शिक्षा की गंगा में दलदल और आपराधिक राजनीति से लाखों प्रभावित
हमारे पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 28 फरवरी 1950 को अंतर्विश्वविद्यालय बोर्ड के समारोह में कहा था – ” मेरी समझ से किसी भी छात्र के लिए केवल बौद्धिक उपलब्धि के बजाय मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक विकास का महत्व है | ” आजादी के 75 साल बाद ऐसा लगा रहा है कि समाज और राजनीति के एक बड़े वर्ग ने केवल निजी लाभ और अनैतिक हथकंडों से नई पीढ़ी को गलत दिशा से बर्बाद करने का रास्ता अपना लिया है | इसीलिए उच्च शिक्षा और भविष्य के रोजगार से जुडी राष्ट्रीय परीक्षाओं में धांधली के कारण देश भर में हंगामा है | नीट परीक्षा में पेपर लीक , नेता अधिकारी अपराधी गैंग द्वारा लाखों रुपए वसूल कर कुछ स्थानों पर मासूम छात्रों और उनके परिवारों को जाल में फंसाकर अन्य लाखों छात्रों के भविष्य के लिए मुसीबत पैदा कर दी है | मामला सुप्रीम कोर्ट पंहुचा और उच्च स्तरीय जांच में अनेक प्रादेशिक तथा राष्ट्रीय जाँच एजेंसियां जुट गई हैं | सरकार के स्पष्टीकरणों से हंगामा थमता नहीं दिख रहा है | चुनाव के तत्काल बाद होने जा रहे संसद के सत्र के लिए कांग्रेस और प्रतिपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया है | प्रतिपक्ष तो शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के इस्तीफे की मांग करने लगा है |
दूसरी तरफ नीट घोटाले की आंच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल नेता तेजस्वी यादव तक भी पहुंचती दिख रही है। नीट विवाद में जिस तरह प्रीतम यादव के द्वारा षडयंत्र किए जाने का मामला सामने आया है, यह इशारा करता है कि इस विवाद में बड़े नेताओं का हाथ होगा। उनके सहयोग के बिना प्रीतम यादव अपने दम पर यह भ्रष्टाचार नहीं कर सकते थे। नीट घोटाले में तेजस्वी यादव के जिस पीए प्रीतम यादव पर आरोपियों को एनएचएआई के गेस्ट हाउस में कमरा उपलब्ध कराने का नाम सामने आ रहा है, वह तेजस्वी के बेहद करीबी सहयोगियों में शामिल है। भाजपा का आरोप है कि प्रीतम यादव ने अपने स्तर पर ही आरोपियों को ठहराने का काम नहीं किया होगा। इसके पीछे तेजस्वी यादव का हाथ हो सकता है। पार्टी ने नीट स्कैम में सीधे तेजस्वी यादव की भूमिका की जांच की मांग की है। इसके पहले राजद नेता लालू प्रसाद यादव जमीन के बदले नौकरी दिलाने के आरोपों से घिर चुके हैं। यदि इस मामले में तेजस्वी यादव की कोई भी भूमिका सामने आती है, तो राहुल गाँधी की कांग्रेस के गठबंधन को नई समस्याओं का सामना करना पडेगा और आने वाले विधान सभा चुनावों में बचाव कठिन हो जाएगा | सुप्रीम कोर्ट में नीट पर याचिका परीक्षा खत्म होने के बाद से ही दायर हो रही है। तब नीट पेपर लीक के मद्देनजर नीट की दुबारा परीक्षा और रिजल्ट पर रोक की मांग की गई थी। लेकिन कोर्ट ने रिजल्ट पर स्टे से मना कर दिया और री-एग्जाम को लेकर जुलाई में सुनवाई करने की बात कही | सचमुच दुःख की बात यह ही कि परीक्षाओं में लाखों बच्चे मेहनत से तैयारी करते हैं और अपनी जिंदगी के सबसे कीमती पल इस तैयारी में लगाते हैं। पूरा परिवार इस प्रयास में अपनी श्रद्धा और शक्ति डालता है। लेकिन साल दर साल इन परीक्षाओं में पेपर लीक, रिजल्ट से जुड़ी गड़बड़ियाँ सामने आई हैं।अब सरकार ने परीक्षा में गड़बड़ियों के अपराध पर दस साल की सजा और एक करोड़ रूपये के जुर्माने के क़ानूनी प्रावधान का आदेश जारी कर दिया है | लेकिन क्या इस तरह के मामलों पर समयबद्ध सुनवाई और कठोर सजा हो पाएगी ? हमारी न्याय व्यवस्था में तारीखों का सिलसिला वर्षों तक चलता है |
असल में प्रतिपक्ष के नेता शायद यह भूल रहे हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में राजनीति उनके सत्ता काल में ही शुरु हुई | शिक्षा नीति को न ठीक से बनाया गया और अनेक आयोगों सिफारिशों के बावजूद उनका सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं किया | जिस नेशनल टेस्ट एजेंसी ( एन टी ए ) को लेकर कांग्रेस हंगामा कर रही है , उसके गठन और अधिकारों का काम कांग्रेस सरकार ने 2010 से 2013 के दौरान अपनी सत्ता काल में तय किया था | मोदी सरकार ने तो 2017 में इसके लिए बजट का प्रावधान किया और 2018 में उच्च शिक्षा की विभिन्न परीक्षओं के लिए इसका गठन किया | पिछले वर्षों के दौरान भी कुछ स्थानों और परीक्षा में गड़बड़ी की घटनाएं सामने आई थी | लेकिन इस बार गड़बड़ी और अपराध की जड़ों में नेताओं के हाथ सामने आ रहे हैं | इसके लिए कोई एक पार्टी ही कटघरे में नहीं है | राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं से अधिक गंभीर गड़बड़ियों के आरोप राज्य स्तर की परीक्षाओं और सरकारी भर्तियों को लेकर आते रहे हैं | उनमें भी करोड़ों रुपयों का भ्र्ष्टाचार हुआ है | पिछले कुछ वर्षों में 15 राज्यों की 40 से अधिक परीक्षाओं में गड़बड़ी के गंभीर आरोप सामने आए हैं | सवाल यह भी है कि टेक्नोलॉजी में बहुत प्रगति के बाद नई पीढ़ी के साथ देश के भविष्य से जुडी ऐसी परीक्षाएं कम्प्यूटर आधरित प्रश्न पत्रों वाली कैट परीक्षा की तरह ही उच्च शिक्षा की प्रवेश परीक्षा और प्रादेशिक नौकरियों की भर्ती की परीक्षाएं क्यों नहीं संचालित की जाएं ? कंप्यूटर से तो हजारों प्रश्नों में से छात्रों को अलग अलग प्रश्न मिलेंगे और न पेपर लीक की गुंजाईश होगी और न ही कोई नक़ल कर सकेगा | हाँ कई नेताओं और अधिकारियों और उनसे जुड़े दलालों के धंधे ठप्प हो जाएंगे |
सुप्रीम कोर्ट और संसद में अब यह मुद्दा आ गया है , तो चार वर्ष पहले मोदी सरकार दवरा बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विस्तार करने के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाकर राजनीतिक सहमति बनाने का प्रयास किया जाए | संविधानवेत्ताओं ने शिक्षा के लिए मानदंड करते समय यह कल्पना नहीं की होगी कि राज्यों की स्वायत्तता के कारण सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था में भयानक खींचातानी , गड़बड़ियां और मनमानी होने लगेगी और राजनीति से शिक्षा के पवित्र स्थल बुरी तरह दूषित हो जाएंगे | बहरहाल अब भी समय है महत्वपूर्ण बदलाव का | नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करते समय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था – ” हम सभी एक ऐसे क्षण का हिस्सा बन रहे हैं जो हमारे देश के भविष्य निर्माण की नींव डाल रहा है। ये एक ऐसा क्षण है जिसमें नए युग के निर्माण के बीज पड़े हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 21वीं सदी के भारत को नई दिशा देने वाली है। पिछले तीन दशकों में दुनिया का हर क्षेत्र बदल गया। हर व्यवस्था बदल गई। इन तीन दशकों में हमारे जीवन का शायद ही कोई पक्ष हो जो पहले जैसा हो। लेकिन वो मार्ग, जिस पर चलते हुए समाज भविष्य की तरफ बढ़ता है, हमारी शिक्षा व्यवस्था, वो अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी। पुरानी शिक्षा व्यवस्था को बदलना उतना ही आवश्यक था जितना किसी खराब हुए ब्लैकबोर्ड को बदलना आवश्यक होता है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी नए भारत की, नई उम्मीदों की, नई आवश्यकताओं की पूर्ति का सशक्त माध्यम है। इसके पीछे चार-पांच वर्षों की कड़ी मेहनत है, हर क्षेत्र, हर विधा, हर भाषा के लोगों ने इस पर दिन रात काम किया है। लेकिन ये काम अभी पूरा नहीं हुआ है। बल्कि अब तो काम की असली शुरुआत हुई है। अब हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उतने ही प्रभावी तरीके से लागू करना है। “
नई शिक्षा नीति के प्रारुप में स्पष्ट रुप से हुए कहा गया है – “शिक्षा पूर्ण मानव क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। अगले दशक में भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा और इन युवाओं को उच्चतम गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराने पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा। यहां भारत द्वारा वर्ष 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेंडा 2030 के लक्ष्य में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार वर्ष 2030 तक ‘सभी के लिए समावेशी और सामान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवनपर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने’ का लक्ष्य भी स्पष्ट किया गया है। परिचय में ही इस बात की व्यापक चर्चा है कि ज्ञान के परिदृश्य में पूरा विश्व तेजी से परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। बिग डाटा, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में हो रहे बहुत से वैज्ञानिक और तकनीकी विकास के चलते नई शिक्षा-व्यवस्था में प्रयास किए गए हैं। जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण और घटते प्राकृतिक संसाधनों की वजह से हमें ऊर्जा, भोजन, पानी, स्वच्छता आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रास्ते खोजने होंगे और इस कारण भी जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जलवायु विज्ञान और समाज विज्ञान के क्षेत्रों में नए कुशल कामगारों की जरूरत होगी, इसलिए कौशल विकास पर नई शिक्षा व्यवस्था बल देती है। शिक्षा-व्यवस्था के माध्यम से युवा वर्ग की नए भारत के निर्माण में भागीदारी भी सुनिश्चित करती है। नई शिक्षा नीति प्रतिस्पर्धा में विकसित हुए इंजीनियर, डॉक्टर, वकील एवं प्रबंधन आदि के क्षेत्रों के व्यवसायों से भिन्न अन्य महत्वपूर्ण व्यवसायों के लिए भी मार्ग प्रशस्त करती है। भारत एक विकसित देश बनने के साथ-साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने की ओर अग्रसर है, इसलिए ऐसे दौर में नई शिक्षा नीति नई आवश्यकताओं, चुनौतियों और आकांक्षाओं के अनुरूप है।” इसलिए मोदी सरकार , नई संसद और आवश्यकता हो तो सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व निष्पक्ष न्यायाधीशों , शिक्षाविदों को मिलकर भविष्य के लिए शिक्षा का उज्जवल रास्ता बनाना चाहिए |
आलोक मेहता
आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
7 सितम्बर 1952 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।
प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान, राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।