

कविता: बाजरे के पौधे
वन्दिता श्रीवास्तव
उग
आये हैं
सावन मे
मिट्टी के
दालान मे
बाजरे के
पौधे
हां
मां ने
छिटकाये, थे
रसोई
से
कुछ दाने
चिरैय्या के
लिये
जेठ की
दुपहरिया
मे।।
वन्दिता श्रीवास्तव
वन्दिता श्रीवास्तव की कविता -कहीं दूर चिरैय्या की आवाज
30.In Memory of My Father: हमारे आगमन पर हमेशा चाक से रंगोली बनाते,बन्दनवार सजाते मेरे डॉक्टर पिता