Jama Masjid Controversy : पहले वहां सेवा मंडल था, जहां आज भोपाल की जामा मस्जिद!
Bhopal : भोपाल के इतिहासकार रिजवान अंसारी का दावा है कि जहां आज भोपाल की जामा मस्जिद है, वहां पहले सेवा मंडल था। कुदेसिया बेग़म ने मंदिर के स्थान पर यह मस्जिद बनवाई थी। उस समय के शिवलिंग और प्रतिमा आज भी भोपाल के मंदिरों में सरंक्षित है। उस समय के आज भी कई धर्मिक चिन्ह मस्जिद में नज़र आते है। यह बात सुलतान जहां बेगम की किताब में भी ही है। इंग्लिश वाली बेगम ने खुद लिखी है। हालांकि, बेगम ने उर्दू में लिखी थी अंग्रेजी में उसका ट्रांसलेशन किया गया था।
चौक क्षेत्र में स्थित जामा मस्जिद लाल रंग के पत्थरों से निर्मित है। इसका निर्माण भोपाल राज्य की 8वीं शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने 1832 ई. में शुरू करवाया था। यह जामा मस्जिद 1857 ई. में बनकर पूरी हुई थी। मस्जिद के निर्माण पर लगभग 5 लाख रुपए का ख़र्च आया था।
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भोपाल की जामा मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद के समान ही चार बाग़ पद्धति पर आधारित है। 9 मीटर वर्गाकार ऊँची जगह पर निर्मित इस मस्जिद के चारों कोनों पर ‘हुजरे’ बने हुए हैं। इसमें तीन दिशाओं से प्रवेश द्वार है। अन्दर एक विशाल आंगन है। पूर्वी एवं उत्तरी द्वार के मध्य हौज़ है। यहाँ का प्रार्थना स्थल अर्द्ध स्तम्भों एवं स्वतंत्र स्तम्भों पर आधारित है।
स्तम्भों की संरचना इस प्रकार है कि भवन स्वत: दो समानांतर भागों में विभाजित हो जाता है। प्रार्थना स्थल के दोनों ओर पाँच मंजिली विशाल गगनचुम्बी मीनारें इसके सौन्दर्य में अभूतपूर्व वृद्धि करती हैं।
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मस्जिद की प्रथम मंज़िल पर छज्जेदार प्रलिंद हैं, जिसको आधार प्रदान करने के लिए कोष्ठकों का प्रयोग किया गया है।
मीनार के हर पहलू में चार कोष्ठक अर्थात् एक मंज़िल में बत्तीस कोष्ठक हैं। पाँचवी प्रलिंद के ऊपर गुम्बद है, जिस पर पदमकोष एवं स्वर्ण कलश शोभित है। स्तंभों की इन क्रमबद्ध रचना से जो आलिन्द निर्मित हैं, उनमें सौन्दर्य वृद्धि के लिये स्तंभों के शीर्ष पर धनुषाकार मेहराबों का निर्माण किया गया है।