आओ राष्ट्रभक्त बहादुर शाह जफर को याद करें…

आओ राष्ट्रभक्त बहादुर शाह जफर को याद करें…

आज जब देश में नफरत और मोहब्बत जैसे शब्दों को राजनीति में जकड़ा जा रहा हो, तब हम एक राष्ट्रभक्त को याद करते हैं। दरअसल 21 सितंबर ही वह तारीख थी, जब 1857 में अंग्रेजों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाले नायक अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार किया था। 1857 के विद्रोह के सबसे महत्वपूर्ण नेता रानी लक्ष्मी बाई, बहादुर शाह जफर और मंगल पांडे थे। नाना साहेब, तात्या टोपे, मान सिंह और कुँवर सिंह सहित कई अन्य उल्लेखनीय स्वतंत्रता सेनानियों ने विद्रोह का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पर 20 सितंबर 1857 को ही अंग्रेजों ने दिल्ली पर फिर से कब्जा कर लिया था और बहादुर शाह जफर के तीन बेटों को भी इसी दिन उन्हीं के आंखों के सामने गोली मार दी गई थी। जबकि 21 सितंबर को अंग्रेजों ने जफर को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया था। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जफर को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। उनके पुत्रों और प्रपौत्रों को ब्रिटिश अधिकारियों ने सरेआम गोलियों से भून डाला था और उनके शवों को बेइज्जत किया था। बहादुर शाह जफर को अधिक 82 साल की उम्र की वजह से बंदी बनाकर रंगून ले जाया गया था, जहां उन्होंने सात नवंबर 1862 को एक बंदी के रूप में दम तोड़ा। उन्हें रंगून में श्वेडागोन पैगोडा के नजदीक दफनाया गया। उनके दफन स्थल को अब बहादुर शाह जफर दरगाह के नाम से जाना जाता है। आज भी कोई देशप्रेमी व्यक्ति जब तत्कालीन बर्मा (म्यंमार) की यात्रा करता है तो वह जफर की मजार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देना नहीं भूलता। लोगों के दिल में उनके लिए सम्मान था, सम्मान है और सम्मान बना रहेगा।

बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह और उर्दू के जानेे-माने शायर भी थे। बहादुर शाह जफर का का जन्म 24 अक्तूबर, 1775 को हुआ था। पिता अकबर शाह द्वितीय की मृत्यु के बाद जफर को 28 सितंबर 1837 को मुगल बादशाह बनाया गया। उस समय तक दिल्ली की सल्तनत बेहद कमजोर हो गई थी और मुगल बादशाह नाममात्र का सम्राट रह गया था। उन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। जब मेजर हडसन मुगल सम्राट को गिरफ्तार करने के लिए हुमायूं के मकबरे में पहुँचा, जहाँ पर बहादुर शाह जफर अपने दो बेटों के साथ मौजूद थे। तब उर्दू का थोड़ा ज्ञान रखने वाले मेजर हडसन ने खिल्ली उड़ाई कि –
“दमदमे में दम नहीं है ख़ैर माँगो जान की.. ऐ ज़फर ठंडी हुई अब तेग हिंदुस्तान की..”

इस पर ज़फ़र ने जवाब दिया था कि-
“ग़ाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की.. तख़्त ए लंदन तक चलेगी तेग (तलवार) हिंदुस्तान की.”
जफर उर्दू के एक बड़े शायर के रूप में भी विख्यात हैं। उनकी शायरी भावुक कवि की बजाय देशभक्ति के जोश से भरी रहती थी और यही कारण था कि उन्होंने अंग्रेज शासकों को तख्ते-लंदन तक हिन्दुस्तान की तेग (तलवार) चलने की चेतावनी दी थी। तो उनके यह दो शेर भी उनकी उस बेबसी को बयां करते हैं जब उन्हें अपने वतन में दफन होने को दो गज जमीन भी हासिल नहीं हो पा रही थी…
दिन ज़िन्दगी खत्म हुए शाम हो गई,
फैला के पांव सोएंगे कुंज-ए-मज़ार में।
कितना है बदनसीब ‘ज़फर’ दफ्न के लिए,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में॥

दरअसल 1857 में जब हिंदुस्तान की आजादी की चिंगारी भड़की तो सभी विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने उन्हें हिंदुस्तान का सम्राट माना और उनके नेतृत्व में अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा दी। अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों की बगावत को देख बहादुर शाह जफर का भी गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने अंग्रेजों को हिंदुस्तान से खदेड़ने का आह्वान कर डाला। भारतीयों ने दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में अंग्रेजों को कड़ी शिकस्त दी। शुरुआती परिणाम हिंदुस्तानी योद्धाओं के पक्ष में रहे, लेकिन बाद में अंग्रेजों के छल-कपट के चलते प्रथम स्वाधीनता संग्राम का रुख बदल गया और अंग्रेज बगावत को दबाने में कामयाब हो गए। तब बहादुर शाह जफर ने हुमायूं के मकबरे में शरण ली थी। गोरखपुर विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्राध्यापक डॉ॰ शैलनाथ चतुर्वेदी के अनुसार 1857 के समय बहादुर शाह जफर एक ऐसी बड़ी हस्ती थे, जिनका बादशाह के तौर पर ही नहीं एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के रूप में भी सभी सम्मान करते थे। इसीलिए बेहद स्वाभाविक था कि मेरठ से विद्रोह कर जो सैनिक दिल्ली पहुंचे उन्होंने सबसे पहले बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह बनाया। जफर को बादशाह बनाना सांकेतिक रूप से ब्रिटिश शासकों को एक संदेश था। इसके तहत भारतीय सैनिक यह संदेश देना चाहते थे कि भारत के केन्द्र दिल्ली में विदेशी नहीं बल्कि भारतीय शासक की सत्ता चलेगी। बादशाह बनने के बाद बहादुर शाह जफर ने गोहत्या पर पाबंदी का पहला आदेश दिया था। इस आदेश से पता चलता है कि बहादुर शाह जफर हिन्दू-मुस्लिम एकता के बहुत बड़े पक्षधर थे।

खैर जब बात 1857 के प्रथम संग्राम की होती है, तो राजनीति में उसे भी अपने-अपने नजरिए से इस्तेमाल किया जाता है। जफर को लेकर भी अपनी-अपनी सोच हो सकती है। पर यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि भारत की माटी ने हर देशभक्त का हमेशा सम्मान किया है और बहादुर शाह जफर भी उनमें से एक हैं। आज यानि 21 सितंबर, राष्ट्रभक्त बहादुर शाह जफर को याद करने का दिन है…।

Author profile
khusal kishore chturvedi
कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के जाने-माने पत्रकार हैं। इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में लंबा अनुभव है। फिलहाल भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र एलएन स्टार में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले एसीएन भारत न्यूज चैनल के स्टेट हेड रहे हैं।

इससे पहले स्वराज एक्सप्रेस (नेशनल चैनल) में विशेष संवाददाता, ईटीवी में संवाददाता,न्यूज 360 में पॉलिटिकल एडीटर, पत्रिका में राजनैतिक संवाददाता, दैनिक भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ, एलएन स्टार में विशेष संवाददाता के बतौर कार्य कर चुके हैं। इनके अलावा भी नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन किया है।