Jhuth Bole Kauva Kaate: इतिहास पर जमी धूल पोंछने का समय

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12 मई को चार धार्मिक स्थलों को लेकर अलग-अलग न्यायालयों में सुनवाई हुई। मुद्दे इतिहास पर जमी धूल पोंछने के हैं। काशी की ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे और फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी कराये जाने के मामले पर जिला न्यायालय ने कड़ा रूख अपनाया, तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत को चार महीने के भीतर संबंधित याचिकाओं को निपटाने का आदेश दिया। वहीं, मध्यप्रदेश के धार मामले में भोजशाला विवाद को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने हिंदू संगठन की याचिका को स्वीकार कर लिया। दूसरी ओर, संसार के सात आश्चर्यों में से एक आगरा के ताजमहल के 22 बंद कमरों की जांच की मांग संबंधी याचिका को, जिसमें दावा किया गया कि ताजमहल में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां और शिलालेख हैं, हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने नाराजगी जताते हुए खारिज कर दिया।

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दरअसल, भाजपा के अयोध्या मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह की ओर से दायर याचिका में ताजमहल की जगह तेजोमहालय या शिव मंदिर होने का दावा किया गया। रजनीश के वकील रूद्र विक्रम सिंह का तर्क है कि 1600 ईसवी में आए तमाम यात्रियों ने अपने यात्रा वर्णन में मानसिंह के महल का जिक्र किया है, जबकि कहा जाता है कि ताजमहल 1653 में बना था। वहीं 1651 का औरंगजेब का एक पत्र सामने आया, जिसमें वह लिखता है कि अम्मी का मकबरा मरम्मत कराने की जरूरत है। दूसरी ओर, राजस्थान के राज परिवार की राजसमन्द सांसद दीया कुमारी ने ताजमहल के बंद हिस्से को खोलने की मांग करते हुए दावा किया है कि ‘ताजमहल हमारी प्रॉपर्टी थी और यह प्रॉपर्टी हमारी विरासत रही थी’। ‘हमारे पोथीखाने में जमीन से जुड़े दस्तावेज रखे हैं’।

बताया जाता है कि ताजमहल के बंद कमरे मुख्य मकबरे और चमेली फर्श के नीचे बने हैं। 88 साल पहले 1934 में यह 22 कमरे खोले गए थे। चमेली फर्श पर यमुना किनारा की तरफ बेसमेंट में नीचे जाने के लिए दो जगह सीढ़ियां बनी हैं। बताते हैं कि सुरक्षा कारणों से इनके ऊपर लोहे का जाल लगाकर बंद कर दिया गया है। 45-50 साल पहले तक सीढ़ियों से नीचे जाने का रास्ता खुला हुआ था। यदि इन कमरों को खोलकर निष्पक्ष जांच होती है, तो कुछ नया रहस्य सामने आ सकता है।

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आगरा के ताजमहल के बंद कमरों को खोलने की याचिका मामले पर कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते कहा कि पीआईएल को मजाक ना बनाएं। जस्टिस डीके उपाध्याय ने कहा कि ताजमहल किसने बनवाया पहले जाकर रिसर्च करो। यूनिवर्सिटी जाओ, पीएचडी करो तब कोर्ट आना। रिसर्च से कोई रोके तब हमारे पास आना। अब इतिहास को आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा।

ज्ञानवापी का रहस्य होगा उजागरः ज्ञानवापी विवाद में वाराणसी की कोर्ट का फैसला भी आ गया। कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की अपील खारिज करते हुए कहा कि अजय मिश्रा कोर्ट के कमिश्नर बने रहेंगे, साथ उनके सहयोग के लिए दो और कमिश्नर की नियुक्ति कर दी। कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी का तहखाना भी खोला जाएगा। अदालत ने साथ ही पूरे मस्जिद परिसर का सर्वे करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जबतक मस्जिद के कमीशन की कार्रवाई पूरी नहीं होती है तब तक सर्वे जारी रहेगा। कोर्ट ने सर्वे में अड़ंगा डालने की कोशिश करने वालों पर एफआईआऱ करने का आदेश भी दिया। कमिश्नर की रिपोर्ट 17 मई तक पेश करनी होगी।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवादः इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा की अदालत को मूल वाद से जुड़ी सभी अर्जियों का निपटारा अधिकतम 4 महीने में करने के निर्देश दिए हैं। हाईकोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य पक्षकारों के सुनवाई में शामिल ना होने पर एकपक्षीय आदेश जारी करने का निर्देश दिया। इस मामले में मथुरा की एक अदालत में श्री कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई है। पिछले सप्ताह मथुरा की जिला अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। श्रीकृष्ण जन्मभूमि में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी मांग बहुत पुरानी है। कोर्ट ने साल 2020 में मस्जिद को हटाने वाली याचिका खारिज कर दी थी।

भोजशाला विवादः उधर, मध्य प्रदेश में धार जिले में स्थित भोजशाला विवाद से जुड़ी याचिका को एमपी हाईकोर्ट की इंदौर पीठ स्वीकार कर लिया। याचिका में कहा गया है कि भोजशाला सरस्वती मंदिर है, यहां मुस्लिमों को नमाज पढ़ने से रोका जाना चाहिए। पीठ ने याचिका स्वीकार कर आठ लोगों को नोटिस जारी किया है।

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इसमें केंद्र सरकार भी शामिल है। धार स्थित भोजशाला का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। हिंदुओं का दावा है कि भोजशाला सरस्वती का मंदिर है। दूसरी ओर, मुस्लिम इसे कमाल मौलाना की दरगाह बताते हैं। मगर हर साल सरस्वती पूजा के अवसर पर दोनों समुदाय के लोग सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हैं। एक तरफ मां सरस्वती की पूजा होती है तो दूसरी तरफ अजान होती है। अब एक हिंदू संगठन हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने हाईकोर्ट की इंदौर पीठ में एक याचिका दायर की है।

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लाल किले का सचः लगे हाथ बात दिल्ली के लालकिले की। बताया जाता है कि विश्व के इस सर्वश्रेष्ठ किले के निर्माण की शुरुआत मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा 1638 ईसवी में 12 मई के दिन करवाई गई थी। लेकिन, परिस्थितिजन्य साक्ष्य सिद्ध करते हैं कि इसके सैकड़ों वर्ष पूर्व लालकिले का अस्तित्व था। वास्तव में 736 ई0 में दिल्ली में तोमर राजवंश की स्थापना अनंगपाल सिंह तोमर प्रथम नाम के राजा द्वारा की गई थी।

इसी तोमर वंश में आगे चलकर 1051 ईस्वी से 1081 ई0 तक अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय नाम के प्रतापी शासक ने शासन किया। इसी शासक ने अपने शासनकाल में 1060 ईस्वी के लगभग लालकोट नाम का किला बनवाया। पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल (1169-119 ईसवीं) में इस क्षेत्र का विस्तार हुआ और इसे नया नाम ‘किला राय पिथौरागढ़’ मिला।

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‘तारीखे फिरोजशाही’ के पृष्ठ संख्या 160 (ग्रन्थ 3) में लेखक लिखता है कि, “सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल (लाल प्रासाद/ महल) की ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया।”

‘अकबरनामा’ और ‘अग्निपुराण’ दोनों ही जगह इस बात का वर्णन है कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और गौरवशाली दिल्ली का निर्माण करवाया था। शाहजहां से 250 वर्ष पहले ही 1398 ईस्वी में एक विदेशी तुर्क आक्रमणकारी जेहादी तैमूरलंग ने भी पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया है। उसने अपने विवरण में जामा मस्जिद को काली मस्जिद के नाम से पुकारा है। जबकि आज के इतिहासकार इस जामा मस्जिद को भी शाहजहां द्वारा निर्मित बताते हैं।

वास्तव में इसे काली मस्जिद कहे जाने का अर्थ यह था कि यहां पर हिन्दू देवी (काली) का मंदिर था। तैमूरलंग के विवरण से पता चलता है कि पुरानी दिल्ली को भी शाहजहां के द्वारा बसाया जाना कपोल कल्पित है। यद्यपि शाहजहां ने अपने शासनकाल में दिल्ली को शाहजहानाबाद का नाम देकर पुरानी दिल्ली को कब्जाने का प्रयास अवश्य किया था। स्पष्ट है कि शाहजहां ने हिंदू राजा रहे अनंगपाल सिंह तोमर द्वितीय के द्वारा निर्मित लालकोट को ही कुछ नया स्वरूप देकर कब्जाने का प्रयास किया था। उसी का नाम लालकोट के स्थान पर लालकिला कर दिया गया।

Jhuth Bole Kauva Kaate: इतिहास पर जमी धूल पोंछने का समय

 

बोडलियन लाइब्रेरी, ऑक्सफोर्ड में संरक्षित शाहजहां के समय की पेंटिंग में 1628 में लालकिले के अंदर शाहजहां को फारसी राजदूत का स्वागत करते हुए दर्शाया गया है। स्पष्ट है कि किला शाहजहां से बहुत पहले से मौजूद था। लाइब्रेरी में संरक्षित इस पेंटिंग को 14 मार्च 1971 के इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया (पृष्ठ 32) में प्रकाशित किया गया था। चूंकि शाहजहां अपने राज्याभिषेक के वर्ष में किले में था, इसलिए यह दस्तावेजी साक्ष्य उस धारणा को खारिज करता है कि उसने किला बनवाया था।

लालकिले के खास महल में ऊपर की ओर मुड़ी हुई तलवारों की एक जोड़ी है, मूठ के ऊपर पवित्र कलश, कमल की कली और इसके ऊपर संतुलित न्याय के तराजू की एक जोड़ी है। चारों ओर बिंदीदार सूर्य का प्रतिनिधित्व है जिनसे भारतीय शासक राजवंशों ने वंश (सूर्य वंश) का दावा किया था। तलवार की नोक पर दो छोटे शंख हैं जिन्हें हिंदू परंपरा में पवित्र माना जाता है। आधार पर बाएं और दाएं कोनों पर बड़े शंख देखे जा सकते हैं।

ध्यान देने योग्य है कि वहां पर एक विशेष महल में सूअर अर्थात ‘वराह’ के मुंह वाले चार नल लगे हुए हैं। इससे पता चलता है कि यह किसी हिंदू शासक द्वारा ही बनवाया गया है। सूअर को कोई भी मुस्लिम शासक इस प्रकार सम्मान पूर्ण स्थान नहीं दे सकता। लालकिला के दीवाने खास में ‘केसर कुंड’ नाम से बने कुंड के फर्श पर हिंदुओं में पूज्य कमल पुष्प अंकित है। वैसे भी केसर कुंड शब्द संस्कृत का शब्द है, जिसे कोई भी मुस्लिम नहीं अपना सकता। लाल किले के दिल्ली गेट (दिल्ली दरवाजा) के किनारे दो हाथियों की आदमकद मूर्तियाँ किले के हिंदू मूल का एक अचूक संकेत हैं। किलों और महल के द्वारों पर हाथियों की मूर्तियों के निर्माण की अवधारणा को ग्वालियर, उदयपुर और कोटा के महलों की जांच करके अच्छी तरह से आंका जा सकता है।

दीवाने खास और दीवाने आम मे मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्व नही है। दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल (आमेर–पुराना जयपुर) से मिलती है जो कि राजपूताना शैली मे बना हुआ है। लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकर मंदिर, दोनो ही गैर मुस्लिम हैं जो कि शाहजहां से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए थे।

यही नहीं, एक भी इस्लामी शिलालेख मे लालकिले का वर्णन नही है। तोमर वंश ने 736 में लालकोट की स्थापना की। पृथ्वीराज रासो ने अनंगपाल तोमर को लालकोट के संस्थापक के रूप में नामित किया, जिसका नाम कुतुब परिसर में दिल्ली के लौह स्तंभ पर अंकित है, जो चंद्र या चंद्रगुप्त द्वितीय के नाम पर है। कहा जाता है कि शाहजहां ने लालकोट में कुछ हेरफेर और बाग-बगीचे का निर्माण करवाया था।

झूठ बोले कौआ काटेः इतिहास गवाह है कि मुगलों ने भारत में सांस्कृतिक आक्रमण किया और अनेकों मंदिरों को तोड़ा। अगर ऐतिहासिक तथ्यों पर बात की जाए तो ताजमहल वाली जगह शाहजहां ने जयपुर के राजा जयसिंह से ले ली थी। 17 एकड़ में यहां पर मानसिंह महल से लेकर अनेक प्रकार की खूबसूरत चीजें बनी हुई थी। मानसिंह महल के उपरी ढांचे को ही ताजमहल का रूप देने की बात कही जाती है। यहां शिव मंदिर होने की बात भी कही जाती है। ताजमहल का निर्माण 1638 से 1648 तक हुआ और इस बात की भी संभावना हो सकती है कि वहां काम करने वाले कारीगरों ने उन मूर्तियों को किसी एक जगह पर रखकर बंद कर दिया हो।

ऐसे में सवाल उठना तो वाजिब है कि आखिर ताजमहल के 22 कमरों का क्या राज है और कौन से सुरक्षा कारण हैं, जिनके कारण इन्हें बंद रखा गया है। हालांकि, फरवरी 2018 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया आगरा की एक अदालत में शपथपत्र दाखिल कर कह चुका है कि ताजमहल को वास्तव में मुगल सम्राट शाहजहां ने एक मकबरे के रूप में बनवाया था। इसमें भी दो राय नहीं कि 16 वीं सदी में यमुना नदी के तट पर बना ताजमहल वाकई में अद्भुत है।

लेकिन, इतिहास पर जमी धूल हटानी तो होगी ही! आखिर कब तक हिन्दु धर्म को समाप्त करने वालो को महिमामंडित किया जाता रहेगा। हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान सरीखे वीरों को भुलाया जाता रहेगा। सिकन्दर को भारत की धरती से मार भगाने वाले हिन्दू सम्राट पोरस की जगह “विश्व विजेता सिकन्दर” पढ़ाया जाता रहेगा। देश की सरकारों को चाहिए कि लालकिला और ताजमहल सहित प्रत्येक ऐसे ऐतिहासिक स्थल की पड़ताल कराने की पहल करे जिससे कम से कम देश के गौरवशाली अतीत-इतिहास के बारे में देशवासियों को पता तो चले।

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और ये भी गजबः क्या आप जानते हैं कि ताजमहल दो बार नीलाम भी हो चुका है। इसके खरीददार भारतीय और ब्रिटिश दोनों थे। पहली बार इसकी ऊंची बोली अंग्रेज अफसर ने ही लगाई थी। बात तो ताजमहल को लंदन ले जाने की भी हुई थी। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। इतिहासकार आर. रामनाथ की बुक ‘ताजमहल’ और ब्रिटिश राइटर एच.जी. केन्स की बुक ‘आगरा एंड नेबरहुड’ में कई रोचक खुलासे हुए हैं।

‘आगरा एंड नेबरहुड’ के अनुसार 1931 में ताजमहल की नीलामी कराई गई थी। नीलामी का आदेश तत्कालीन बंगाल के गर्वनर लॉर्ड विलियम हेनरी कैवन्डिश ने दिया था। इसके लिए बाकायदा कोलकाता के अखबार में विज्ञापन दिया गया था। मथुरा के सेठ लख्मीचंद जैन ने भी नीलामी में ऊंची बोली लगाई थी। इसके लिए उन्होंने सात लाख रुपये की बोली लगाई थी। इस तरह सेठ ने दुनिया के सातवें अजूबे को खरीद लिया था। नीलामी का लोगों ने जब खूब विरोध किया, तो उन्हें ताजमहल पर कब्जा लेने का ख्याल छोड़ना पड़ा।

द्वितीय विश्व युद्ध, 1965 और 1971 में भारत पाक युद्ध, और 9/11 के अमेरिकी हमले के समय ताजमहल को कपड़े और बांस की लकड़ियों से ढक दिया गया था ताकि इसे दुश्मन के हमलों से बचाया जा सके। बताते हैं कि जब शाहजहां ने ताजमहल के पूरा बन जाने के बाद सभी मजदूरों के हाथ काट देने की घोषणा की ताकि वे कोई और ताजमहल न बना सकें, तो मजदूरों ने इसकी छत में एक ऐसी कमी छोड़ दी जिससे कि शाहजहां से बदला लिया जा सके और यह इमारत ज्यादा दिन न टिक सके।

आज भी इसी छेद के कारण मुमताज महल का मकबरा नमी से ग्रसित रहता है। दिन के अलग-अलग समय के हिसाब से इसका रंग बदलता है, सुबह यह गुलाबी दिखता है और शाम को दूधिया सफ़ेद और चांदनी रात में सुनहरा दिखता है। शाहजहां का यह सपना था कि वह अपने लिए भी एक काला ताजमहल बनवाए लेकिन उसके बेटे औरंगजेब के द्वारा कैद किये जाने के कारण वह अपना सपना पूरा नही कर सका था |

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