Law & Justice: ‘सीलबंद लिफाफा प्रक्रिया’ के प्रति सुप्रीम कोर्ट का बदलता रवैया!

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Law & Justice: ‘सीलबंद लिफाफा प्रक्रिया’ के प्रति सुप्रीम कोर्ट का बदलता रवैया!

‘सीलबंद आवरण’ गोपनीय दस्तावेज या जानकारी को संदर्भित करता है, जो सीलबंद लिफाफे या आवरण में अदालत को प्रस्तुत किया जाता है। ये दस्तावेज मामले में शामिल पक्षों या आम जनता को उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। केवल न्यायालय के लिए ही होते हैं। भारतीय अदालतों में सील बंद आवरण का उपयोग गोपनीयता के सिद्धांत पर आधारित है, जो अदालतों को संवेदनशील जानकारी की रक्षा करने की अनुमति देता है। जो जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है या व्यक्तियों की गोपनीयता को प्रभावित कर सकती है, ऐसी जानकारी न्यायालय द्वारा सीलबंद लिफाफे अथवा आवरण में स्वीकार की जा सकती है।

भारत के मुख्य न्यायाधिपति डीवाई चंद्रचूड़ ने वन रैंक वन पेंशन योजना के तहत सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों को पेंशन बकाया के वितरण से संबंधित मामले में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत सीलबंद कवर नोट को स्वीकार करने से इंकार करके खूब सुर्खियां बटोरीं। उक्त मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सीलबंद लिफाफा लेने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि वह सीलबंद आवरण के ‘व्यक्तिगत रूप से खिलाफ’ है। उन्होंने टिप्पणी की कि सीलबंद कवरों की प्रक्रिया निष्पक्ष न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। यह सीलबंद लिफाफों के उपयोग की दिशा में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के दृष्टिकोण में बदलाव को उजागर करने वाला एक और उदाहरण है। हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय सीलबंद आवरण के उपयोग की खुले तौर पर आलोचना करता रहा है।

‘सीलबंद आवरण’ गोपनीय दस्तावेज या जानकारी को संदर्भित करता है, जो सीलबंद लिफाफे या आवरण में अदालत को प्रस्तुत किया जाता है। ये दस्तावेज मामले में शामिल पक्षों या आम जनता को उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। केवल न्यायालय के लिए ही होते हैं। भारतीय अदालतों में सीलबंद आवरण का उपयोग गोपनीयता के सिद्धांत पर आधारित है, जो अदालतों को संवेदनशील जानकारी की रक्षा करने की अनुमति देता है। जो जानकारी राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकती है या व्यक्तियों की गोपनीयता को प्रभावित कर सकती है, ऐसी जानकारी न्यायालय द्वारा सीलबंद लिफाफे अथवा आवरण में स्वीकार की जा सकती है।

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सर्वोच्च न्यायालय अतीत में तत्कालीन मुख्य न्यायाधिपति रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों और सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ शिकायत की सीवीसी जांच रिपोर्ट जैसे अन्य कई मामलों में सीलबंद आवरण को स्वीकार किए हैं। सन् 2015 के राफेल डील विवाद से जुड़े मामले में भी सीलबंद आवरण में इसी प्रक्रिया का पालन किया गया। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने टिप्पणी की थी, कि अगर वह राफेल सौदे पर याचिकाओं की सुनवाई कर रहे होते तो वे सीलबंद आवरण प्रक्रिया का सहारा नहीं लेते।

स्वाभाविक रूप से सीलबंद आवरण का उपयोग भारतीय न्यायशास्त्र में बहस का विषय रहा है। क्योंकि, आलोचकों का तर्क है कि यह न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करता है। अब ऐसा लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय को अपनी विश्वसनीयता पर सीलबंद न्यायशास्त्र के प्रभावों का एहसास हो रहा है। मुख्य न्यायाधिपति डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा आज सीलबंद आवरण न्यायशास्त्र की आलोचना करने वाली टिप्पणियों के अलावा, अदालत ने कई मौकों पर सीलबंद आवरण को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। उदाहरण के लिए अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने नियामक सिस्टम की समीक्षा के लिए प्रस्तावित विशेषज्ञ समिति में शामिल करने के लिए सीलबंद लिफाफे में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नामों को भी स्वीकार करने से इंकार कर दिया।

मुख्य न्यायाधिपति ने आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा कि विशेषज्ञों का चयन न्यायालय द्वारा ही किया जाएगा। समिति में जनता का पूर्ण विश्वास होना चाहिए। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम विशेषज्ञों का चयन करेंगे और पूरी पारदर्शिता बनाए रखेंगे। यदि हम सरकार के नाम लेते हैं तो यह सरकार का गठित समिति के बराबर होगा। आदेश सुरक्षित रखते हुए समिति में पूर्ण (सार्वजनिक) विश्वास होना चाहिए। हालांकि, अदालत ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर विशेषज्ञ समिति को अपनी रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने एआईएडीएमके कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु के पूर्व मंत्री एसपी वेलुमणि को भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ दायर प्रारंभिक रिपोर्ट की प्रति रखने की अनुमति नहीं देने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय की भी आलोचना की थी। इसके अलावा, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी मुजफ्फरपुर आश्रय मामले से संबंधित मामले में अदालत में सीलबंद लिफाफे के इस्तेमाल का विरोध किया। उन्होंने टिप्पणी की, कि कार्रवाई की गई रिपोर्ट को सीलबंद आवरण में होना जरूरी नहीं है। अन्य मामले में उन्होंने जमा किए गए दस्तावेजों को स्वीकार करने से इंकार करते हुए कहा कि कोई भी सीलबंद आवरण न दें। इसे अपने पास रखें। मुझे कोई सीलबंद आवरण नहीं चाहिए। सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक पीठ ने वास्तव में भारतीय नौसेना में स्थायी आयोग (पीसी) के इनकार से संबंधित फैसले में कहा कि सीलबंद आवरण प्रक्रिया खतरनाक मिसाल कायम करती है, यह अधिनिर्णय की प्रक्रिया को अस्पष्ट और अपारदर्शी बनाती है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में संवेदनशील जानकारी के प्रकटीकरण न करने का उपाय उस उद्देश्य के अनुपात में होना चाहिए, जो गैर-प्रकटीकरण पूरा करना चाहता है। साथ ही अपवादों को मानदंड नहीं बनना चाहिए। मलयालम समाचार चैनल मीडियावन पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए टेलीकास्ट प्रतिबंध के संबंध में फैसला आने के बाद ही सीलबंद आवरण पर सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण स्पष्ट होना चाहिए। जबकि, फैसला केवल सुरक्षित रखा गया है। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने सीलबंद लिफाफों के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया। यह मामला अभी विचाराधीन है। इसकी अंतिम सुनवाई 3 नवंबर 2022 को हुई। अभी भी इस मामले में फैसला आना है। इस मामले में केरल उच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय द्वारा सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत कुछ दस्तावेजों के आधार पर चैनल के प्रसारण लाइसेंस को नवीनीकृत नहीं करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा है। इसने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को उठाया। हालांकि, निष्कर्ष तक पहुंचने और प्रतिबंध को बनाए रखने के लिए इन दस्तावेजों पर भरोसा किया गया। लेकिन दूसरे पक्ष (मीडिया वन) को उन्हें देखने का अवसर नहीं मिला।

भारत के मुख्य न्यायाधिपति डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष मामला जब सुनवाई के लिए उठाया गया तो भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने सीलबंद आवरण नोट पेश किया। हालांकि, पीठ ने सीलबंद आवरण के नोट को स्वीकार करने से साफ इंकार कर दिया और कहा कि इसे दूसरे पक्ष के साथ साझा किया जाना है। मुख्य न्यायाधिपति ने जब एजी से सीनियर एडवोकेट हुजेफा अहमदी (जो पूर्व सैनिकों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं) के साथ नोट साझा करने के लिए कहा तो एजी ने कहा कि यह गोपनीय है। इस पर मुख्य न्यायाधिपति ने आश्चर्य जताया कि यहां गोपनीयता क्या हो सकती है, क्योंकि मामला अदालत के आदेश के कार्यान्वयन से संबंधित है।

मुख्य न्यायाधिपति ने अटार्नी जनरल से कहा कि मैं व्यक्तिगत रूप से सीलबंद लिफाफों के खिलाफ हूं। इसमें हम जो कुछ देखते हैं, वह नहीं होता। हम उसे दिखाए बिना मामले का फैसला करते हैं। यह मूल रूप से न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत है। अदालत में गोपनीयता नहीं हो सकती है। न्यायालय को पारदर्षी होना चाहिए। केस डायरी में गोपनीयता समझ में आती है। अभियुक्त इसका हकदार नहीं है, या कुछ ऐसा जो सूचना के स्त्रोत को प्रभावित करता है या किसी के जीवन को प्रभावित करता है। लेकिन, यह पेंशन के भुगतान करने का हमारा फैसला है। इसमें बड़ी गोपनीयता क्या हो सकती है?

अटार्नी जनरल ने हालांकि कहा कि कुछ संवेदनशीलता के मुद्दे हैं। इस पर मुख्य न्यायाधिपति ने कहा कि जब आप विशेषाधिकार का दावा करते हैं, तो हमें उस दावे को तय करना होगा। मुख्य न्यायाधिपति ने कहा कि हमें सीलबंद आवरण प्रक्रिया को समाप्त करने की आवश्यकता है, जिसका पालन सर्वोच्च न्यायालय में किया जा रहा है। क्योंकि, तब उच्च न्यायालय भी पालन करना शुरू कर देंगे। यह मूल रूप से निष्पक्ष न्याय की बुनियादी प्रक्रिया के विपरीत है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वास्तव में केंद्र सरकार ‘वन रैंक वन पेंशन’ योजना के संदर्भ में इस न्यायालय के फैसले का पालन करने के लिए बाध्य है। साथ ही भुगतान के लिए समय-सारणी तय करते समय, जो सामग्री रिकाॅर्ड पर रखी गई है, उसका समय-सीमा के अनुपालन के संबंध में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। केंद्र सरकार ने प्रस्ताव दिया कि 25 लाख में से 4 लाख वन रैंक वन पेंशन के लिए योग्य नहीं हैं। जिन पेंशनभोगियों को वन रैंक वन पेंशन का भुगतान किया जाना है, उनकी कुल संख्या 21 लाख पेंशनभोगियों की श्रेणी में आती है। 21 लाख में से फैमिली पेंशनरों और वीरता पुरस्कार विजेताओं सहित 6 लाख पेंशनरों को पूर्ण बकाया राशि का भुगतान करने के लिए संघ ने वचन दिया है। ऐसा वर्गीकरण इस बात को ध्यान में रखते हुए किया गया कि फैमिली पेंशन भोगियों ने कमाऊ सदस्य खो दिए हैं और वीरता पुरस्कार विजेताओं ने राष्ट्र की उत्कृष्ट सेवा की है। संघ ने यह भी प्रस्ताव दिया कि 70 वर्ष से अधिक आयु के पेंशनभोगियों (लगभग 4 लाख) को 4-5 महीने की सीमा के भीतर देय राशि का भुगतान किया जाएगा। शेष में से तीन किस्तों में एरियर का भुगतान मार्च 2024 तक किया जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी आदेश पारित किया कि फैमिली पेंशनरों और वीरता पुरस्कार विजेताओं को वन रैंक वन पेंशन बकाया का भुगतान 30 अप्रैल, 2023 को या उससे पहले एक किस्त में किया जाएगा। 70 वर्ष से अधिक आयु के पेंशनरों को वन रैंक वन पेंशन बकाया 30.06.2023 को या उससे पहले भुगतान किया जाएगा, चाहे बाहरी सीमा के भीतर एक या अधिक किस्तों में। बकाया वन रैंक वन पेंषन की अंतिम खाई का भुगतान समान किस्तों में 31.08.2023, 30.11.2023 और 28.02.2024 को किया जाएगा। अटार्नी जनरल ने विशेष रूप से यह स्पष्ट किया कि भुगतान के प्रसार का अगले समतुल्यीकरण के प्रयोजनों के लिए देय राशि की गणना पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हालांकि, सैनिकों के अभिभाषक ने विलंबित बकाया के लिए ब्याज देने का अनुरोध किया। लेकिन, पीठ ने इसे स्वीकार नहीं किया।

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विनय झैलावत

लेखक : पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल एवं इंदौर हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं