Kissa-A-IAS: IAS बनने के पीछे छुपा है आदिवासियों का दुख दर्द

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Kissa-A-IAS: IAS बनने के पीछे छुपा है आदिवासियों का दुख दर्द

सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले कैंडिडेट्स में हर तरह के लोग होते हैं। कोई अपने सारे काम छोड़कर सिर्फ UPSC की पढाई में लगता है, तो कोई कोचिंग और कड़ी मेहनत से सफलता पाते हैं। लेकिन, हर कैंडिडेट के साथ कोई न कोई कहानी जरूर जुड़ी होती है। सभी का कहीं से प्रेरणा मिलती है। ऐसी ही एक कहानी है आलोक सिंह की जिन्होंने आदिवासियों के जीवन और उनकी परेशानी को नजदीक से देखा और उनके लिए कुछ करने के लिए IAS बनने का विचार मन में लाया। लेकिन, नौकरी करना उनकी मज़बूरी थी, इसलिए वे नौकरी भी करते रहे और UPSC की पढाई भी करते रहे। उन्होंने पढाई का शेड्यूल भी ऐसा बनाया कि कोई अड़चन न आए और इसका सकारात्मक नतीजा भी सामने आया। तीसरे प्रयास में वे लक्ष्य पर पहुंच ही गए।

Kissa-A-IAS: IAS बनने के पीछे छुपा है आदिवासियों का दुख दर्द

आलोक सिंह (Alok Singh) भी ऐसे ही कैंडिडेट थे, जिन्होंने 12 घंटे की नौकरी करने के साथ तैयारी UPSC की तैयारी की और सिविल सेवा का सपना भी पूरा किया। वे कहते हैं कि आपको ऐसी परिस्थिति में टाइम मैनेजमेंट का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। अगर आप अपना शेड्यूल का पालन करने में कामयाब हो गए, तो आप परीक्षा में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

आलोक सिंह बिहार के रहने वाले हैं, लेकिन उनका ज्यादातर समय नोएडा में बीता। वे पढ़ाई में हमेशा से होशियार थे और इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। इसके बाद उनकी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया में नौकरी लग गई। वे झारखंड के बोकारो में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया में जूनियर मैनेजर के तौर पर कार्यरत थे। नौकरी के दौरान उन्हें आदिवासी क्षेत्रों में जाने का मौका मिला। उनकी दयनीय स्थिति देखकर उन्होंने कुछ ऐसा करने की ठानी, जिससे वे इन लोगों की मदद कर सकें। इसके लिए उन्हें सिविल सेवा बेहतर विकल्प लगा! आदिवासियों के साथ काम करने और उन्हें नजदीक से देखने पर उन्हें लगा कि यदि वे IAS बने तो इनकी ज्यादा मदद कर सकेंगे।

Kissa-A-IAS: IAS बनने के पीछे छुपा है आदिवासियों का दुख दर्द

ऐसे में उनके मन में UPSC का ख्याल आया। देश की सबसे मुश्किल परीक्षाओं में से एक UPSC की परीक्षा में 2018 में आलोक सिंह ने 628 वीं रैंक हासिल की। इस विचार के साथ वे नौकरी के साथ ही तैयारी में जुट गए। इसके बाद वे 2018 में ईपीएफओ में जुड़े। एक साल काम करने के दौरान ही उनका सिलेक्शन UPSC में हो गया। पहली बार उन्होंने 2016 में UPSC दी, लेकिन उस समय आलोक प्रीलिम्स परीक्षा को भी पास नहीं कर पाए थे। दूसरी बार में मेन्स क्लीयर नहीं कर पाए। इसके बाद उन्हें तीसरी बार में सफलता हासिल हुई।

आलोक को अपने पहले जॉब में 12 से 13 घंटे तक काम करना पड़ता था, इस वजह से पढ़ाई और जॉब को मैनेज करना काफी मुश्किल होता था। वे नौकरी छोड़कर सिर्फ पढ़ाई पर फोकस नहीं कर सकते थे। ऐसे में उन्होंने ईपीएफओ की परीक्षा दी, जो UPSC ही आयोजित करता है। आलोक ने बिना कोचिंग की मदद लिए सेल्फ स्टडी के जरिए ये सफलता हासिल की। उनके मुताबिक प्रीलिम्स के दौरान जरूर उन्होंने 15 दिन की छुट्टी लेकर पढ़ाई की। जबकि, मेन्स के दौरान उन्होंने दो महीने की छुट्टी ली थी।

Kissa-A-IAS: IAS बनने के पीछे छुपा है आदिवासियों का दुख दर्द

आलोक सिंह को तीसरे प्रयास में UPSC में सफलता मिली। लेकिन, वे फुल टाइम जॉब कर रहे थे, इस वजह से उनका आत्मविश्वास नहीं डोला। उन्हें निराशा के दौर से भी नहीं गुजरना पड़ा। आलोक सिंह के मुताबिक, उन्होंने सबसे पहले सिलेबस के अनुसार अपना स्टडी मैटेरियल तैयार किया और अपनी जॉब की टाइमिंग के अनुसार पढ़ाई का शेड्यूल तैयार किया। जिस दिन छुट्टी होती, उस दिन वे ज्यादा पढ़ाई करते थे। लेकिन, हर दिन उन्होंने पढ़ाई करके लक्ष्य की तरफ बढ़ने की कोशिश कभी नहीं छोड़ी। दो बार असफल हुए, तो उन्होंने अपनी गलतियों को सुधारा और फिर दोगुने जोश के साथ परीक्षा में शामिल हुए। तीसरे प्रयास में उनका UPSC पास करने का सपना पूरा हो गया।

उनका मानना है कि अगर आप फुल टाइम जॉब के साथ तैयारी करना चाह रहे हैं, तो आपको इसके लिए कोशिश करना चाहिए। वे कहते हैं कि जॉब के साथ तैयारी करने के कई फायदे होते हैं। आप भविष्य को लेकर बहुत चिंतित नहीं रहते और असफलता मिलने पर डिप्रेशन जैसी स्थिति में नहीं पहुंचते। जॉब के साथ आप तैयारी करेंगे तो आपका आत्मविश्वास उच्च रहेगा और आप बेहतर तैयारी कर पाएंगे। आलोक कहते हैं कि अगर आप खुद को सकारात्मक और मोटिवेट होकर तैयारी करेंगे तो सफलता आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

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आलोक सिंह का कहना है कि इस परीक्षा के लिए कुछ चीजें आपको खुद तय करनी होती है। जैसे खुद से पाठ्यक्रम का सोर्स तैयार करना और अपनी पढ़ाई की स्ट्रेटजी बनना। उनके मुताबिक, मेरे पास इतना वक्त नहीं था कि मैं खास दोस्त के साथ मिलकर पढ़ाई करता या फिर टॉपिक के लिए कोचिंग लेता! जब ऐसी सुविधाएं आपके पास नहीं हों, तो सारा दारोमदार इसी बात पर होता है कि आप अपना शेड्यूल कैसे तैयार करते हैं।