काम कम राम के भरोसे ज्यादा राजनीति…

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काम कम राम के भरोसे ज्यादा राजनीति…

मध्यप्रदेश में राजनीति अजीबोगरीब दौर में जा रही है। विकास यात्राओं पर भ्रष्टाचार के मुद्दे रिपोर्ट कार्ड पर भारी पड़ते देख रहे हैं। भाजपा की तुलना में कमजोर कांग्रेस,अपने संगठन की मजबूती के बजाय शिवराज सरकार की एंटी इनकंबेंसी पर ज्यादा आश्रित है। दूसरी तरफ भाजपा हाशिए पर डाले गए उपेक्षित कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर रामभरोसे अधिक नजर आती है। ऐसा नहीं है कि भाजपा और उसके केंद्रीय नेतृत्व को खतरे का अंदाजा नहीं है। अभी उसका फोकस मंत्रियों और विधायकों पर है। उन्हें अब फाइनली उच्च स्तर से कामकाज का तौर तरीका बदलने के निर्णायक निर्देश दे दिए गए हैं। भाजपा में जो विकास कार्य हुए हैं उन पर मंत्री-विधायकों का अहंकार और भ्रष्टाचार की शिकायतें भारी पड़ रही हैं। सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ हुई चर्चा में रविवार को दिन भर में मन्त्रिमण्डल के सभी सदस्यों को साफ तौर पर समझा दिया गया है। साथ कार्यकर्ता बाद जनता से भावनात्मक रिश्ता मजबूत करने की नसीहत दे रही है। लेकिन संगठन की दृष्टि से भी पार्टी में सुधार की सख्त जरूरत है। 25 फरवरी को विकास यात्रा सम्पन्न हो जाएगी। इसके बाद बजट सत्र होगा और रिपोर्टकार्ड के मुताबिक सत्ता – संगठन में शल्यक्रिया के संकेत हैं।

आठ महीने बाद प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हैं और माहौल बनाने के लिए कथा- प्रवचन विकास यात्राओं पर भारी पड़ रहे हैं। राम की पार्टी विजय सुनिश्चित करने के लिए विकास कम भगवत कथाओं के नाम पर विजय की वैतरणी पार करने के प्रयास में है।कांग्रेस और उनके नेता कमलनाथ भी चुनाव की गंगा में कथा वाचकों के पैर पखार जीत का आचमन करने की कोशिश में लगे हैं। कांग्रेस के नाथ भाजपा का मुकाबला करने के लिए सॉफ्ट हिंदुत्व पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। हालांकि यह कांग्रेस राजनीतिक लाइन से थोड़ा अलग है। लेकिन कांग्रेस में ऐसे बहुत से लोग हैं जो चर्चा में यह मानते हैं कि बहुसंख्यको की अनदेखी कर भाजपा को मात देना मुश्किल काम है। शायद इसीलिए कमलनाथ मंदिरों से लेकर साधु संतों और कथा वाचकों के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने में पीछे नही है। चुनाव तक नाथ ने इस रणनीति को मजबूती से बनाए रखा तो भाजपा केम्प इसकी कोई काट जरूर खोजेगा। कांग्रेस के नेता धर्म के साथ कर्मचारी और किसानों के मुद्दे पर भी भाजपा से निर्णायक बढ़त लेने पर विचार कर रहे हैं। बहुत संभव है आने वाले दिनों में खासतौर से नवरात्रि और उसके बाद कांग्रेस के नेता भी अपने क्षेत्रों में कन्या भोजन माता के जगराते और राम कथा और श्रीमद् भागवत कथा के आयोजन करते नजर आए इसके अलावा संगठन की दृष्टि से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हारी हुई सीटों पर अभी से दौरा करने में जुट गए हैं। वह क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के साथ प्रत्याशी चयन के लिए भी गंभीरता से फीडबैक ले रहे हैं। दिग्विजय सिंह की संगठन क्षमता और चुनावी रणनीति का लोहा तो भाजपा के नेता भी मानते हैं। भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से शक्तिशाली हुए दिग्विजय सिंह प्रदेश आते ही मैदान में सक्रिय हो गए हैं। इससे मध्य प्रदेश की राजनीति के समीकरण बदलते दिखाई देंगे । इसका असर कांग्रेस की आंतरिक और गुटीय राजनीति पर भी साफ तौर पर नजर आएगा। कांग्रेस में मैदानी कार्यकर्ता और सक्रिय नेताओं की पूछ परख बढ़ेगी।

*राजनीति में गहरा होता कथाओं का रंग…*
मध्य प्रदेश की राजनीति में कमजोर होते राजनेता धर्म और कथाओं का उपयोग उन विद्यार्थियों की तरह कर रहे हैं जो पढ़ाई करने के बजाए गैस पेपर और आई एम पी क्वेश्चन लेकर पास होने का प्रयास करते हैं। लेकिन जनता और कार्यकर्ताओं में यह नुस्खे कितना असर करेंगे यह तो टिकट मिलने और मतदान के बाद परिणाम ही बताएंगे लेकिन उसके पहले संगठन और प्रत्याशी चयन करने वाली टीम के सामने उनका पास होना जरूरी है अगर गलत रिपोर्ट आई तो टिकट ही कट जाएगा ऐसे में कथा कराने और धर्म रंग चढ़ाने की प्रैक्टिस बेकार चली जाएगी। प्रदेश के लगभग 100 से अधिक सीटें ऐसी है जहां कथावाचक भक्ति के नाम पर भीड़ को अपनी तरफ खींच रहे हैं कमजोर राजनेताओं के लिए कथा वाचक उन आईएमपी क्वेश्चन तरह है जिसे पढ़कर कमजोर विद्यार्थी की परीक्षा पास कर लेता है। यही वजह है कि कथा- यज्ञ, कराने के साथ जहां भी इस तरह के आयोजन हो रहे वहां नेतागण हाजिरी लगाने और मत्था टेकने से नहीं चूक रहे हैं। पांच साल जनता और कार्यकर्ता की उपेक्षा करने के साथ भ्रष्ट आचरण करने वाले नेताओं पर इस बार के चुनाव भारी पड़ने वाले हैं क्योंकि संगठन,कार्यकर्ता और जनता की बारीक नजर से बचना मुश्किल लगता है। भाजपा में बजट सत्र के बाद राजनीतिक कुहासा और अनिश्चितता का वातावरण काफी हद तक साफ हो जाएगा। इसलिए लोगों को जोर का झटका धीरे से लगने के लिए भी तैयार रहने के संकेत मिल रहे हैं।

*मजाक बना रुद्राक्ष वितरण*
मध्यप्रदेश में सीहोर में 2 साल से आयोजित रुद्राक्ष वितरण समारोह सरकार प्रशासन और भक्तों के लिए मुश्किल के साथ मजाक और साजिद का विषय बन गया है। एक तरफ आयोजक अनुमान नहीं लगा सके कि देश भर से कितने भक्त निशुल्क मिलने वाले रुद्राक्ष को लेने के लिए आएंगे दूसरी तरफ प्रशासन इस बात की जिम्मेदारी तय नहीं कर सका कि यदि इंदौर भोपाल जैसे व्यस्त मार्ग पर दिन-रात हफ्ते भर तक जाम के हालात होंगे तो इसका जिम्मेदार कौन होगा गत वर्ष भी इसी तरह की दिक्कतें आई थी और इस बार तो एक बच्चे के साथ सात भक्तों के जान गवाने और कई दिन तक यातायात के गड़बड़ आने में प्रशासन और सरकार दोनों को मुश्किल में डाल दिया। इस तरह के आयोजनों में अव्यवस्था होने पर जिम्मेदारी तय कर दोषियों को दंडित करना जरूरी है। अन्यथा धर्म की निंदा करने वाले और आस्था को अफीम बताने वाले बढ़ते जाएंगे। सच मे अव्यस्था के कारण यह सब धर्म कम अधर्म ज्यादा हो गया।