

3 साल की बच्ची के संथारा पर हाईकोर्ट में याचिका, सहमति और परंपरा पर देशभर में बहस
राजेश जयंत की रिपोर्ट
“क्या तीन साल की मासूम अपनी आखिरी सांसों का फैसला खुद ले सकती है?”
इंदौर की वियाना, जिसने ब्रेन ट्यूमर से जूझते हुए संथारा लिया, अब पूरे देश में बहस का मुद्दा बन गई है। परिवार ने जैन परंपरा के तहत संथारा दिलवाया, लेकिन अब हाईकोर्ट में सवाल है कि इतनी छोटी बच्ची ऐसी बड़ी सहमति कैसे दे सकती है…?
जनवरी 2025 में वियाना को ब्रेन ट्यूमर का पता चला। इलाज के लिए मुंबई ले जाया गया, ऑपरेशन भी हुआ, लेकिन मार्च में हालत बिगड़ गई। परिवार के मुताबिक, वियाना की तकलीफ इतनी बढ़ गई थी कि एक रात भी निकालना मुश्किल था। ऐसे में माता-पिता ने जैन धर्म की परंपरा के तहत 21 मार्च को उसे संथारा दिलवाने का फैसला किया- यानी इलाज, भोजन और पानी सब बंद कर दिया गया। संथारा की प्रक्रिया के सिर्फ 10 मिनट बाद वियाना का निधन हो गया।
गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने वियाना को सबसे कम उम्र की संथारा व्रती घोषित किया।
अब इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं- क्या इतनी छोटी बच्ची इतनी बड़ी सहमति दे सकती है…?
इसी सवाल को लेकर प्रांशु जैन ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि जैन धर्म में संथारा के लिए सहमति जरूरी है, लेकिन तीन साल की बच्ची कोई फैसला ही नहीं ले सकती। याचिका में मांग है कि नाबालिग या मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के संथारा पर रोक लगे और जिम्मेदारों पर कार्रवाई हो।
*कोर्ट की प्रतिक्रिया*
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के तर्क सुनने के बाद वियाना के माता-पिता को पक्षकार बनाया। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि वह कौन सा संगठन है जिसने वियना के माता-पिता को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का प्रमाण पत्र दिया। अभी कोर्ट ने अंतिम फैसला नहीं दिया है, लेकिन सुनवाई जारी है और प्रशासन से रिपोर्ट मांगी गई है।
*बाल आयोग की प्रतिक्रिया*
मध्य प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी इस मामले का संज्ञान लिया है और इंदौर के कलेक्टर को नोटिस जारी किया है। आयोग ने पूछा है कि इतनी छोटी बच्ची को संथारा की अनुमति कैसे दी गई और आगे क्या कार्रवाई की गई।
*जैन समाज की प्रतिक्रिया*
जैन समाज के कई लोगों ने संथारा को अपनी धार्मिक परंपरा और आध्यात्मिक प्रक्रिया बताया है। वियाना के माता-पिता ने कहा कि उनकी बेटी की हालत बहुत खराब थी और परिवार ने धर्मगुरु के मार्गदर्शन में संथारा का फैसला लिया। परिवार को अपनी आस्था और बेटी के फैसले पर गर्व है, और गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होना उनके लिए सम्मान की बात है।
*कानूनी बहस*
2015 में भी संथारा पर कानूनी बहस छिड़ी थी, जब राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे आत्महत्या जैसा अपराध माना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश पर रोक लगा दी थी। अब फिर से यह सवाल उठा है कि क्या नाबालिग या मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के लिए यह परंपरा लागू हो सकती है।
अभी कोर्ट का अंतिम फैसला आना बाकी है, लेकिन यह मामला समाज, कानून और परंपरा- तीनों के लिए बड़ी बहस बन गया है।