कबीरा खड़ा बाज़ार में…

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कबीरा खड़ा बाज़ार में…

संत तो हजारों हुए हैं, पर कबीर ऐसे हैं, जैसे पूर्णिमा का चांद- अतुलनीय, अद्वितीय। कबीर वह हैं जैसे अंधेरे में कोई अचानक दीया जला दे। कबीर ऐसे अद्भुत हैं जैसे मरुस्थल में कोई अचानक मरुद्यान प्रकट हो जाए। कबीर की व्याख्या नहीं हो सकती, उन्हें तो पुनरुज्जीवन दिया जा सकता है। उन्हें अवसर दिया जा सकता है कि वे मुझसे बोल सकें। तुम ऐसे ही सुनना, जैसे यह कोई व्याख्या नहीं है; जैसे बीसवीं सदी की भाषा में, पुनर्जन्म है। जैसे कबीर का फिर आगमन है। और बुद्धि से मत सुनना। कबीर का कोई नाता बुद्धि से नहीं।

बीसवीं सदी में यह भाव थे ओशो के चौदहवीं सदी में प्रकट हुए कबीर के बारे में। और यही भाव इक्कीसवीं सदी में भी कबीर के बारे में सच हैं और कबीर अनंतकाल तक इन्हीं भावों संग सदा जन-जन के ह्रदय में जिंदा रहेंगे। कबीर तो दीवाने हैं। और दीवाने ही केवल उन्हें समझ पाए और दीवाने ही केवल समझ पा सकते हैं। कबीर मस्तिष्क से नहीं बोलते हैं। यह तो हृदय की वीणा की अनुगूंज है। और तुम्हारे हृदय के तार भी छू जाएं, तुम भी बज उठो, तो ही कबीर समझे जा सकते हैं। भाषा पर अटकोगे, तो चूकोगे; भाव पर जाओगे तो पहुंच जाओगे। भाषा तो कबीर की टूटी-फूटी है। बिना पढ़े-लिखे थे। लेकिन भाव अनूठे हैं कि उपनिषद फीके पड़ें, कि गीता, कुरान और बाइबिल भी साथ खड़े, होने की हिम्मत न जुटा पाएं। भाव पर जाओगे तो…। भाषा पर अटकोगे तो कबीर साधारण मालूम होंगे। भाव पर जाओगे तो कबीर बाजार में खड़े मिलेंगे इन भावों के साथ…

“कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।”

आज यानि 18 जून 2023 को कबीर साहेब का 626वां प्रकटोत्सव दिवस था। ह्रदय प्रदेश के ह्रदय नगर हरदा में संत कबीर के प्रकटोत्सव को उनके भावों संग मनाया गया। कृषि मंत्री कमल पटेल मंच पर ही संत कबीर के भजनों पर झूम उठे। और अपेक्षा की जाए, तो दल-दल से परे हर समय हर मंत्री, मुख्यमंत्री और जन-जन को कबीर के भजन यानि साखी, बीजक,रमैनी,सबद पर झूम जाना चाहिए, उनके भावों से लिपट जाना चाहिए और कबीर को अपने मन में कैदी बनाकर पूजते रहना चाहिए। जो कबीर ने कहा, वह कोई और नहीं कर सकता। जो कबीर ने किया, वह कोई और नहीं कर सकता है। जो कबीर ने समझा, वह कोई और नहीं समझ पाया और जो कबीर ने समझाया, वह कोई और नहीं समझा पाया। यह अहसास तो तभी हो सकता है, जब कबीर में गोता खाने और डूबकर हमेशा के लिए खुद को मिटाने और लुटाने का सौभाग्य मिल जाए। मन के आंगन में कबीर का उदय हो और ज्ञान रूपी किस्मत का कमल खिल जाए। सोते से उठ जाएं हम और ज्ञान चक्षु परम सत्य से एकाकार हो जाएं।कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, इसलिए उनके दोहों को उनके शिष्यों द्वारा ही लिखा या संग्रीहित किया गया था। उनके दो शिष्यों, भागोदास और धर्मदास ने उनकी साहित्यिक विरासत को संजोया। कबीर के छंदों को सिख धर्म के ग्रंथ “श्री गुरुग्रन्थ साहिब” में भी शामिल किया गया है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संत कबीर के 226 दोहे शामिल हैं और श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल सभी भक्तों और संतों में संत कबीर के ही सबसे अधिक दोहे दर्ज किए गए हैं।

कबीर ने कहा “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥”
और आज इक्कीसवीं सदी की विडंबना भी यही है कि ऐसे बड़ों की बाढ़ सी आ गई है इस संसार में और हर गली-गली और बाजार में। कबीर ने कहा है कि “पानी केरा बुदबुदा,अस मानस की जात। एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात।” अर्थात कबीर साहेब लोगों को नेकी करने की सलाह देते हुए इस क्षणभंगुर मानव शरीर की सच्चाई लोगों को बता रहे हैं कि पानी के बुलबुले की तरह मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है। जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी।

कबीर के ऐसे अनेक दोहों को 18 जून 2023 को नर्मदा के नाभि स्थल हरदा में याद किया गया। कबीर परमेश्वर एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। मूर्तिपूजा, रोज़ा, ईद, मस्जिद, मंदिर उनका विचार था कि इन क्रियाओं से आपका मोक्ष संभव नहीं। और इसीलिए जब किसी ने उन्हें सलाह दी कि काशी में शरीर त्यागने से मोक्ष मिलता है तो वह अंतिम समय में काशी को छोड़कर मगहर चले गए‌। उनका मानना था कि यदि काशी में मरने से मोक्ष मिलता है तो कबीर को ऐसा मोक्ष स्वीकार नहीं है। मोक्ष तो कबीर की करनी से मिलना चाहिए। ऐसी हिम्मत तो कबीर ही कर सकते हैं और इसलिए यदि यह दुनिया कबीर के रंग में रंग जाए तो फिर मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा की जगह चारों तरफ प्रेम, करुणा, विश्वास और भाईचारा ही नजर आए। कबीर सौ टका की एक बात कहते हैं कि ”पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार। वा ते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार।” तो वह दूसरी तरफ यह कहने से भी नहीं चूकते कि “कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।”

खैर आज हरदा का आभार, जो वहां कबीर को याद किया गया। कृषि मंत्री कमल पटेल की सोच को भले ही इस साल चुनावी राग से जोड़कर देखा जाए, लेकिन उन्होंने इस कबीर प्रकटोत्सव को हर साल मनाने की जो बात कही है, उसके लिए उनका भी साधुवाद। इस अवसर पर हरदा में मुख्य अतिथि कर्नाटक के राज्यपाल थावर चंद गहलोत ने कहा कि सैकड़ों वर्षों बाद आज भी “कबीर-साहित्य” समाज का मार्गदर्शन कर रहा है। उनकी शिक्षाएँ हमेशा से ही प्रासंगिक रही हैं और आगे भी रहेंगी।कबीर दास जी निर्गुण धारा के कवि थे। उन्होंने हमेशा सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं का विरोध किया। संत शिरोमणि कबीर दास की 625 वीं जयंती “कबीर प्रकटोत्सव” पर किसान-कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री कमल पटेल ने कहा कि हरदा में प्रतिवर्ष कबीर प्रकटोत्सव समारोह पूर्वक मनाया जाएगा। संत कबीर दास जी द्वारा लिखित साहित्य समाज को हमेशा से दिशा देता रहा है। हरदा की सभी ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जल्द ही नमो भवन का निर्माण कराया जाएगा। हरदा में मौजूद कबीर आश्रम में निर्माण कार्य के लिए 5 लाख रूपए देने की घोषणा भी कमल पटेल ने की।

बस सोच यही कि कबीर के रंग में दुनिया रंग जाए, तब ही वसुधैव कुटुंबकम् का भाव आकार ले पाएगा। और तब ही सबकी खैरियत की सोच सच साबित होगी…।