झूठ बोले कौआ काटे! सुनो, आतंक था कितना, फिर, विलाप क्यों इतना
कुख्यात डॉन से राजनेता बने माफिया अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ कथित पत्रकार हत्यारों के कुछ उसी अंदाज में शिकार हो गए जिस अंदाज में वो दोनों अपने शिकार को निपटाते थे। कुदरत का अद्भुत इंसाफ! स्पष्ट है कि इस हत्याकांड से योगी सरकार के इकबाल को तो चुनौती मिली, लेकिन कानून-व्यवस्था को लेकर विपक्ष का विलाप आम जनता की समझ से परे है। या, यूं कहें कि ये जनता है ये सब जानती है। राज खुल रहे, लोग खुल रहे और, अभी और खुलेंगे।
यह वही अतीक था जिसने उमेश पाल हत्याकांड में वांछित अपने बेटे असद की मौत के सदमे में होने के बावजूद धूमनगंज थाने में पूछताछ के दौरान यूपी एसटीएफ के अधिकारियों को मूंछों पर ताव देकर धमकी दी कि ‘एक बार मुझे छूटने दो, जिन पुलिसवालों ने मेरे बेटे को गोली मारी है, उन्हें बता दूंगा कि गद्दी की गर्मी क्या होती है।
यह वही अतीक था जिसने उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक और तत्कालीन एसपी सिटी, इलाहाबाद ओ.पी. सिंह को 1989 में धमकी दी थी, “अगर तुम मुझे गिरफ्तार करने की कोशिश करोगे तो गोली मार दी जाएगी।” सिंह ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में बताया, “उसने मेरे अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया और एक उप निरीक्षक के साथ दुर्व्यवहार किया। हालांकि बहस के दौरान ही उच्च-अधिकारी (बल और सरकार तथा राजनीतिक दलों में) ने शॉट्स मंगाए और उन्हें उसकी गिरफ्तारी न करने का आदेश दिया गया।
सिंह के अनुसार, “उन्हें जबरदस्त राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था, इसलिए हम उसे गिरफ्तार किए बिना लौट आए। सभी पुलिसकर्मियों की सीमाएं होती हैं जिन्हें हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।” गैंगस्टर अतीक पर करीब 130 मामलों में आरोपी होने के बावजूद उसे पहली बार पिछले महीने ही दोषी ठहराया गया था।
सिंह का मानना है कि वह धर्म के साथ चलता था और मुसलमानों में “मसीहा” के रूप में देखा जाता था। वह बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यक वोट बैंक का आनंद ले रहा था। राजनीतिक दल और नेताओं का संरक्षण इस हद तक था कि गवाह अपने बयान से मुकर गए और उनके खिलाफ मामले नहीं बन पाए। वास्तव में, यहां तक कि जब उनकी संलिप्तता कई मामलों में कथित या संदिग्ध थी, तब भी उनका नाम एफआईआर में शामिल नहीं होता था।”
सिंह ने अहमद की शक्ति को “राजनीति और माफिया के बीच घातक साठगांठ का ज़बरदस्त मिश्रण” बताया। पूर्व डीजीपी ने कहा, “उन्हें कई पूर्व मुख्यमंत्रियों का भी समर्थन प्राप्त था। उसके गिरोह के सदस्य उसे रॉबिन हुड जैसी शख्सियत के रूप में देखते थे।”
अतीक अहमद जेल के अंदर भी अधिकारियों को गोली मारने की धमकी देता था। साल 1990 से 1994 तक प्रयागराज की नैनी जेल के इंचार्ज रहे रिटायर्ड डीआईजी एसके पांडेय के अनुसार, हम नियम से चलते थे, तो धमकी देता था कि ट्रांसफर करा लें, नहीं तो इतनी गोली मारेगा कि शरीर पोस्टमॉर्टम लायक तक नहीं बचेगा। जेल का स्टाफ तक उसका खास था। वो सिस्टम का एनकाउंटर करता था। जेल में बंद अतीक से सत्ताधारी दल के बड़े नेता, अधिकारी, वकील सभी मिलने आते थे। पांडेय कहते हैं कि हमसे पहले भी कई लोग थे किसी को गोली नहीं मारी।
विधायक राजू पाल हत्याकांड में विवेचकों पर इतना दबाव था कि कोई भी इस घटना की विवेचना नहीं करना चाहता था। चार साल में चार विवेचक बदल गए। हालांकि, अब इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है। बोले तो, राजू पाल हत्याकांड के चौथे विवेचक नारायण सिंह परिहार को 2008 में 50 लाख रुपये का ऑफर दिया गया। न मानने पर दुष्कर्म में फंसाने की धमकी भी दी गई लेकिन नारायण सिंह नहीं झुके। उन्होंने न सिर्फ अतीक-अशरफ और उनके गुर्गों के खिलाफ चार्जशीट लगाई, बल्कि छह और आरोपियों को भी एफआईआर में शामिल किया, जिसमें गुड्डू मुस्लिम भी था। उनके मोबाइल पर कई बार पाकिस्तान के नंबरों से धमकी भरे फोन आए। सबसे ज्यादा दबाव गुड्डू बमबाज और अब्दुल कवि को निकालने के लिए बनाया गया।
अतीक के छह मुकदमों की विवेचना करने वाले नारायण परिहार का दावा है कि साल 2004 दिसंबर माह में पूर्व विधायक राजू पाल पर अतीक के गुर्गों ने अतीक के भाई के साथ मिलकर जानलेवा हमला किया था। इस मामले की दोबारा जांच होने पर माफिया अशरफ के गुनाहों का लंबा चिट्ठा खुलकर आगे आएगा।
यह वही अतीक था, जिसके आतंक से 2012 में हाईकोर्ट के एक या दो नहीं बल्कि कुल 10 जज जमानत पर फैसला लेने से ही डर गए। इन 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। उस समय तक अतीक अहमद जेल में बंद था। चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी थी। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत दे दी। जेल से बाहर आकर अतीक ने चुनाव तो लड़ा लेकिन उसका दबदबा अब पहले वाला नहीं रहा था, तो चुनाव हार गया। हराने वाला कोई और नहीं राजू पाल की पत्नी पूजा पाल थी, जिसकी 2005 में हत्या कराने के जुर्म में अतीक अहमद जेल में बंद था। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में फिर से अतीक अहमद चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर इलाहाबाद से नहीं, बल्कि श्रावस्ती से। लेकिन हार का ही सामना करना पड़ा।
यह वही अतीक था जिसने साबरमती जेल से बिल्डर मोहम्मद मुस्लिम को व्हॉट्सएप चैट में धमकी दी थी कि मैं अभी मरने वाला नहीं हूं। इंशाअल्लाह, जल्द ही हिसाब शुरू कर देंगे। इतना ही नहीं इस चैट में अतीक के बेटों के वकील या डॉक्टर न बनने की बात भी कही गई है। इस मैसेज के आखिर में अतीक अहमद, साबरमती जेल भी लिखा गया है। अतीक के डर से बिल्डर मुस्लिम प्रयागराज से लखनऊ शिफ्ट हो गया था।
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यह वही अतीक था, जिसका परिवार कभी बेहद गरीब था और उसके पिता तांगा चला कर गुजारा चलाया करते थे। अतीक का किस्सा ये बताता है कि अगर राजनीतिक संरक्षण मिले तो कोई अपराधी किस सीमा तक जा सकता है। वो अपना कद इस हद तक तक बढ़ा सकता है कि भारतीय राज्य और इसके सारे इंस्टीट्यूशन उसके सामने बौने पड़ जाते हैं। वह इलाहाबाद पश्चिम सीट से लगातार 5 बार विधान सभा का सदस्य चुना गया। वह फूलपुर से 14वीं लोकसभा के लिए समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुना गया।
अतीक भले ही मुसलमानों का मसीहा बना रहा हो, लेकिन जैसे अपराधी या आतंकी का कोई धर्म नहीं होता वैसे ही लूटपाट, दादागिरी, हत्या तक करने में उसके दरबार में कोई भेदभाव नहीं था। प्रयागराज के लोग आज भी 10 साल पुरानी घटना को याद करके सिहर उठते हैं। मामला ये हुआ कि अतीक ने अपने ही गुर्गे के एक रिश्तेदार अशरफ को एक अपना काम सौंपा था। किसी कारण से अशरफ ने उस काम को करने से मना कर दिया। फिर क्या था अतीक और अशरफ आग-बबूला हो गए। अतीक के भाई अशरफ ने इस पीड़ित अशरफ की प्रयागराज के चौराहे पर बेरहमी से पिटाई करके उसके हाथ-पैर तक तोड़ दिए।
मदरसा कांड 2007 में हुआ था। नारायण सिंह परिहार के अनुसार, इस मामले में अतीक के भाई अशरफ ने मदरसे से तीन लड़कियों को उठाया और फिर उनके साथ घिनौनी हरकत की थी। यह मुकदमा कोर्ट में गया, गवाही भी हुई लेकिन बाद में गवाह पलट गए। क्योंकि, अतीक अहमद और उसके गुर्गों ने लड़कियों के माता-पिता और रिश्तेदारों को परेशान किया था जिसके कारण बाद में गवाह पलट गए और केस नहीं बन पाया। उन्होंने बताया कि मैं जब जांच कर रहा था तो उस दौरान मुझे धमकियां मिली थी। कुछ लोग हमदर्दी में आकर भी कहते थे कि सांसद जी से मत उलझो।
प्रयागराज की जयश्री की न केवल साढ़े 12 बीघा जमीन फर्जी कागजात से हथिया ली, बल्कि 2016 में उनको और उनके बेटे को गोली मारी गई। उनके भाई को तो करंट लगा कर मार डाला गया। जयश्री ने शिकायत भी दर्ज कराई लेकिन, कार्रवाई की मांग करने पर उन्हें भगा दिया जाता था। सलाह दी जाती थी कि समझौता कर लो वर्ना तुम्हारे बच्चे मारे जाएंगे। जयश्री को अब न्याय की उम्मीद जगी है।
प्रयागराज की ही सूरजकली पर अतीक ने अपना अत्याचार इस कदर ढाया कि रुह कांप जाए। अतीक के गुर्गे एक दिन आए और जमीन पर जबरन कब्जा जमा लिया। हालांकि, जब सूरजकली ने इसका विरोध जताया तो उसकी पति की हत्या करवा दी। सूरजकली के अनुसार, अतीन ने उसे खुद बुलाया और कहा था कि अब तुम्हारा पति नहीं है। हम तुम्हारा अच्छे से देखभाल करेंगे। तुम्हारे पास जो भी संपत्ति हो, मेरे नाम पर लिख दो।
प्रयागराज की पुष्पा सिंह का प्रयागराज में एक घर था। वह कसारी-मसारी इलाके में अपने पति के साथ रहती थीं। पुष्पा सिंह के अनुसार, पति नौकरी करते थे, लेकिन एक दिन पता चला कि उनका ट्रांसफर ऑर्डर आया है। इस वजह से उन्हें प्रयागराज छोड़कर कानपुर जाना पड़ा। उन्होंने घर में ताला मार रखा था। लेकिन, जब एक दिन वह कानपुर से वापस लौटे तो देखा कि अतीक के गुर्गों ने उनकी जमीन पर कब्जा जमा लिया है। घर को भी ध्वस्त कर दिया है।
अतीक का बेटा अली भी पिता के नक्शे कदम पर चल रहा था। जीशान नामक शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि अली अपने गुर्गों के साथ उसके घर आया और कनपटी पर पिस्टल लगाकर पांच करोड़ की रंगदारी मांगी। जब उसने रंगदारी देने से मना कर दिया तो अली ने उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी। इस दौरान उसने दहशत फैलाने के इरादे से कई राउंड फायरिंग भी की। और तो और, छोटे भाई असद के एनकाउंटर और पिता तथा चाचा की हत्या के बाद अली ने ‘तीनों शूटरों को छोडूंगा नहीं’ यह कहते हुए हिसाब चुकता करने की धमकी भी दी। अतीक गैंग की रंगबाजी के किस्से अनगिनत हैं।
झूठ बोले कौआ काटेः
अतीक और उसके गिरोह के कारनामें ये बताते हैं कि अगर राजनीतिक संरक्षण मिले तो कोई अपराधी किस सीमा तक जा सकता है। वो अपना कद इस हद तक बढ़ा सकता है कि भारतीय गणराज्य और इसकी सारी संस्थाएं उसके सामने बौनी नजर आती हैं। ये अपराधी तथाकथित माननीय बन कर और रंगबाजी से नृशंस और घृणित घटनाओं को तो अंजाम दे ही रहे थे, विदेशी ताकतों से भी हाथ मिलाए बैठे हुए थे।
अतीक के खासमखास बमबाज गुड्डू मुस्लिम के बारे में कहा जाता है कि पाकिस्तान से अवैध हथियारों की ड्रोन से भारत में तस्करी में वह अतीक गैंग का प्रमुख लिंक है। उसे पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के संरक्षण की बात भी आई है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने रिमांड की कॉपी में खुलासा किया है कि माफिया अतीक अहमद पाकिस्तान से हथियार खरीदता था।
इन माफियाओं-बाहुबलियों का दुर्भाग्य कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में गोरक्षनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ से पाला पड़ गया। योगी सरकार की जीरो टालरेंस की नीति का ट्रेलर कानपुर के बिकरू कांड में सबने देखा भी। लेकिन, पार्षद उमेश पाल की सनसनीखेज हत्या और विपक्ष द्वारा इसे राजनीतिक रंग दिए जाने के बाद सीएम योगी ने भी माफियाओं-अपराधियों को मिट्टी में मिला देने का जो ऐलान विधानसभा में कर दिया, उसके परिणाम धड़ाधड़ आने लगे। एनकाउंटर, धरपकड़ और पूछताछ में कुछ राज फाश होने लगे थे।
रिमांड कॉपी के अनुसार अतीक अहमद ने पुलिस के सामने 161 के बयान में पूछताछ के दौरान कबूला है कि उमेश पाल की हत्या उसी ने करवाई, और जेल में इसकी पूरी साजिश रची गई। साबरमती जेल में पत्नी शाइस्ता परवीन से मुलाकात के दौरान अतीक ने उससे अपने मंसूबे जाहिर किए और नए मोबाइल फोन और सिम मुहैया करवाने को कहा। अतीक ने जेल में एक सरकारी आदमी का नाम भी बताया कि किसके हाथ ये मोबाइल फोन और सिम कार्ड जेल में पहुंचेंगे। अतीक ने यह भी बताया कि बरेली जेल में बंद उसके भाई अशरफ को भी मोबाइल और सिम शाइस्ता परवीन ने ही मुहैया कराया था।
तो, क्या अतीक-अशरफ कुछ और बड़े राज खोलने वाले थे, जिससे डर कर किसी तीसरी शक्ति ने उनका किस्सा खत्म करने की सुपारी प्रशिक्षित युवा हत्यारों को दे दी। उनकी पृष्ठभूमि, उनके पास प्रतिबंधित अत्याधुनिक महंगे हथियार का होना और उनके हमले की स्टाइल यही संकेत देती है। तीसरी शक्ति आईएसआई भी हो सकती है और स्थानीय राजनीतिक संरक्षक भी।
विचारणीय यह भी है कि माफियाओं-अपराधियों को जनता कब तक नेता चुन कर लोकतंत्र की हत्या अपने हाथों करती रहेगी। अपराधियों के मानवाधिकार के लिए आवाज उठाने वालों की आवाज तब क्यों नहीं उठी जब कितने निरीह लोगों का उत्पीड़न हो रहा था?
इस हत्याकांड को कानून-व्यवस्था फेल होने का तमगा, राजनीतिक-धार्मिक रंग देने की कोशिशों के बावजूद एसआईटी और न्यायिक जांच से शायद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए हो जाए, पर इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के अध्यक्ष के. विक्रम राव ने सही चिंता व्यक्त की है की टीवी रिपोर्टर के छझ वेश में तीन शोहदों द्वारा माफिया अहमद-ब्रदर्स (अतीक और अशरफ) को भून देना, श्रमजीवी पत्रकारों के लिए वीभत्स हादसा है, एक गंभीर चेतावनी है।
श्री राव का कहना है कि हालांकि भारत सरकार का गृह मंत्रालय सुरक्षा की दृष्टि से जोखिम भरी घटनाओं की रिपोर्टिंग पर नियमावली तत्काल जारी कर रहा है। लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास पर पहरा तो बढ़ा दिया गया है। मगर मूल मसला है कि पत्रकार का कार्ड शासन ने थोक में अंधाधुंध जारी किया है। राजधानी में ही हजार हो गए हैं। कैसे? क्यों? सूचना निदेशालय हुलिया देखकर मान्यता देना बंद करे। ये तीन कथित संवाददाता फर्जी पहचानपत्र, वीडियो कैमरा, माईक आदि लिए थे। इनमें लवलेश तिवारी तो अपने आप को “महाराज” कहता है। उसकी आयु महज 22 साल है, जब कि मान्यता कार्ड पाने के लिए कम से कम पांच वर्ष का पत्रकारी कार्य होना अनिवार्य है। अर्थात् फर्जी था। दूसरा हत्यारा अरुण मौर्य तो केवल 18 का है।