ज्योतिरदित्य-नरेंद्र बदलेंगे अपनी लोकसभा सीट….!
– केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को क्या अपनी परंपरागत लोकसभा सीट गुना-शिवपुरी में अब भी खतरा है? उनसे जुड़े सूत्र और सर्वे रिपोर्ट तो यही कहते हैं। सिंधिया और भाजपा ने गुना, ग्वालियर सीटों को लेकर अलग-अलग सर्वे कराए हैं। रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इसके अनुसार सिंधिया गुना से चुनाव लड़े तो फिर हार सकते हैं, अलबत्ता ग्वालियर सीट से उनकी जीत की ज्यादा संभावना है। हालांकि भाजपा के अंदर मौजूद महल विरोधी नेता यहां भी उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं।
इस कारण सिंधिया गुना-शिवपुरी छोड़कर ग्वालियर लोकसभा सीट से अगला चुनाव लड़ सकते हैं। वैसे भी गुना-शिवपुरी से भाजपा सांसद केपी यादव के साथ सिंधिया की पटरी अब भी नहीं बैठ पा रही है जबकि वे सिंधिया के पुराने विश्वस्त रहे हैं। यादव, सिंधिया के खिलाफ केंद्रीय नेतृत्व को पत्र तक लिख चुके हैं। एक और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी अपनी सीट बदलने की फिराक में हैं। वे अपने लिए भोपाल सीट को चुन सकते हैं। भोपाल अपेक्षाकृत ज्यादा सुरक्षित सीट है। यह बात अलग है कि भोपाल पर भाजपा के कई अन्य नेताओं की भी नजर है। तोमर ग्वालियर और मुरैना सीटों से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उनकी जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं रहा। लिहाजा, वे भी सुरक्षित सीट की तलाश में हैं।
उमा जी, सच में बन गई आप हंसी की पात्र….
– पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती आखिर कह ही बैठीं कि वे शराबबंदी मसले पर हंसी की पात्र बन गई हैं। सच भी यही है। अलबत्ता उन्हें इसका अहसास बहुत देर से हुआ। शराबबंदी को लेकर घोषणाओं की श्रंखला में उन्होंने फिर एक नई घोषणा कर दी। उन्होंने एलान किया है कि यदि उनके अनुसार प्रदेश की शराब नीति न बनी तो वे 7 नवंबर से अपना घर छोड़ देंगी। किसी दूसरे भवन में भी नहीं रहेंगी। किसी नदी किनारे, पेड़ के नीचे या मैदान में टेंट अथवा झोपड़ी बनाकर रहेंगी। उमा की इस घोषणा पर भी लोग हंस रहे हैं।
वे सन्यासिन हैं, कुटिया, झोपड़ी, टेंट में रहें या मकान में, क्या फर्क पड़ता है? उनकी इस घोषणा से सरकार पर क्या दबाव बनेगा, कुछ नहीं। न उनके लट्ठ लेकर निकलने की घोषणा पर शराब बंद हुई, न दुकानों में पत्थर-गोबर फेंकने और न ही उनकी पदयात्रा की घोषणा से। उनके ये एक्शन तो आंदोलन के प्रतीक थे भी, लेकिन वे कहीं भी रहें, सरकार की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। लोगों को लगने लगा है कि उमा हर बार अपने बचाव का रास्ता खोज लेती हैं। कभी सरकार के नशा मुक्ति अभियान के कारण अपना आंदोलन स्थगित कर देती हैं, कभी मुख्यमंत्री के आश्वासन पर पीछे हट जाती हैं। शराबबदंी पर उन्होंने इतनी पलटी मारी है कि वे अपनी साख और भरोसा दोनों खो रही हैं।
भाजपा में ऐसे कैसे होगा पीढ़ीगत बदलाव….!
– भाजपा नेतृत्व ने पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव के लिए कुछ मापदंड निर्धारित कर रखे हैं। ये दरकिनार किए जाते हैं तो नेतृत्व की मंशा पर सवाल उठते हैं। मोटे तौर पर युवा मोर्चा में मंडल, जिले से लेकर प्रदेश पदाधिकारी 25 से 40 वर्ष की आयु तक के हो सकते हैं। भाजपा में जिलाध्यक्षों के लिए 45 से अधिकतम 50 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित है। कई बार देखा गया जब जिलाध्यक्ष 52-53 साल का हुआ और उसकी छुट्टी हो गई अथवा नियुक्ति में इस आयु सीमा के दावेदार नेता पर विचार ही नहीं हुआ। संकट आता है तो ये सारे मापदंड एक किनारे धर दिए जाते हैं। अभी भाजपा ने कुछ नए जिलाध्यक्ष नियुक्त किए हैं।
इनमें ग्वालियर से अभय चौधरी भी हैं। अभय दो बार लगभग 20 और 10 साल पहले अध्यक्ष रह चुके हैं। इनकी आयु 65 से कम नहीं होना चाहिए लेकिन फिर अवसर मिल गया। वजह दो हैं। एक, भाजपा के बड़े नेता का वरदहस्त और दूसरा, ग्वालियर नगर निगम का चुनाव। इसमें भाजपा को करारी शिकस्त मिली। कांग्रेस जीती ही, आम आदमी पार्टी का प्रत्याशी भी 45 हजार वोट ले उड़ा। सवाल है कि यदि मापदंडों को ऐसी तिलांजलि दी जाएगी तो पार्टी के अंदर पीढ़ीगत बदलाव कैसे होगा? फिर 50 से 60 साल की आयु वाले अन्य नेताओं ने क्या गलती है?
सच्चा-झूठा कोई भी हो, फजीहत कांग्रेस की….
कांग्रेस के विधायक सच्चे हों या शिकायत करने वाली महिला, फजीहत कांग्रेस की ही हुई और निशाने पर आ गए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ। मामला रेवांचल एक्सप्रेस में महिला के साथ बदसलूकी का है। महिला का आरोप है कि कांग्रेस विधायकों सतना के सिद्धार्थ कुशवाहा और कोतमा के सुनील सराफ ने शराब के नशे में उसके साथ बदसलूकी की। महिला के साथ एक बच्चा भी था। महिला के पति ने ट्वीट के जरिए मदद मांगी। जीआरपी में विधायकों की शिकायत हुई। जीआरपी महिला को अपनी सुरक्षा में लेकर भोपाल आई। है न जनता द्वारा चुने इन जनप्रतिनिधियों के लिए शर्म से डूब मरने वाली बात, इन्होंने अपने साथ कांग्रेस की भी छीछालेदर करा दी। भाजपा की तरफ से सवाल सीधे कमलनाथ की ओर दागा गया। वे बताएं इन विधायकों पर क्या कार्रवाई कर रहे हैं? विधायक सफाई दे रहे हैं। सिद्धार्थ का कहना है कि उन्होंने कोई अभद्रता नहीं की, इसके विपरीत महिला उनकी बर्थ पर बच्चे के साथ लेटी थी तो अपनी बर्थ उसके लिए छोड़ दी। दूसरे विधायक सुनील सराफ भी किसी छेड़खानी से इंकार कर रहे हैं। दोनों शराब को लेकर मेडिकल जांच की बात कर रहे हैं। बहरहाल, सच्चा-झूठा चाहे जो हो, फजीहत कांग्रेस की हुई। भरोसा भी महिला की बात पर किया जा रहा है।
अफसरों की खुशामद पर कैलाश की वक्रदृष्टि….
– भाजपा के एक बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय की इंदौर के अधिकारियों की तेल मालिश करने वालों पर वक्रदृष्टि पड़ी है। वे इस बात से खफा हैं कि इंदौर को स्वच्छता सहित कई क्षेत्रों में पुरस्कार मिलने का श्रेय यहां पदस्थ अफसरों को दिया जा रहा है। मीडिया उनके गुणगान कर ही रहा है, नेता भी उनकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते। अफसरों के कसीदे पढ़े जा रहे हैं। लिहाजा, उन्होंने सभी को नसीहत दे डाली है। कैलाश ने कहा है कि यदि सब कुछ अफसरों की बदौलत होता तो ये अन्य शहरों में भी पदस्थ रहे हैं, उन जिलों को भी पुरस्कार मिल जाता। पर ऐसा नहीं हुआ। मतलब साफ है कि तारीफ, सम्मान और प्रशंसा के हकदार ये अफसर नहीं, इंदौर के लोग और छोटे कर्मचारी, सफाई कामगार आदि हैं। कैलाश ने नसीहत दी है कि बंद करिए अफसरों की यह जी-हजूरी और पैरवी। उनके इस रुख से हर कोई हैरान है। कोई कह रहा है कि कैलाश को केंद्रीय नेतृत्व कोई काम नहीं दे रहा और प्रदेश सरकार भी उनकी अनदेखी करती है, इसकी वजह से वे गुस्से में हैं। अफसर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भरोसे के हैं, इसलिए उनके जरिए अपनी ही भाजपा सरकार पर निशाना साधा गया है। वजह जो भी हो, कैलाश इस बयान से चर्चा में हैं। सच भी है, इंदौर के अफसर कुछ ज्यादा ही शोहरत हासिल कर रहे हैं।