Kissa-A-IAS : मजदूर पिता का बेटा, ठेले पर बेची चाय, आज है IAS अफसर
ये एक ऐसे आईएएस अफसर के संघर्ष की कहानी है, जिसने बेहद गरीबी में दिन बिताए। स्कूल जाने के लिए उसे रोजाना 70 KM का सफर करना पड़ता था। पिता का हाथ बंटाने के लिए उन्होंने चाय की दुकान पर भी काम किया।
हिमांशु ने जब अनपढ़ लोगों को उंगली पर पैसा न गिन पाते देखा, तभी उन्होंने ठान लिया था कि वे पढ़ाई से ही अपनी जिंदगी बदलेंगे। लेकिन, अपने लक्ष्य से नहीं डिगे और फिर वहां पहुंचे जो सोचा था। ये IAS अफसर हैं हिमांशु गुप्ता।
उत्तराखंड के उधमसिंह जिले के छोटे से गांव सितारगंज के रहने वाले हिमांशु गुप्ता ने कड़ी मेहनत से UPSC की परीक्षा पास की। उनकी कहानी लगन, हिम्मत, संघर्ष और विपरीत हालातों में कुछ कर गुजरने की है।
इन्होंने UPSC की सिविल सेवा पास करने की हैट्रिक बनाई। साथ ही पढ़ाई के दौरान आर्थिक दिक्कतों का समाधान भी खुद ही निकाला।
IAS बनने वाले हिमांशु गुप्ता के परिजन स्कूल ड्रॉपआउट हैं। उनके पिता दिहाड़ी मजदूरी करते थे और घर चलाने के लिए चाय का ठेला भी लगाते थे। लेकिन, उन्होंने अपने बेटे और बेटियों को स्कूल जरूर भेजा।
हिमांशु गुप्ता जब छोटे थे, तब स्कूल जाने से पहले और बाद में पिता के साथ ठेले पर काम करते थे। स्कूल भी 35 किमी दूर था, जहां आना-जाना 70 किमी होता था। वे अपने दोस्तों के साथ एक वैन में स्कूल जाते थे। जब भी उनके दोस्त चाय के ठेले के पास से गुजरते, वे छिप जाते। लेकिन, एक बार किसी ने हिमांशु को देख लिया और मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।
उन्हें ‘चाय वाला’ कहा जाने लगा। लेकिन, उन्होंने उस तरफ ध्यान देने के बजाए पढ़ाई पर ध्यान लगाया और जब भी समय मिला पापा की मदद की। पिता के साथ काम करके वे घर चलाने के लिए रोज 400 रुपए कमा लेते थे।
हिमांशु कहते हैं, कि यदि आपके सपने बड़े हों, तो आप जिंदगी में किसी भी मुकाम पर पहुंच सकते हैं। इसलिए आपकी छोटी जगह से हो या आपने छोटे स्कूल में पढाई की हो या फिर आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हो!
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ये सब कोई मायने नहीं रखता। उनका कहना है कि सपने देखें, मेहनत करें और खुद पर विश्वास रखें। क्योंकि, सपने सचमुच सच होते हैं। आपकी जॉब आपको एक से दूसरे कैरियर में ले जाएगी पर आपके सपने आपको कहीं भी ले जा सकते हैं।
हिमांशु को अंग्रेजी नहीं आती थी
बचपन से ही हिमांशु गुप्ता के सपने बड़े थे। संघर्ष ने ही उन्हें चुनौतियों के लिए तैयार किया था। वे शहर में रहने और अपने परिवार के लिए एक बेहतर जीवन बनाने का सपना देखते थे। उनके पापा अक्सर कहते थे ‘सपने सच करने है तो पढाई करो!’ उन्होंने यही किया।
उनको पता था कि अगर मैं कड़ी मेहनत से पढ़ूंगा, तो ही मुझे बड़ी यूनिवर्सिटी में एडमिशन प्रवेश मिलेगा। लेकिन, हिमांशु को अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिए वे अंग्रेजी फिल्मों की डीवीडी खरीदते और उन्हें अंग्रेजी सीखने के लिए देखा करते थे।
हिमांशु ने एक बार अपने बारे में बताया था कि मैं 2जी कनेक्शन वाले पापा के पुराने फोन का भी उपयोग करता और उन कॉलेजों की खोज करता, जिनमें मैं आवेदन कर सकता था। खु
शकिस्मती से मैंने अपने बोर्ड में अच्छा स्कोर किया और मुझे हिंदू कॉलेज में प्रवेश मिल गया। मेरे माता-पिता को कॉलेज के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, फिर भी उन्होंने कहा कि हमको तुम्हारी क्षमताओं पर भरोसा है!
टॉप किया, सिविल सर्विस में जाने का फैसला
हिमांशु गुप्ता जब कॉलेज पहुंचे तो डर गए थे। वहां के छात्रों के बीच अपरिचित सा परिवेश था। वे आत्मविश्वास से हर बात करते और आगे बढ़ते थे। लेकिन, उनके पास एक ऐसी चीज थी, जो उन्हें सबसे अलग करती थी। वो थी ‘सीखने की भूख!’ हिमांशु के मुताबिक उन्होंने अपनी कॉलेज की फीस भी खुद चुकाई।
वे कभी अपने माता-पिता पर बोझ नहीं बनना चाहते थे। हिमांशु निजी ट्यूशन करते और ब्लॉग लिखते। तीन साल बाद वे अपने परिवार में ग्रेजुएट करने वाले पहले व्यक्ति बन गए।
इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी में टॉप किया। इस कारण उन्हें विदेश में पीएचडी करने के लिए छात्रवृत्ति मिली। लेकिन, हिमांशु ने इसे ठुकरा दिया क्योंकि, वे अपने परिवार को नहीं छोड़ सकते थे। यह सबसे कठिन फैसला था। लेकिन, वे रुके रहे और सिविल सेवा में जाने का फैसला किया।
तीन बार UPSC क्लियर की
हिमांशु गुप्ता ने बिना कोचिंग के UPSC की तैयारी की और पहले प्रयास में फेल हो गए। लेकिन, IAS बनने के संकल्प को कमजोर नहीं होने दिया। हिमांशु गुप्ता ने साल 2018 में पहली बार UPSC Exam क्लियर किया, तब उनका चयन भारतीय रेलवे यातायात सेवा IRTS के लिए हुआ।
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उन्होंने 2019 में फिर से परीक्षा दी और दूसरे प्रयास में भारतीय पुलिस सेवा IPS के लिए चयन हुआ। फिर 2020 में अपने तीसरे प्रयास में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा IAS में सेलेक्ट हुए।
तब हिमांशु की मां ने उनसे कहा ‘बेटा, आज तुमने हमारा नाम कर दिया!’ हिमांशु गुप्ता के मुताबिक, माता-पिता को अपनी पहली सैलरी देना एक यादगार पल रहा।