

Kumar Gandharva: मध्यप्रदेश की विरासत हैं कुमार गंधर्व…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कर्नाटक में जन्मे पर संगीत के क्षेत्र में मध्यप्रदेश की पहचान बने कुमार गंधर्व शास्त्रीय गायन में पहली पंक्ति में स्थापित हैं। ऐसे कुमार गंधर्व (8 अप्रैल 1924 – 12 जनवरी 1992) के नाम से प्रसिद्ध शिवपुत्र सिद्धराम कोमकाली को सन 1977 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। और यह उपलब्धि मध्य प्रदेश के कुमार गंधर्व के हिस्से में आई।
कुमार गंधर्व का जन्म सुलेभवि, बेलगाम (कर्नाटक) में एक कन्नड़ भाषी लिंगायत परिवार में हुआ था। पाँच वर्ष की आयु से ही उनमें संगीत प्रतिभा के संकेत दिखने लगे थे और दस वर्ष की आयु में वो मंच पर गाने लगे थे। ग्यारह वर्ष की आयु में उनके पिता ने उन्हें संगीत की शिक्षा के लिए सुप्रसिध शास्त्रीय संगीत के प्राध्यापक, बीआर देवधर के पास भेज दिया। गंधर्व की संगीत के ज्ञान और कुशलता में प्रगति इतनी तीव्र थी कि बीस की उम्र आते आते वे ख़ुद ही अपने संगीत विद्यालय में संगीत सिखाने लगे। उनके आलोचकों ने भी उनको संगीत के क्षेत्र का एक उभरता हुआ सितारा मानना शुरू कर दिया।
समय ने करवट बदली और कर्नाटक में जन्मे कुमार 1948 यानि 24 वर्ष की आयु में मध्यप्रदेश आए तो मध्यप्रदेश के होकर रह गए। दरअसल 1947 में गंधर्व ने भानुमती कंस से विवाह किया जो देवधर जी के विद्यालय में गायन की शिक्षिका थी। उसके कुछ ही समय पश्चात गंधर्व टीबी (क्षय रोग) की बीमारी से ग्रसित हो गए और चिकित्सकों ने उन्हें बताया कि वे दुबारा कभी गा नहीं पाएँगे। चिकित्सकों की सलाह पर अपने स्वास्थ्य में सुधार के लिए वे 1948 में देवास (मध्य प्रदेश), जो कि एक शुष्क जलवायु वाला स्थान है, आकर रहने लगे। अगले छह साल गंधर्व ने बीमारी और खामोशी में बिताए। चिकित्सकों के अनुसार गायन उनके लिए प्राणघातक सिद्ध हो सकता था। भानुमती की 1961 में दूसरे पुत्र को जन्म देते हुए मृत्यु हो गयी। भानुमती के देहांत के पश्चात कुमार ने वसुंधरा कोमकली से विवाह किया।
देवास में जहां कुमार स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे, वह देवास की बाहरी हिस्से में था। कुमार जी वहां बिस्तर पर पड़े-पड़े मालवी महिलाओं और साधु-संतों को उधर से आते-जाते ध्यान सुना करते थे। कर्नाटक के मूल निवासी होने के बाद भी मालवी लोकगीतों ने उन्हें काफी प्रभावित किया। वहीं से संगीत के क्षेत्र में नए कुमार गंधर्व का जन्म हुआ। कुमार गंधर्व ने मालवी लोक संगीत को बिल्कुल अनूठी जीवंतता और शक्ति दी। वे अपरिचित रागों का आविष्कार कर अपनी संगीत साधना से जीवंत बनाते थे। उन्होंने लोक धुनों का शास्त्रीय रागों से मेल कराया और नयी बंदिशें तैयार करनी शुरू कीं। इस तरह उन्होंने कबीर के पदों को मालवी लोक धुनों के रंग में उतारा और गाना शुरू किया। स्थानीय मल्हार स्मृति मंदिर के सभागृह में भी उन्होंने कई बार प्रस्तुति दी। मल्हार स्मृति मंदिर में जब भी उनका कोई कार्यक्रम होता था, तो उन्हें सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। गायन के दौरान आलाप लेने की उनकी शैली इतनी अनूठी थी कि दर्शक दीर्घा में बैठे श्रोता दांतों तले उंगली दबा लेते थे। ठुमरी में भी उन्होंने कई प्रयोग किये। कुमार जी ने संगीत की अन्य विधाओं जैसे भजन के रूप में जाने जाने वाले भक्ति गीत, लोक गीत आदि के साथ भी प्रयोग किया।
और उनके प्रयोगों ने मध्यप्रदेश के इस कुमार का दीवाना पूरी दुनिया को बना दिया। और देवास ने कुमार को फिर से गायन के लिए तैयार कर नया जीवन दे दिया। तो कुमार ने शास्त्रीय संगीत में अपने प्रयोगों से मध्यप्रदेश, मालवा और देवास को दुनिया के मानचित्र पर एक नई पहचान दी। ऐसे कुमार वास्तव में मध्यप्रदेश की विरासत ही नहीं, बल्कि अनमोल धरोहर हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने उनके नाम पर कुमार गंधर्व पुरस्कार स्थापित किया है। ऐसे कुमार गंधर्व की स्मृति में मध्यप्रदेश सरकार को देवास में उनके नाम पर ‘विरासत के साथ विकास’ का नया इतिहास अवश्य लिखना चाहिए…।