

June 5, Environment Day: एक पेड़ का अवसान”
विनीता तिवारी
जब पेड़ पौधों से प्यार हो जाता है ,तब हर रोज एक संस्मरण बन जाता है!!मेरे पास बहुत से संस्मरण हैं, पर एक याद ने मुझे प्रकृति के करीब ही नहीं लाया अपितु वृक्ष और जीवन, वृक्ष और अध्यात्म ,वृक्ष और ईश्वर आदि से साक्षात्, साक्षात्कार करवाया .
यादें कुछ ऐसी हैं, मैं जब शादी कर अपने दुबे कॉलोनी वाले घर में आई, मैंने कुछ भी नहीं देखा और मेरा ध्यान उस विशाल आम के वृक्ष पर केंद्रित हो गया जो पक्षियों के कलरव से गुलजार था!!मैं रुक कर कुछ पल उसे देखती इससे पहले ही किसी ने चुटकी ली, चाची जल्दी अंदर चलो सब पक्षी आ चुके हैं कोई भी बीट कर देगा ,सब हंस पड़े मैं भी खिसिया गई. पर उसी पल से मेरा उस पेड़ से ना जाने कैसा रिश्ता जुड़ गया कि मैं बस उसी को देखती रहती थी .घर में जब बुजुर्गों से उस पेड़ के बारे में पूछा तब वह बताने लगे यह कम से कम 80 वर्ष पुराना है!!40 वर्ष से तो हम ही इसे ऐसा ही देख रहे हैं.मैं बहुत आश्चर्यचकित थी.यह हर साल फलों से लद जाता है, क्या पता हम पर कर्ज चढ़ा रहा है या हमारा कर्जदार है, कभी मैं उनसे पक्षियों के बसेरों के बारे में बात करती, कौन से पक्षी को इन्होंने आश्रय दिया है तब वही बताते इस पेड़ में एक काले सांप का जोड़ा भी है मैं अब अवाक सुनती रह गई! यदा-कदा कदा पेड़ पर कभी दिखता है. तने के खोकर में लकड़ फोड़वा और मिट्ठू के बसेरे हैं.बीच में सासू मां बोलीं- कौवा घोंसला बनाता है तब हम बारिश का अंदाजा लगा लेते हैं जितने ऊपर बनाएगा उतनी ज्यादा बारिश होगी !!जब मैंने उनसे पूछा कि यह जुड़े- जुड़े से पत्ते क्यों दिख रहे हैं उन्होंने बताया यह लाल चीटों ने अपनी लार से पत्तों को जोड़कर अपने घरोंदे बनाए हैं !एक घरौंदे में हजारों चीटे एक साथ रहते हैं ,वही मधुमक्खी का बड़ा सा छत्ता भी है, छोटे बड़े गिरगिट हैं ,मुझे थोड़ा सा डर लगा!तब वे बोलीं कभी किसी का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं !!गिलहरी की उछल कूद, अंजुरी भर -भर कर खाना मुझे बहुत लुभा रहा था!!यह इतने जीवो का आश्रय स्थल यह एक पेड़ मन कृतज्ञता से भर उठा!!उसके प्रति पित्र तुल्य भाव आ गए मैं सोचने लगी यहां पक्षियों को रहने को तो है पर दाना पानी नहीं है धीरे-धीरे इनसे कह कर उसकी व्यवस्था भी की और यह व्यवस्था आज भी अनवरत जारी है!
मैं सुबह उठती, सोने से पहले, कहीं बाहर जाना हो ,कोई त्योहार हो उस पेड़ का स्पर्श कर आशीर्वाद के लिए विनती जरूर करती !हर गर्मी में छोटा देसी आम भरपूर देता था.2004 में भी वह कैरिओं से लदा था! 12 जून से 18 जून तक अनवरत वर्षा हुई.मैं सोचती थी मुझे सांप का जोड़ा एक बार दिख जाए उस दिन मैंने देखा सांप का जोड़ा पेड़ से निकला और तेजी से बगीचे में लगे बिजली के स्विच बोर्ड में घुसने की असफल कोशिश करता रहा और बिजली का झटका लगा और वही उनके प्राण पखेरू उड़ गए !!इन्हें शॉप से बुलाया नाग को जनेऊ धारण कर नागिन को लाल चुनरी औढ़ा कर उनका दाह संस्कार किया! हम उसी गम में डूबे थे बात ही खत्म नहीं हो रही थी, यह फिर शॉप पर चले गए लौटे तो कुछ इनका मूड ठीक नहीं था मेन गेट खोलकर अंदर आ रहे थे तब स्कूटर के हैंडल पर इन्हें बार-बार किसी के स्पर्श का एहसास हो रहा था, मानो कोई इन्हें रोक रहा था इन्होंने स्कूटर बाहर बगीचे में रखा और रोज की तरह बगीचे की लाइट लगाने के लिए स्विच बोर्ड तक गए लगा कोई ऐसा कह रहा है यहां से हट जा अब मैं जा रहा हूं पर हम मन की कब सुनते हैं ,इन्होंने दरवाजा नॉक किया और पीछे पलट कर देखा इतना विशाल आम का पेड़ धीरे धीरे बिना किसी आहट के जमीन पर लेट गया .हतप्रभ थे हम सभी यह कभी आधा मिनट भी लेट हो जाते तो पेड़ इन पर ही गिर जाता.पर क्यों उन्हें तो हम अपने पित्र के तुल्य मानते थे, हम लोग बहुत रोए बहुत दिन तक रोए आज भी याद करके मन द्रवित हो जाता है, गला भर आता है !!वह कच्चे-पक्के आम से लदा गिरा था.
हमने अपने हाथों से आम तोड़े और एक पके आम की गुठली का विधिवत रोपण किया ,बरसात के दिन थे गुठली अंकुरित हुई ,वह हमारे लिए जश्न- सा था !!वह पेड़ आज 45 फीट का हो गया है, कभी इक्का-दुक्का फल आते हैं, पर हमने अपने पित्र पुरुष के अंश को संजो कर रखा है .हम त्यौहार पर दिया लगाते हैं और अपने यादों के सुमन अर्पित करते हैं! !!
विनीता तिवारी
अध्यक्ष ,इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर
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