कानून और न्याय: कोर्ट के फैसलों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुदित करने की पहल

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कानून और न्याय: कोर्ट के फैसलों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुदित करने की पहल

 

– विनय झैलावत

 

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर उच्चतम न्यायालय ने न्याय प्रशासन को आम आदमी से जोड़ने तथा न्याय को अधिक सुलभ बनाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने गणतंत्र दिवस पर 13 भारतीय भाषाओं में 1,268 फैसले जारी किए थे। ‘शुरूआत में 1,091 निर्णयों का हिंदी में, 21 उड़िया में, 14 मराठी, 4 असमिया, 1 गारो, 17 कन्नड़, 1 खासी, 29 मलयालम, 3 नेपाली, 4 पंजाबी, 52 तमिल, 28 तेलगु और 3 उर्दू में अनुवाद किया गया। इस स्वतंत्रता दिवस पर उच्चतम न्यायालय ने 9,423 फैसलों को अंग्रेजी से 14 क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया है।

इनमें सर्वाधिक 8,977 निर्णयों का हिंदी में अनुवाद किया गया था। इसके बाद तमिल में 128 निर्णयों का अनुवाद किया गया। गुजराती भाषा 86 निर्णयों के साथ तीसरे स्थान पर थी। मलयालम और उड़िया भाषा 50-50 निर्णयों के साथ चैथे स्थान पर थी एवं तेलुगु में, 31 बंगाली में, 24 कन्नड़ में, 20 मराठी में, 11 पंजाबी में, 4 असमिया में, 3 उर्दू में, एक-एक अनुवाद किये गये थे। अब यह पहल एक सतत् प्रक्रिया के तहत होने लगी है। इसके तहत धीरे-धीरे सारे निर्णय उन प्रकरणों के अनुवाद क्षेत्रीय भाषाओं में मिलने लगे हैं।

ये निर्णय न्यायालय के ई-एससीआर पोर्टल पर भी उपलब्ध कराए जाएंगे। यह पोर्टल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आधिकारिक प्रकाशन, सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट्स (एससीआर) के इलेक्ट्राॅनिक संस्करण का भंडार है। इनमें अब कुछ और नई विशेषताएं जुड़ गई है। जब कोई उपयोगकर्ता ई-एससीआर पोर्टल में मुफ्त टेक्स्ट सर्च इंजन का उपयोग करता है और खोज बाॅक्स में कोई की-वर्ड दर्ज करता है, तो संबंधित निर्णय एससीआर में रिपोर्ट की गई अंग्रेजी भाषा में प्रदर्शित होंगे। साथ ही उन भारतीय भाषाओं की सूची भी प्रदर्शित होगी, जिनमें वह विशेष निर्णय उपलब्ध है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि उनके फैसलों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद का काम एक सतत प्रक्रिया है। उपयोगकर्ताओं के लाभ के लिए अनुदित संस्करण नियमित आधार पर अपलोड किए जाएंगे। इस कदम से उन कानून के छात्रों, युवा वकीलों को लाभ हो रहा है, जो सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को प्रकाशित करने वाली महंगी किताबें खरीद नहीं सकते। इससे उन लोगों को भी फायदा पहुंच रहा है, जो अंग्रेजी भाषा नहीं जानते हैं। आम पक्षकारों को भी इस बात की जानकारी मिल रही है कि आखिर उनके मामले में कब और क्या फैसला हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी हाल ही में क्षेत्रीय भाषाओं में निर्णय प्रदान करने और अदालत के डिजिटलीकरण के लिए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ के प्रयासों की सराहना की थी।

सर्वोच्च न्यायालय की अनुवाद परियोजना 2019 में शुरू हुई थी। इसका मकसद यह था कि उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को जनता अपनी मूल क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ और समझ सके। सर्वोच्च न्यायालय की ओर से यह कहा गया था कि यह परियोजना देश की विविधता का सम्मान है। मूल रूप में यह परियोजना न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के कार्यकाल के दौरान शुरू हुई थी। न्यायमूर्ति गोगोई ने अदालत के फैसलों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने का विचार लाने का श्रेय अपने उत्तराधिकारी और तत्कालीन नंबर दो न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसए बोबडे को दिया था। न्यायमूर्ति बोबडे ने न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एआई उपकरण के उपयोग न्यायालय में करने के प्रयास जारी रखे। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने भाषा आधार का विस्तार और अनुवाद की गति बढ़ाकर इसे नए स्तर पर पहुंचाया है। इस परियोजना से न केवल सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का स्थानीय भाषा में अनुवाद करना, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का सारांश भी प्रदान करना शामिल है।

इससे उन पक्षकारों को मदद मिलेगी, जो वर्षों तक अपने मामले लड़ने के बाद केवल इस कारण से अपने मामलों को निर्णय पढ़ने में असमर्थ थे तथा दूसरों पर निर्भर थे कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी। बरसों बरस तक मुकदमा लड़ने के बाद उसके अपने मुकदमे का जो फैसला आता था तथा जो कागज उनके हाथ में आता था उसे देश का आम पक्षकार पढ़ने में इस कारण असमर्थ था कि वह फैसला अंग्रेजी में होता था। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का मानना है कि अदालत का उद्देश्य सभी क्षेत्रीय भाषाओं में अपने फैसले उपलब्ध कराना है। उनका कहना यह है कि अक्सर लोग यह तर्क रखते हैं कि पक्षकारों को अपना पक्ष रखने एवं बहस क्षेत्रीय भाषणों में करने का अधिकार है। मुख्य न्यायाधिपति का यह मानना है कि उक्त तर्क का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि निर्णय क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध न हो।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उन क्षेत्रीय बहस में उपलब्ध होना न केवल सराहनीय है, बल्कि वक्त की आवश्यकता भी है। उच्चतम न्यायालय की तर्ज पर कई न्यायालय आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस के द्वारा निर्णयों का अनुवाद करने की कवायद पर है। इन निर्णयों के अनुवाद के निराकरण के लिए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा यह कदम उठाया गया है। निर्णयों को चार भाषाओं में अनुवाद करने के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय ओका की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। मुख्य न्यायाधीश का इरादा सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के मशीनी अनुवाद की पुष्टि के लिए अनुवादकों के अलावा सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों को नियुक्त करने का भी है।

इसका एक मिशन यह भी है कि देशभर के प्रत्येक उच्च न्यायालय में दो न्यायाधीशों की एक समिति होनी चाहिए, जिनमें से एक न्यायाधीश ऐसा होना चाहिए जिन्हें उनके व्यापक अनुभव के कारण जिला न्यायपालिका से लिया गया हो। मुख्य न्यायाधीश का यह भी मानना है कि एक ऐसा साॅफ्टवेयर भी विकसित हो रहा है और एक ऐसी टीम का गठन किया जा रहा है जहां उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के अनुवाद के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग किया जाएगा। अप्रचलित, पुरातन या पुराने अंग्रेजी शब्दों का उपयोग जो अंग्रेजी भाषा से चले गए हैं, लेकिन कानूनी पेशे में उनके लगातार उपयोग से इन्हें जीवित रखा गया है उनके उपयोग को कम करने के यह किया जा रहा है।

किसी नियम, सिद्धांत आदि को व्यक्त करने के लिए लैटिन और कभी-कभी फ्रेंच शब्दों और वाक्यांशों का उपयोग, जिन्हें अंग्रेजी में आसानी से व्यक्त किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि इन शब्दों का प्रयोग पुराने निर्णयों में भी उपयोग किया जाता रहा है। सामान्य अंग्रेजी शब्दों को एक नया, अलग, असामान्य और पूरी तरह से कानूनी अर्थ देने या इन शब्दों को कुछ विषिष्ट कानूनी परिभाषाएं देने की प्रथा भी रही है। वकील और न्यायाधीश दोनों ही कानूनी पेशेवरों की बिना किसी विराम चिन्ह के अक्सर लंबे और जटिल वाक्य लिखने की प्रवृत्ति होती है। इससे नागरिकों का उन लेखों की प्रवृत्ति को समझने में कठिनाईयों का सामना करना होगा। भारत में न्यायालयों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा में सदियों से मुगल काल के दौरान उर्दू व फारसी और फारसी लिपियों वाली भाषाऐं उपयोग होती रही। यह ब्रिटिश शासन के दौरान भी अधीनस्थ न्यायालयों में भी कई समय तक जारी रही। अंग्रेजों ने भारत में कानून की एक संहिताबद्ध प्रणाली शुरू की, जिसमें अंग्रेजी आधिकारिक भाषा थी।

जिस तरह पूरे देश से मामले सर्वोच्च न्यायालय में आते हैं, उसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और वकील भी भारत के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। उस समय सभी भारतीय और अभारतीय न्यायाधीशों एवं वकीलों में सबसे ज्यादा प्रचलित बहस अंग्रेजी ही थी। अंग्रेजी के प्रयोग के बिना कानूनी शिक्षा देना काफी कठिन माना जाता था। सर्वोच्च न्यायालय के सभी फैसले अंग्रेजी में दिए जाते हैं। कई सिद्धांत लेटिन मेक्जिम के द्वारा पढ़ाये जाते है। इसे अंग्रेजी के अलावा उपयोग में लानी वाली बहस में कानूनी शिक्षा देना काफी कठिन कार्य था। इस कारण समय की मांग को देखते हुए न्यायप्रणाली में हिन्दी का उपयोग आवश्यक है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की यह पहल सराहनीय है तथा इसकी जितनी सराहना की जाए कम है। उनकी इस पहल का असर उच्च न्यायालयों में भी धीरे-धीरे दिखना चालू हो गया है। अब वह दिन दूर नहीं है जब भारत के सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के फैसले उस राज्य की स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध होंगे।