KISSA-A-IAS: संघर्ष की अनोखी दास्तान:चाय बेचने से लेकर IAS बनने तक का सफर

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KISSA-A-IAS: संघर्ष की अनोखी दास्तान:चाय बेचने से लेकर IAS बनने तक का सफर

KISSA-A-IAS: संघर्ष की अनोखी दास्तान:चाय बेचने से लेकर IAS बनने तक का सफर

सपने देखने का हक़ सबको है, पर सपनों को पूरा करने का माद्दा सबमें नहीं होता। इसलिए कि हर संघर्ष मेहनत मांगता है और अच्छे-अच्छे भी एक सीमा पर आकर हिम्मत छोड़ देते हैं। लेकिन, हिमांशु गुप्ता उन लोगों में से नहीं रहे। उनका जो लक्ष्य था, वो उन्होंने नहीं छोड़ा। छोटी जगह के हज़ारों स्टूडेंट IAS बनने का सपना देखते हैं। लेकिन, उनके लिए यह सब आसान नहीं होता। लेकिन, हिमांशु कुछ अलग की मिट्टी से बने थे। उन्हें IAS बनना था तो उसके लिए उन्होंने तीन बार UPSC दी। पहली बार में IRTS (भारतीय रेलवे यातायात सेवा) के लिए चुने गए, दूसरी बार में IPS बने और अंततः तीसरी बार में वे IAS बन ही गए।

KISSA-A-IAS: संघर्ष की अनोखी दास्तान:चाय बेचने से लेकर IAS बनने तक का सफर

उत्तराखंड के उधमसिंह जिले के सितारगंज के रहने वाले हिमांशु गुप्ता की संघर्ष की दास्तान सिविल सेवा की तैयारी करने वालों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। क्योंकि, गरीबी और कई कठिनाइयों के होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अंत में कड़ी मेहनत का फल उन्हें मिल ही गया। इसमें संदेह नहीं कि हिमांशु गुप्ता उनके लिए एक उदाहरण हैं, जो बड़े सपने देखना और उन्हें हासिल करना चाहते हैं। उनकी कड़ी मेहनत और कभी हार न मानने वाला रवैया सभी के लिए एक प्रेरणा है।

KISSA-A-IAS: संघर्ष की अनोखी दास्तान:चाय बेचने से लेकर IAS बनने तक का सफर

हिमांशु गुप्ता बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। घर की स्थिति ठीक न होने के कारण उनका बचपन आम बच्चों जैसा नहीं बीता। उन्होंने बचपन बेहद गरीबी में बिताया। हिमांशु के पिता पहले दिहाड़ी मजदूर का काम करते थे, लेकिन इससे मुश्किल से परिवार को गुजारा हो पाता था। बाद में उनके पिता ने चाय का ठेला लगाना शुरू किया। हिमांशु भी स्कूल के बाद इस काम में अपने पिता की मदद करते रहे।

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बरेली शिफ्ट हो गया परिवार
हिमांशु के मुताबिक, बचपन में मैंने अपने पिता को ज्यादा नहीं देखा। क्योंकि, वे अलग-अलग जगहों पर नौकरी खोजने की कोशिश में लगे रहे। यह मेरे परिवार के लिए आर्थिक रूप से बहुत कठिन दौर था। एक कारण यह भी था कि मेरा परिवार नाना-नानी के पास बरेली के शिवपुरी चला गया। मुझे वहां के स्थानीय सरकारी स्कूल में दाखिला करवा दिया गया। 2006 में हिमांशु का परिवार बरेली जिले के सिरौली चला गया, जहां उनके पिता ने मेहनत से कुछ इकट्ठा करके अपना जनरल स्टोर खोला। आज भी उनके पिता उसी दुकान को चलाते हैं।


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KISSA-A-IAS: संघर्ष की अनोखी दास्तान:चाय बेचने से लेकर IAS बनने तक का सफर

सिरौली जाने के बाद भी हिमांशु की मुश्किलें कम नहीं हुई। क्योंकि, स्कूल जाने के लिए उन्हें रोज 70 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी। सबसे निकट का इंग्लिश मीडियम स्कूल 35 किमी दूर था और वे हर दिन 70 किमी की यात्रा करते थे। स्कूली पढ़ाई के बाद हिमांशु ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया। फीस के लिए वे ट्यूशन पढ़ाया करते और पेड ब्लॉग लिखा करते थे। उन्होंने कई स्कॉलरशिप हासिल की। ग्रेजुएशन के बाद हिमांशु ने DU से पर्यावरण विज्ञान में मास्टर डिग्री के लिए दाखिला लिया और कॉलेज में टॉप किया। इसके बाद हिमांशु के पास विदेश जाकर पीएचडी करने का मौका था, लेकिन उन्होंने देश में रहने का फैसला किया।

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UPSC के लिए तीन बार कोशिश
हिमांशु ने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए तीन बार कोशिश की। पहले प्रयास में वे IRTS (भारतीय रेलवे यातायात सेवा) के लिए चयनित हो पाए। लेकिन, उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी और 2019 UPSC पास करके IPS बने। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। क्योंकि, लक्ष्य एक कदम दूर था। 2020 में अपने तीसरे प्रयास में वे UPSC की CSE 2020 में AIR 139वीं रैंक पाकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में अफसर बने। अभी वे प्रशिक्षण पर हैं। इससे पहले उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी (SVPNPA) में बतौर भारतीय पुलिस सेवा (IPS) भी ट्रेनिंग की थी।