Jhooth Bole Kouwwa Katen ! झूठ बोले कौआ काटे : राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट
‘अंत समय पछताएगा, जब वोट जाएंगे छूट‘। वैसे, संत कबीर ने अपने सुप्रसिद्ध दोहे में ‘वोट’ के स्थान पर ‘प्राण’ शब्द का प्रयोग आध्यात्मिक भाव से किया था। हम तो जिक्र, राजनीति के मौजूदा संदर्भ में कर रहे।
भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में तो अयोध्या में रामलला का मंदिर हमेशा से रहा परंतु श्रीराम के अस्तित्व को नकारने, राम मंदिर का विरोध करने, अयोध्या जाने से बचने वाले नेता और राजनीतिक दल जिस तरह राम दरबार में हाजिरी लगाने में लगे हैं, उससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि 2022 में खासकर उप्र विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव का केंद्रबिंदु श्रीराम ही होंगे। किस्सा कुर्सी का जो है…
ताजातरीन, दीपावली से पहले न केवल सीएम केजरीवाल ने रामलला के दर्शन किये, दिल्ली सरकार की नि:शुल्क तीर्थ यात्रा योजना में अयोध्या को शामिल करने की घोषणा भी कर दी। सीएम केजरीवाल ने अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर पूजा अर्चना की और इसके बाद हनुमान गढ़ी भी गए। ‘आप’ सुप्रीमो ने सरयू आरती में भी हिस्सा लिया।
उन्होंने कहा कि अगर उप्र में उनकी सरकार बनती है तो प्रदेश के लोगों को फ्री में रामलला का दर्शन करवाया जाएगा। इसके पहले पार्टी के दो बड़े नेताओं मनीष सिसोदिया और संजय सिंह की अगुआई में अयोध्या से पार्टी ने 14 अक्टूबर को तिरंगा यात्रा शुरू की थी। इस दौरान दिल्ली के डिप्टी सीएम सिसोदिया ने कहा कि पार्टी उत्तर प्रदेश में भगवान राम के आदर्शों पर चलने वाली सरकार बनाएगी।
इसके पहले बसपा सुप्रीमो और उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती प्रबुद्ध समाज की बैठक के नाम पर अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलनों की शुरुआत करा चुकी थीं। मायावती के निर्देश पर बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने रामलला के दर्शन करने के साथ हनुमान गढ़ी और सरयू नदी के किनारे पूजा-अर्चना की थी। पहली बार राम मंदिर निर्माण स्थल पर बसपा का कोई नेता अधिकृत रूप से पहुंचा था। इसके बाद आईएएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने भी यूपी दौरे की शुरुआत अयोध्या से ही की थी।
दिसंबर 2020 में, समाजवादी पार्टी मुखिया और उप्र के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भी अयोध्या का दौरा किया था। तब उन्होंने कहा था, “भगवान राम उतने ही हमारे हैं जितने किसी और के हैं।” साथ ही अखिलेश यादव ने कहा कि वह जल्द ही अपने परिवार के सदस्यों के साथ अयोध्या जाएंगे।
उनसे पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी 2019 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या पहुंची थी। इस दौरान प्रियंका ने कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल खत्री के लिए रोड शो करने के साथ-साथ हनुमान गढ़ी के दर्शन किए थे। यही नहीं, अयोध्या में पिछले वर्ष भूमि पूजन से एक दिन पहले प्रियंका ने ट्वीट कर लिखा कि, राम सब में हैं, राम सब के साथ हैं।
भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने। दरअसल, प्रियंका के पिता राजीव गांधी ने साल 1989 के लोकसभा चुनाव अभियान का आगाज अयोध्या से किया था। उनके कार्यकाल में वीरबहादुर सिंह सरकार ने राम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाए थे, जिससे कई शताब्दियों से जूझ रहे श्रद्धालुओ को भगवान श्रीराम के दर्शन का अवसर मिला।
यह दौर था जब कांग्रेस शासनकाल में 1985 में दूरदर्शन पर रामानंद सागर के रामायण का प्रसारण किया गया था। ऐसे में इस मुद्दे को वोट में बदलने के उद्देश्य से राजीव गांधी ने यह कदम उठाया था ताकि भाजपा राममंदिर मुद्दे का फायदा न उठा सके। वहीं, अब राममंदिर का निर्माण हो रहा है, जिसे भाजपा अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश कर रही है। ऐसे में विपक्षी दल राम दरबार में हाजिरी लगा कर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मंदिर निर्माण को हरी झंडी भाजपा नहीं बल्कि कोर्ट के फैसले से मिली है।
झूठ बोले कौआ काटे
दरअसल, 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले तक कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल राम मंदिर निर्माण के एजेंडे को निशाने पर रखा। भाजपा, आरएसएस और अन्य हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं के नारे ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ के आगे भाजपा विरोधी पार्टियों ने ‘तारीख नहीं बताएंगे’ का तुकांत जोड़ दिया था। झूठ बोले कौआ काटे, यही ‘तारीख’ अब विपक्ष के गले में अटक गई है। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के अनुसार दिसंबर 2023 तक मंदिर में रामलला का दर्शन भक्तों को मिलने लगेगा।
बोले तो, उप्र में बीते 7 साल से सक्रिय ‘आप’ के सुप्रीमो और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने अब तक अयोध्या जाकर राम दरबार में मत्था टेकने की जरूरत नहीं समझी थी। केजरीवाल ने मार्च 2014 में एक रैली में कहा था, “जब बाबरी मंदिर का ध्वंस हुआ तब मैंने अपनी नानी से पूछा कि नानी आप तो अब बहुत खुश होंगी? अब तो आपके भगवान राम का मंदिर बनेगा।
नानी ने जवाब दिया– ना बेटा, मेरा राम किसी की मस्जिद तोड़ कर ऐसे मंदिर में नहीं बस सकता।” एक अन्य बयान में उन्होंने ‘मंदिर वहीं बनाएंगे, पर तारीख़ नहीं बताएंगे’ वाले नैरेटिव को आगे बढ़ाया था। वहीं 2018 में उन्होंने कटाक्ष किया था कि अगर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ‘स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ की जगह मंदिर बनाया होता तो देश का विकास नहीं होता। अगर ये मंदिर या मस्जिद बनाते रहे तो आपको अपने बेटे को मंदिर में पुजारी बनाना पड़ेगा।
झूठ बोले कौआ काटे, तिरंगा यात्रा के 24 घंटे के भीतर ही आम आदमी पार्टी रामनगरी अयोध्या को भूल गई। अगले ही दिन जारी 100 संभावित उम्मीदवारों की सूची में अयोध्या की जगह फ़ैजाबाद के नाम का उल्लेख किया गया। जबकि, आधिकारिक रूप से फैजाबाद का नाम अयोध्या बदला जा चुका है, आम आदमी पार्टी का निशाना कहीं और है।
दिसंबर 2018 में मनीष सिसोदिया ने एक निजी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘राम मंदिर और मस्जिद दोनों वालों से पूछ लो और अगर दोनों की सहमति हो तो वहां एक अच्छी यूनिवर्सिटी बना दो। हिंदुओं के बच्चे भी पढ़ें, मुसलमानों के बच्चे भी पढ़ें, क्रिश्चियन के भी पढ़ें, भारतीयों के भी पढ़ें, विदेशियों के भी पढ़ें…सबके बच्चे पढ़ें।
वहीं से राम के सिद्धांतों को निकालो। राम मंदिर बनाने से राम राज्य नहीं आएगा, पढ़ाने से राम राज्य आएगा।’ दूसरी ओर, ‘हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ का हवाला देते हुए संजय सिंह का वीडियो भी खूब वाइरल हुआ था।
अब बात सपा-बसपा की। 1993 में उप्र में सपा-बसपा ने भाजपा को हराने के लिए मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। बोले तो, तब भाजपा ने राम मंदिर का नारा दिया था। जवाब में सपा-बसपा ने नारा दिया था, ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम’। जातीय राजनीति से निकली दोनों पार्टियों की विचारधारा इसी से स्पष्ट हो गई थी। कांशीराम का यह बयान तो बहुत विवादित हुआ था, जब उन्होंने कह दिया था कि विवादित ढांचे की जगह शौचालय बनवा देना चाहिए।
बोले तो, दिसंबर 2015 में बसपा सुप्रीमो मायावती ने बाबा साहेब अंबेडकर की पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में अयोध्या के विवादित ढांचे को ‘बाबरी मस्जिद’ करार दिया था। अगस्त 2019 में छत्तीसगढ़ की एक रैली में मायावती ने कहा था कि पूरे देश में एक नहीं अनेक राम मंदिरों का निर्माण क्यों न कर लें तो भी इससे भाजपा चुनाव नहीं जीतेगी। अनेक अवसरों पर सपा नेता भी राम मंदिर को लेकर कई तरह के सवाल खड़े करते रहे।
झूठ बोले कौआ काटे, पूर्व सीएम और सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त को लेकर अपने 79 वें जन्मदिन के मौके पर कार्यकर्ताओं को फटकार लगाते हुए कहा था कि 1990 में अपने मुख्यमंत्री काल में देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं, उसमें 28 लोग मारे गए थे। अगर और मारने होते तो हमारे सुरक्षाबल और मारते। इतनी कम सीटें तो अयोध्या में गोलियां चलवाने के बाद भी नहीं आई थीं।
पिछले वर्ष सपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी लौटन राम निषाद ने कहा था कि भगवान श्री राम फिल्मों की तरह ही एक काल्पनिक पात्र थे। दूसरी ओर, दिसंबर 2015 में तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने राम मंदिर निर्माण का समर्थन करने पर उत्तर प्रदेश के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री ओमपाल नेहरा को बर्खास्त कर दिया था।
यही नहीं, राम मंदिर पर भाजपा को काउंटर करने के लिए कहा था कि उप्र में भगवान विष्णु के भव्य मंदिर का निर्माण करेंगे। सपा नेता आज़म खान ने सवाल खड़ा किया था कि किस राम मंदिर के निर्माण की बात की जा रही है, “अयोध्या में तो कई राम मंदिर हैं।”
बोले तो, कांग्रेस के नेता राम मंदिर विरोध मामले में सबसे आगे रहे हैं। राजीव गांधी के समय तक जो मंदिर मुद्दा कांग्रेस की मुट्ठी में था, वह सोनिया गांधी-राहुल गांधी की लीडरशिप में देखते ही देखते भाजपा के पाले में चला गया। 2013 में सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस सरकार ने भगवान राम के अस्तित्व को नकारा था।
सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के बहस के दौरान कांग्रेस सरकार ने शपथ पत्र में कहा था कि भगवान श्रीराम कभी पैदा ही नहीं हुए थे, कि भगवान श्रीराम केवल कोरी कल्पना हैं।
कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान तीन तलाक और हलाला की तुलना श्रीराम से की थी। सुप्रीम कोर्ट में भी सिब्बल ने राम मंदिर केस को लटकाने की कोशिश की थी। मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह भी अकसर विवादित बयान देते रहे।
दिग्विजय सिंह ने तो श्रीराम मंदिर भूमिपूजन के मुहर्त पर भी सवाल उठाए थे। प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा ने राम मंदिर के लिए चंदा देने से मना करते हुए बयान दिया, “पहले मैंने अगर किसी चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारे में चंदा दिया होगा तो मैं मंदिर में चंदा दूंगा। जिस दिन देश में देखा कि सबके लिए चंदा इकट्ठा किया जा रहा है, उस समय मैं चंदा दूंगा।”
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झूठ बोले कौआ काटे, 2014 और 2019 के लोकसभा तथा 2017 के उप्र विधानसभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत में मोदी-योगी का चेहरा तो मायने रखता ही है, राम मंदिर आंदोलन का भी बड़ा योगदान रहा है।
‘सुप्रीम फैसले’ से पहले वाला सुर उप्र में बदलना कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों की विवशता है क्योंकि आस्था में जात-पांत की दीवारें पहले भी दरक चुकी हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ न केवल तीन दर्जन से अधिक बार अयोध्या का दौरा कर चुके हैं, बल्कि चर्चा तो यह भी है कि वे यहीं से विधानसभा का चुनाव भी लड़ सकते हैं। इसके मायने बड़े हैं।
जाति-धर्म की दीवारें अगर फिर टूटीं तो उप्र एक नया इतिहास रचेगा। उप्र ही 2024 की भूमिका भी रचेगा। सो, डैमेज कंट्रोल के लिए राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट। अंत समय पछताएगा, जब वोट जाएंगे छूट!