आगामी लोकसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट है खण्डवा लोकसभा उपचुनाव

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  जय नागड़ा की विशेष रिपोर्ट                                                                                                              मध्यप्रदेश में हो रहे उपचुनाव में सबकी निगाहे इस समय खण्डवा लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव पर लगी हुई है। यह चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है इसलिए दोनों ही दलों के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत इसमें झोंक दी है। भाजपा की कमान जहाँ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद थाम रखी है वहीँ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ स्वयं इसकी रणनीति बना रहे है। हालाँकि यह सभी जानते है कि इस एक सीट के चुनाव के परिणाम किसी सरकार की स्थिरता को प्रभावित सीधे तौर पर नहीं करेंगे लेकिन यह आगामी चुनावो को लेकर बड़ा संकेत ज़रूर देंगे। भाजपा इस चुनाव में जहाँ मोदी -शिवराज सरकार की उपलब्धियों को लेकर जनता से वोट की अपील कर रही है वहीं कांग्रेस इसे महंगाई ,बेरोजगारी ,बिगड़ती अर्थ व्यवस्था को लेकर उपजे जनाक्रोश को वोट में तब्दील करने में जुटी है।

खण्डवा संसदीय सीट का इतिहास बड़ा महत्वपूर्ण और रोचक रहा है। यहाँ सन 1952 से लेकर 2019 तक एक उपचुनाव सहित कुल 18 लोकसभा चुनाव हुए है जिनमे 9 बार कांग्रेस और 9 बार भाजपा यहाँ से विजयी रही है। यह सीट इसलिए भी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है कि भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे ने अपने जीवन में सिर्फ दो लोकसभा चुनाव लड़े वे दोनों ही खण्डवा संसदीय सीट से जिसमे एक में उन्हें सफ़लता हासिल हुई वहीँ दूसरी बार पराजय का सामना करना पड़ा। खण्डवा संसदीय इतिहास में यह दूसरा लोकसभा उपचुनाव होने जा रहा है ,पहला उपचुनाव 42 वर्ष पहले 1979 में हुआ था जो तत्कालीन सांसद परमानंदजी गोविंदजीवाला के आकस्मिक निधन की वजह से हुआ था जिसमे जनतापार्टी ने कुशाभाऊ ठाकरे को अपना प्रत्याशी बनाया और कांग्रेस ने स्थानीय उदयीमान युवा ठाकुर शिवकुमार सिंह को मौका दिया। उस चुनाव में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने खण्डवा चुनाव की कमान संभाल ली ,यहाँ सघन दौरे ,रोड़ -शो और सभायें भी खूब की बावजूद इसके कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा जबकि इसके एक वर्ष में ही ऐसा माहौल बदला कि ठाकरे जी को ठाकुर शिवकुमार सिंह से शिकस्त खानी पड़ी। आजादी के बाद के शुरआती 4 दशकों तक यहाँ कांग्रेस का ही एकछत्र राज्य था जिसे सिर्फ आपातकाल के बाद ही चुनौती मिल सकी थी। यहाँ कांग्रेस को बड़ी शिकस्त नब्बे के दशक में मिली जिसके बाद कांग्रेस यहाँ अपनी जड़े नहीं जमा सकी. वर्ष 1996 से अब तक 25 वर्षो में यहाँ कांग्रेस सिर्फ एक बार चुनाव जीती जबकि शेष सभी परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे। इतने वर्षों तक यहाँ भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान एक बड़े क्षत्रप के तौर पर स्थापित हुए जिन्होंने 7 चुनाव लड़े जिसमे 6 बार वे यहाँ से सांसद चुने गए। महत्वपूर्ण बात यह थी कि उन्होंने बड़े अंतर् से ये जीत हासिल की। वर्ष 2019 के चुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान ने कांग्रेस के अरुण यादव को 2 लाख 73 हजार 343 मतों के बड़े अंतर् से पराजित किया ,उन्हें कुल मतों का 57. 14 प्रतिशत मत मिले। इसके पहले वर्ष 2014 के चुनाव में भी वे 2 लाख 59 हजार 714 मतों के बड़े अंतर् से विजयी हुए थे। नंदकुमार सिंह चौहान की इन्ही उपलब्धियों के चलते उन्हें भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान भी उन्हें सौंपी थी। इस वर्ष कोरोना के संक्रमण के कारण श्री चौहान का मार्च 2021 में आकस्मिक निधन हो गया। इसके चलते ही खण्डवा में लोकसभा उपचुनाव हो रहे है।

खण्डवा संसदीय सीट के लिए वैसे तो वैसे तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर वैसे तो 16 प्रत्याशियों के नाम है लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस के ठाकुर राजनारायण सिंह और भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल के बीच ही होगा। राजनारायणसिंह जहाँ मान्धाता विधानसभा क्षेत्र से पूर्व में विधायक रहे है वहीँ ज्ञानेश्वर पाटिल अविभाजित खण्डवा जिले में जिला पंचायत के अध्यक्ष रहे है जिनके कार्यकाल में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जिला पंचायत के पानी रोको अभियान की सफलता की कहानी देखने आये थे। महत्पूर्ण बात यह है कि ये दोनों ही प्रत्याशी अपनी -अपनी पार्टियों की पहली पसंद नहीं रहे ,राजनैतिक समीकरणों को साधने में दोनों की किस्मत चमकी पर लोकसभा मैदान में आ खड़े हुए। कांग्रेस से जहाँ अरुण यादव का नाम तय ही माना जा रहा था वहीं भाजपा से नंदकुमारसिंह चौहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह चौहान और पूर्वमंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस ही प्रबल दावेदार थी लेकिन राजनैतिक खींचतान में ज्ञानेश्वर पाटिल ख़ुशक़िस्मत साबित हुए। हालाँकि दोनों ही पार्टियों ने प्रत्याशी घोषणा के साथ ही दावेदारों की नाराज़गी को साध लिया है इसलिए कहीं बगावत के सुर नहीं उठे। भाजपा में जहाँ मुख्यमंत्री शिवराज ने ही पार्टी के नेताओं को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं कांग्रेस में खुद दावेदार रहे अरुण यादव ने ही राजनारायण सिंह के प्रचार की कमान थाम ली। इसलिये कहा जा सकता है कि इस बार कांग्रेस और भाजपा पहली बार अंतर्कलह से मुक्त होकर सीधा मुकाबले करने को तैयार है।

खण्डवा संसदीय सीट का भूगोल भी इतना ही पेचीदा है इसमें चार जिलों की आठ विधानसभायें आती है। खण्डवा जिले की तीन विधानसभाएं खण्डवा ,मान्धाता और पंधाना इसका हिस्सा है वहीँ बुरहानपुर जिले की बुरहानपुर एवं नेपानगर विधानसभा इसका हिस्सा है। इसके अलावा खरगोन जिले की दो विधानसभा क्षेत्र भिखनगांव और बड़वाह भी इसी सीट का हिस्सा है वहीं देवास जिले की बागली विधानसभा क्षेत्र भी इसमें शामिल है। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 19 लाख 59 हज़ार 436 मतदाता है जिसमे 10 लाख 4 हजार 509 पुरुष और 9 लाख 54 हज़ार 854 मतदाता है इसके अलावा थर्ड जेंडर के भी 73 मतदाता है। इस चुनाव में कुल 16 प्रत्याशी मैदान में होंगे। कांग्रेस से राजनारायण सिंह और भाजपा से ज्ञानेश्वर पाटिल प्रमुख प्रत्याशी है इसके अलावा रजिस्ट्रीकृत राजनैतिक दल से तीन अभ्यर्थी है जिसमे भारतीय ट्रायवल पार्टी से दारासिंह भैयालाल ,पीपुल्स पार्टी ऑफ़ इण्डिया (डेमोक्रेटिक) से भोजराज सोहनलाल और वंचित बहुजन अघाड़ी पार्टी से सैय्यद रफ़ीक मोहम्मद साहब प्रत्याशी है। इसके अलावा 11 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव मैदान में डटे है जिनमे गोपालसिंह सोलंकी, चेतन सुरेश, जहीरुद्दीन, शेख ज़ाकिर, परीक्षित सिंह चौहान, मथुराबाई, रामगोपाल, विजय साल्वे, विपिन कुमार सोनी, संगमलाल द्विवेदी, हरेसिंह गुर्जर शामिल है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब निर्वाचन आयोग को मतदान के लिए हर मतदान केंद्र पर दो एवीएम मशीन लगानी होगी। चूँकि ईवीएम मशीन में अधिकतम 16 बटन होते है यहाँ 16 प्रत्याशियों के अलावा एक नोटा का भी बटन होगा इसलिए दूसरी मशीन भी आवश्यक होगी। 30 अक्टूबर को मतदान के बाद तस्वीर साफ होगी कि यहाँ कौन अपनी जीत का परचम फहराता है।
यह बहुत स्पष्ट है कि इस चुनाव से कोई सरकार बननी-बिगड़नी नहीं है। लेकिन, इससे आगामी चुनावो के लिए जनता के मूड के स्पष्ट संकेत तो मिलेंगे ही। कोरोना त्रासदी ,इसके बाद घिरे आर्थिक संकट, बेलगाम महंगाई और बढ़ती बेरोज़गारी इस परिणाम को कितना प्रभावित करेंगे इस बात पर सभी की निगाहे टिकी है। इधर भाजपा कोरोना संकट से निपटने में मोदी सरकार की पहल सौ करोड़ लोगो को फ्री वेक्सीन को भुनाना चाहती है। इसके अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी अनेक लोकलुभावन योजनाओ पर भाजपा आम जनता से वोट मांग रही है। इसके अलावा इस चुनाव को स्थानीय मुद्दे भी प्रभावित कर सकते है जिसमे खण्डवा सीट से खण्डवा के स्थानीय प्रत्याशी भी एक मुद्दा है, इसकी वजह साफतौर पर यह है कि इन 18 चुनावो में खण्डवा के स्थानीय व्यक्ति को सिर्फ दो बार ही मौका मिला है जिसमे पंडित बाबूलाल तिवारी और पंडित कालीचरण सकरगाए ही है इसके अलावा यहाँ हमेशा से ही बुरहानपुर के व्यक्ति ही सांसद बने है इसके अलावा एक बार हरदा तो एक बार खरगोन के व्यक्ति ने यहाँ से लोकसभा में खण्डवा का प्रतिनिधित्व किया है। इस समय भाजपा प्रत्याशी ज्ञानेश्वर पाटिल जहाँ बुरहानपुर से आते है तो कांग्रेस के राजनारायण सिंह खण्डवा से। इसके अलावा खण्डवा में नर्मदा जल को लेकर बड़ी समस्या भी स्थानीय मुद्दा है तो खण्डवा से इंदौर की खस्ता हाल सड़के भी एक बड़ी समस्या है। देखना है कि आम जनता किस आधार पर अपना जनादेश सुनाती है।