
Kissa-A-IAS : Avnish Sharan: ’12वीं फेल’ के कैरेक्टर की तरह एक और अफसर!
अवनीश शरण छत्तीसगढ़ कैडर के 2009 बैच के IAS अधिकारी हैं। वे बिहार के समस्तीपुर जिले के रहने वाले हैं और सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं। ’12वीं फेल’ फ़िल्म को देखकर वे इतना प्रेरित हुए थे कि उन्होंने अपनी मार्कशीट ट्विटर पर शेयर कर दी। जब उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी मार्कशीट शेयर की, तो हर कोई हैरान रह गया। यूज़र्स उनसे सवाल पूछने लगे। वहीं दूसरी तरफ मार्कशीट देखकर मोटिवेट होते भी दिखे। अवनीश राज्य लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा में 10 से ज्यादा बार फेल हुए। लेकिन, यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के पहले प्रयास में इंटरव्यू तक पहुंचे। दूसरे प्रयास में उन्होंने यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 77वीं रैंक हासिल की।
छत्तीसगढ़ के 2009 बैच के IAS अधिकारी अवनीश शरण सोशल मीडिया पर अकसर चर्चा में रहते हैं। पढाई में वे साधारण छात्र रहे, जिन्हें परीक्षाओं में कोई बहुत अच्छे अंक नहीं मिले। 10वीं में 44.7%, 12वीं कक्षा में 65% और स्नातक में 60% अंक मिले। इसके अलावा सीडीएस में फेल, सीपीएफ में फेल और यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के पहले प्रयास में साक्षात्कार और दूसरे प्रयास में आल इंडिया रैंक 77 रहा। इसलिए कहा जा सकता है कि ’12वीं फेल’ फिल्म की कहानी उनसे भी मिलती-जुलती है। ’12वीं फेल’ ऐसे पुलिस अधिकारी मनोज शर्मा की कहानी है, जिसने आईपीएस अधिकारी बनने के लिए हर संभव संघर्ष किया और अंततः अपना लक्ष्य हासिल किया।
मनोज शर्मा की ही तरह और भी अधिकारी हैं जिनकी कहानी रील लाइफ की फिल्मों से अधिक रियल है। अवनीश शरण ऐसे IAS अधिकारी हैं, जिन्होंने इस फिल्म को देखने के बाद अपनी दिल छू लेने वाली कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की थी। उन्होंने लिखा था कि कैसे वे अपनी जिंदगी में एक दोस्त पांडे से मिले। ’12वीं फेल’ फिल्म में अफसर बनने के लिए संघर्ष करने वाले लड़के मनोज के दोस्त का नाम पांडे था और रियल लाइफ के अधिकारी अवनीश शरण ने भी अपने एक दोस्त के बारे में स्टोरी शेयर की, जिसका नाम देव है। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी देव से मुलाकात हुई थी।
जीवन में हर परीक्षा में सफल होने के लिए लगन के साथ मेहनत की भी जरूरत होती है। ऐसा ही जज्बा IAS अफसर अवनीश शरण का भी रहा।
13 असफलता के बाद उन्हें यूपीएससी परीक्षा के दूसरे प्रयास में सफलता मिली। अवनीश की बचपन की पढ़ाई लालटेन की रोशनी में हुई। उन्होंने खुद यह जानकारी सोशल मीडिया पर शेयर की। इसमें उन्होंने उन सभी परीक्षाओं का जिक्र किया, जिसमें वे फेल हुए।
अवनीश शरण का जन्म 20 जनवरी 1981 को बिहार के समस्तीपुर जिले के केवटा नाम के छोटे से गाँव में हुआ था। बिहार में गरीबी आम लोगों के जीवन पर हावी है। अवनीश का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। वे बचपन से ही सिविल सेवा अधिकारी बनने की इच्छा रखते थे और अपने सपने को हासिल करने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की। वे प्रतिभाशाली छात्र नहीं थे। उन्हें तरीकों और समाधानों को समझने में कठिनाई होती थी। उनकी कम उपलब्धि का एक कारण शैक्षिक सुविधाओं की कमी थी। गांव में बिजली न होने के कारण वे रात में लालटेन के नीचे पढ़ाई करते थे। अवनीश ने जीवन में कई कठिनाइयों के बावजूद कड़ी मेहनत की और देश की सबसे कठिन और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में से एक यूपीएससी में सफलता हासिल की।
2017 में उन्होंने एक उदाहरण स्थापित किया और जनता को सरकारी सुविधाओं का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने के मकसद से अपनी पत्नी को डिलीवरी के लिए सरकारी अस्पताल ले गए। उन्होंने अपनी बेटी का दाखिला भी सरकारी स्कूल में कराया। अधिकांश सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के विपरीत, अवनीश न केवल सरकार की सुविधाओं पर विश्वास किया, बल्कि दूसरों के लिए भी ऐसा करने के लिए उदाहरण स्थापित किया। उनकी वेदिका और कृतिका नाम की दो बेटियां हैं।
छत्तीसगढ़ कैडर मिलने के बाद वे मई 2011 में सहायक कलेक्टर के रूप में नियुक्त किए गए। सितंबर 2011 से जुलाई 2012 तक उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट के रूप में काम किया। इसके बाद उन्होंने नगर निगम आयुक्त के रूप में भी काम किया। 2015 में अतिरिक्त कलेक्टर के पद पर काम किया और इसके बाद उन्हें मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया। अप्रैल 2018 में उन्हें जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पदोन्नत किया गया और जून 2020 में कौशल विकास में मुख्य कार्यकारी का पद हासिल किया। उन्हें तकनीकी एवं रोजगार विभाग के निदेशक के पद पर छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में पदस्थ किया गया। वे वर्तमान में बिलासपुर जिले के कलेक्टर है।
स्टूडेंट लाइफ में उनके पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं थी और न परीक्षाओं में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने लायक फोटोजेनिक याददाश्त थी। लेकिन, उनके जीवन का एकमात्र पहलू जिसे वे नियंत्रित कर सकते थे, वह था कभी हार न मानने का उनका दृढ़ संकल्प। अवसरों की कमी और असफलताओं के पहाड़ के बावजूद उनके मन में एक स्पष्ट लक्ष्य था, जो अपने परिवार को आर्थिक रूप से मदद करना, ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें। वे अपने लक्ष्य के प्रति इतना दृढ़ थे कि अपनी 10वीं और 12वीं परीक्षा के नतीजों से निराश नहीं हुए और अपना पूरा ध्यान एक सपने को पूरा करने पर केंद्रित रखा और अंततः उसे पा लिया।