इधर कंगना उधर सलमान, पागलपन की हद या शैतान …

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वैचारिक पागलपन का रूप कब ले ले, यह हाल फिलहाल सामने आ रहे बयानों से साफ हो रहा है। चाहे किताब लिखकर हिंदुत्व की तुलना आतंकवादी संगठनों आईएसआईएस या बोको हराम से कर  पागलपन प्रदर्शित किया जाए या फिर गांधी-भगत सिंह की तुलना कर रियल हीरो भगत सिंह को बताकर गांधी को अपमानित करने का रास्ता अख्तियार कर पागलपन की हद पार की जाए…पागलपन तो पागलपन है।
इसे बौद्घिक विलास कहा जाए या फिर मानसिक विकृतता लेकिन शायद राजनैतिक या कलाकार सेलिब्रिटी के नाम पर कै (वॉमिटिंग) कर गंदगी और बदबू फैलाकर इस तरह संतुष्ट होने की कोशिश कर रहे हैं मानो रियल हीरो यही हैं। और ज्ञान की खान अब केवल इनके दिमाग के कोने में ही अवशेष के रूप में जिंदा है, बाकी दुनिया इनके दिमागी कचरे को खाने और पचाने के लिए ही बनी है। यह फूहड़ता कब तक नंगा नाच करती रहेगी और कब तक यह उम्मीद करेगी कि जिसको देखना हो वह साथ हो जाए और जिसको पसंद न हो वह आंख बंद कर चुपचाप अपने घर में बैठकर खुद की सांस चलने पर मातम मनाए…और यह दोगुने जोश से अट्ठहास करते रहें।
कंगना तो मानो देश के अंगना में इस तरह ठुमका लगा रही हैं कि देखने वालों को उनकी बुद्धि पर भी तरस आ रहा है और उनकी सुंदरता में भी कुरूपता ही नजर आने लगी है। अब उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरीज पर लंबे मेसेज पोस्ट किए हैं। महात्मा गांधी पर निशाना साधते हुए उन्हें सत्ता का भूखा और चालाक बताया है, तो दूसरे पोस्ट में लिखा है कि गांधी जी चाहते थे कि भगत सिंह को फांसी हो जाए। कंगना ने लोगों को सलाह दी है कि वह अपने हीरो समझदारी से चुनें।
लिखा है कि जो लोग स्वतंत्रता के लिए लड़े उन्हें उन लोगों ने अपने मालिकों को सौंप दिया जिनमें हिम्मत नहीं थी, न ही खून में उबाल। वे सत्ता के भूखे और चालाक थे…. ये वही थे जिन्होंने हमें सिखाया कि अगर कोई तुम्हें थप्पड़ मारे तो उसके आगे एक और झापड़ के लिए दूसरा गाल कर दो और इस तरह तुमको आजादी मिल जाएगी… ऐसे किसी को आजादी नहीं मिलती सिर्फ भीख मिलती है। अपने हीरो समझदारी से चुनें।
इधर कंगना उधर सलमान, पागलपन की हद या शैतान ...
कंगना ने दूसरे पोस्ट में लिखा है, गांधी ने कभी भगत सिंह और नेताजी को सपोर्ट नहीं किया। कई सबूत हैं जो इशारा करते हैं कि गांधीजी चाहते थे कि भगत सिंह को फांसी हो जाए। इसलिए आपको चुनना है कि आप किसे सपोर्ट करते हैं। क्योंकि उन सबको अपनी याद के एक ही बॉक्स में रख लेना और उनकी जयंती पर याद कर लेना काफी नहीं सच कहें तो मूर्खता नहीं बल्कि गैरजिम्मेदाराना और सतही है। लोगों को अपना इतिहास और अपने हीरो पता होने चाहिए।
इससे पहले कंगना रनौत यह बयान दे चुकी हैं कि देश को असली आजादी 2014 में मिली है। इससे पहले स्वाधीनता गांधीजी को कटोरे में भीख में मिली थी। उन्होंने कांग्रेस को ब्रिटिश शासन के आगे का रूप बताया था।
तो कंगना जी गांधी जी और भगत सिंह पर बोलने से पहले एक बार बिना सरकारी सुरक्षा के मंचों पर जाकर अपनी समझदारी का झंडा ऊंचा करने की एक बार भी हिम्मत दिखा लो तो तुम्हें दिन में चांद और रात में सूरज नजर आ जाएगा और जिम्मेदारी और समझदारी का डोज भी एक साथ मिल जाएगा। क्योंकि अब इसके आगे आपका यही बयान आना बाकी है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कायरता के पुतले थे और नाथूराम गोडसे और उनके अनुयायियों ने ही वीरता और शौर्य को जन्म दिया है।
दूसरी तरफ वरिष्ठतम राजनेताओं में से एक सलमान खुर्शीद इन दिनों अपनी किताब सनराइज ओवर अयोध्या को लेकर चर्चा में हैं। किताब में उन्होंने हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोको हराम से की है और हिंदुत्व की राजनीति को खतरनाक बताया है। बाद में नैनीताल के मकान में आगजनी होने पर प्रतिक्रिया देते हैं कि उनका आशय इसी तरह के हिंदुओं से है।
तो सलमान जी आपको ऐसे कई वाकये याद होंगे जब मुस्लिम धर्म और पैगंबर पर कार्टून बनाकर टिप्पणी करने के बाद पूरी दुनिया में कितना बवाल होता है। और आप जिस हिंदुत्व पर टिप्पणी कर रहे हैं और आतंकी संगठनों से तुलना कर रहे हैं, अगर वह आईएसआईएस या बोको हराम जैसी प्रतिक्रिया दें तो यह पता चल जाएगा कि तुमने किस तरह हैवान बनकर यह लिखने की हैवानियत की है।
यह हिंदुत्व ही है जो आगजनी कर ही शांत होकर यह उम्मीद करता है कि गलती पर क्षमा मांग ली जाए। वरना कोई आतंकी संगठनों की तरह गर्दन लाने पर इनाम घोषित करता और कोई क्रूरता की हद पार करते हुए वह कारनामा दिखाने पर उतारू हो जाता जिसकी कल्पना कर भी रूह कांप जाती।
अंत में बस इतना ही समझ लें तो काफी है कि हिंदुस्तान की माटी में जन्म लेकर पलने-बढ़ने को हमें अपना सौभाग्य मानकर इस मानसिक विकृतता से तौबा कर लेना चाहिए। दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं, जहां ऐसे मानसिक दिवालियेपन को सहन किया जा सके।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ऐसा मजाक न बनाया जाए जिससे आजादी और लोकतंत्र भी एक बार फिर से गुलामी और परतंत्रता को गले लगाना बेहतर समझें। अब पाठक खुद ही फैसला करें कि इधर कंगना और उधर सलमान, पागलपन की हद पार कर रहे हैं या शैतान हैं।