इस फिल्म में गुलजार का इकलौता गाना था क्योंकि बाद में शैलेंद्र और एसडी बर्मन की सुलह-सफाई हो गई थी। बिमल राय को बहरहाल ये बात अच्छी नहीं लगी कि एक होनहार नवजवान एक मोटर गैरज में काम करे। लिहाजा उन्होंने एक प्रकार आदेश से गुलजार को वो नौकरी छोड़ देने को कहा और अपना अस्सिटेंट बना लिया। संभवतः यहां बिमल राय की बंगालियत और बंगाली जबान से गुलजार की मुहब्बत ने अपना रंग दिखाया था। गुलजार का कहना है कि वो बिमल राय के इस स्नेहपूर्ण व्यवहार पर रो पड़े थे।

तो गुलजार के बारे में जितना लिखा जाए, उतना कम है। उनके गीत, गजल, शायरी और लेखन में मानो पूरा मन हर समय डुबकी लगाने को तैयार रहता है। फिलहाल इतना ही और राष्ट्रपति से यह शिकायत जो हमें हो रही है, वह गुलजार के करोड़ों प्रशंसकों को होगी। पर यह बात भी सौ फीसदी सच है कि यह शिकायत गुलजार को कतई नहीं होगी। गुलजार के लिए यह कोई बात करने का मुद्दा भी नहीं होगा। जैसे रतन टाटा के बारे में सच्ची बात है। रतन टाटा के दयालु स्वभाव, जानवरों के प्रति प्यार आदि की सैकड़ों कहानियां हैं। जानवरों के प्रति उनके प्यार से जुड़ा ही एक किस्सा अक्सर चर्चा में रहता है। ये किस्सा है साल 2018 का, जब रतन टाटा अपने पालतू कुत्ते की तबीयत खराब होने की वजह से यूके रॉयल फैमिली की ओर से दिए जाने वाले लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड को लेने भी नहीं गए थे। और तब किंग चार्ल्स तृतीय ने टाटा की खुलकर सराहना भी की थी। तो गुलजार के लिए भी सम्मान से जुड़ी यह बात कोई खास मायने नहीं रखती…।

आओ मौसम फिल्म में गुलजार की इस गजल को गुनगुनाते हुए अपनी लेखनी को विराम देते हैं-

मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर है

‘दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात-दिन,

बैठे रहें तसव्वर-ए-जानां किए हुए।’

इसी शेर पर गुलजार ने यह नज्म लिखी है-

दिल ढूँढता है फिर वही फुरसत के रात दिन

बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए

दिल ढूँढता है फिर वही फुरसत के रात दिन…

जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर

आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को

औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए

दिल ढूँढता है

फिर वही फ़ुरसत के रात दिन…