कानून और न्याय :जरूरतमंदों के लिए अनुकंपा नियुक्ति पर विचार होना जरूरी 

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कानून और न्याय :जरूरतमंदों के लिए अनुकंपा नियुक्ति पर विचार होना जरूरी 

– विनय झैलावत

 

अनुकंपा नियुक्ति के मामले में उचित समय क्या होगा ? यह काफी हद तक विचाराधीन अनुकंपा नियुक्ति के लिए नीति/योजना पर निर्भर करता है। यदि आवेदन करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित की गई है और दावेदार उस अवधि के भीतर आवेदन करता है, तो समय के अंतराल को अस्वीकृति का आधार नहीं माना जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने समक्ष अनुकंपा नियुक्ति के एक मामले में हाल ही में कहा कि प्रत्यर्थी के पिता की मृत्यु दिसंबर 2001 में हुई थी। लेकिन, कर्मचारी परिवार के सदस्य को देरी के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि, वह विभाग के समक्ष और उसके बाद उच्च न्यायालय के समक्ष अपने दावे के संबंध में निरंतर कार्यवाही कर रहा था। इसलिए, इस बात की परवाह किए बिना कि आवेदक की वर्तमान आयु कितनी है, उसकी आयु उसके दावे को आगे बढ़ाने और गुण-दोष के आधार पर उस पर विचार करने से रोकने के लिए निर्धारक नहीं हो सकती है। यह पता लगाने के लिए वित्तीय स्थिति की जांच करना कि क्या कमाने वाले कर्मचारी की मृत्यु के कारण प्रतिवादी और उसकी मॉं पूरी तरह से वित्तीय संकट में रह गए थे।

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न्यायालय ने यह भी मत व्यक्त किया कि कोई भी आश्रित, जो अन्यथा उपयुक्तता सहित अनुकंपा नियुक्ति के लिए सभी मानदंडों को पूरा करता है, को केवल आयु-सीमा के आधार पर उनकी अनुकंपा नियुक्ति के आवेदन को निरस्त नहीं किया जाना चाहिए। यदि दावेदार की आयु छूट योग्य सीमा के भीतर पाई जाती है, तो विवेकाधिकार उपयुक्त मामले में प्रयोग करने के लिए उपलब्ध है और इसका उपयोग किया जाना चाहिए। आयु में छूट पूरी प्रक्रिया के अंतिम चरणों में उठाया जाने वाला एक विवेकाधिकार कदम है। लेकिन, नियुक्ति के लिए अन्य सभी शर्तों को पूरा किया जाना भी जरूरी है। यदि इस तरह के किसी मामले में, कि मृतक का परिवार गरीबी रेखा के अंदर नहीं पाया जाता है, तो पहली सीमा को ही पार नहीं किया जा सकता है। इस तरह, प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी। ऐसे मामले में, आयु में छूट पर विचार करना निष्क्रिय औपचारिकता होगी।

इसके अलावा, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अपीलीय न्यायालय की शक्ति कानूनों द्वारा सीमित है। तद्नुसार सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया एवं विवादित निर्णय को अस्वीकार कर राशि का एकमुश्त भुगतान करने का निर्देश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुकंपा नियुक्ति से संबंधित इस मामले की अपील पर निर्णय लेते हुए कहा कि यह देखा जाना चाहिए कि कोई योजना मृत्यु के समय प्रभावी है अथवा नहीं। इस प्रकरण में प्रत्यर्थी के पिता केनरा बैंक में काम कर रहे थे। उनकी सेवानिवृत्ति से पहले वर्ष 2001 में उनका निधन हो गया। तदनुसार, कर्मचारी के परिवार के सदस्य ने 1993 की योजना के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति मांगी। हालांकि, उच्च न्यायालय के समक्ष इस मुकदमे के लंबित रहने के दौरान, एक और योजना (2005) शुरू की गई थी। इसमें मृतक कर्मचारियों के परिवार के सदस्य एकमुश्त अनुग्रह राशि के भुगतान के हकदार थे। विशेष रूप से, बैंक ने 1993 की योजना के तहत नियुक्तियों को बंद करते हुए एक परिपत्र जारी किया था।

इस पृष्ठभूमि में, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने परस्पर विरोधी न्यायिक राय के बारे में टिप्पणी की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि केनरा बैंक बनाम एम.महेश कुमार के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया था कि अनुकंपा नियुक्ति के दावे का निर्णय दावे के बाद शुरू की गई योजना के आधार पर नहीं किया जा सकता है। इन मामलों में न्यायालय के अलग-अलग विचार थे। अभिषेक कुमार बनाम हरियाणा राज्य, मामले में न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि चूंकि 2003 के नियम ऐसे समय में अस्तित्व में नहीं थे जब अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दावा किया गया था। इसलिए इसे 2001 के नियमों के अनुसार माना जाएगा।

केनरा बैंक के फैसले में भी ऐसा ही दृष्टिकोण अपनाया गया था। इसके विपरीत, एसबीआई. बनाम राज कुमार, जीबी ग्रामीण बैंक बनाम चक्रवर्ती सिंह मामलों में न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि फैसले के समय केवल नई योजनाएं लागू होगी। पूर्व योजना के अधीन मामले पर विचार करने का न्यायालय में कोई निहित अधिकार नहीं है। शीओ शंकर तिवारी बनाम कर्नाटक राज्य कहा गया कि इस तरह के दावे पर विचार करते समय, आवेदन पर विचार करने की तारीख पर प्रचलित मानदंड ही लागू होंगे। पीठ ने कहा, उपरोक्त उद्धृत निर्णयों से ली गई अनुकंपा नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले कानून को लागू करते हुए, हमारी राय यह है कि आवेदन पर विचार करने की तारीख पर प्रचलित मानदंड अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करने का आधार होना चाहिए। एक कर्मचारी का आश्रित, सरकारी कर्मचारी की मृत्यु पर अर्जित किसी भी निहित अधिकार के अभाव में, केवल उसके आवेदन पर विचार करने की मांग कर सकता है।

अनुकंपा नियुक्ति की मृतक कर्मचारी के परिवार में अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इन नियुक्तियों का आधार और औचित्य, संकटग्रस्त तथा अभावग्रस्त परिवारों को अनुतोष प्रदान करना होता है। इसलिये इन नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना होता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसा अधिकार सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्तों में नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार की जांच या चयन प्रक्रिया के बिना आश्रित को दिया जाना चाहिये। इसलिये, अनुकंपा नियुक्ति, अत्यधिक वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे मृतक कर्मचारी के परिवार को अनुतोष देने के लिये प्रदान की जाती है। क्योंकि रोजगार के बिना, परिवार वित्तीय एवं अन्य संकट का सामना करने में सक्षम नहीं हो सकता है। उक्त नियुक्ति किसी भी मामले में दावेदार द्वारा ऐसी अनुकंपा नियुक्ति के लिये निर्धारित नीति, निर्देश या नियम आवश्यकताओं को पूरा करने के अधीन होगा।

अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में उल्लेखनीय फैसलों में विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश एवं अन्य का जिक्र कर सकते हैं। इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली, 1974 के नियम में अविवाहित आश्रय प्राप्त पुत्री शब्द को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया था। साथ ही उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम माधवी मिश्रा एवं अन्य मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाहित पुत्री अधिकार के रूप में अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकती है। एक अन्य मामले में कर्नाटक में कोषागार निदेशक एवं अन्य बनाम वी. सौम्यश्री में उच्चतम न्यायालय ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति प्रदान करने के सिद्धांत को संक्षेप में कहा कि अनुकंपा नियुक्ति सामान्य नियम का अपवाद है।

साथ ही किसी भी अभ्यर्थी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार नहीं होता है। राज्य की सेवा में किसी भी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार सिद्धांत के आधार पर की जानी चाहिए। अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति केवल राज्य की नीति द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करने और/या नीति के अनुसार पात्रता मानदंडों की संतुष्टि पर की जा सकती। आवेदन पर विचार की तिथि को प्रचलित मानदंड अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करने का आधार होना चाहिए। एक अन्य मामले में महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य बनाम सुश्री माधुरी मारुति विधाते मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि, मृतक कर्मचारी की विवाहित पुत्री को उसकी मृतक मां पर आश्रित नहीं माना जा सकता है। विशेषकर तब जब कर्मचारी की मृत्यु को काफी समय बीत चुका हो।