झूठ बोले कौआ काटे! शव से सेक्सः कानून मौन, सरेआम खूनः दोषी कौन

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झूठ बोले कौआ काटे! शव से सेक्सः कानून मौन, सरेआम खूनः दोषी कौन

– रामेन्द्र सिन्हा

दिल्ली के शाहबाद डेयरी इलाके में नाबालिग साक्षी की सरेआम नृशंस हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। तो, कर्नाटक के तुमकुर स्थित एक गांव में एक युवती की हत्या के बाद शव से दुष्कर्म करने वाले आरोपी को कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया। न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो शव के साथ यौन संबंध बनाने पर आरोपित को दोषी ठहराता हो। नपुंसक होते जा रहे समाज और कमजोर कानून को लेकर समाज (?) चिंतित है!

तुमकुर मामले में आरोपी ने 25 जून 2015 को 21 वर्षीय युवती की गर्दन काटकर हत्या कर दी थी और फिर उसके साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था। पुलिस ने जांच के दौरान आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उसके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। अधीनस्थ न्यायालय ने सबूतों के आधार पर आरोपी को दोषी करार दिया था।

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कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस वेंकटेश नाइक टी की खंडपीठ ने दोषी रंगराजू उर्फ ​​वाजपेयी द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिससे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत सजा को रद्द कर दिया गया। हालांकि न्यायालय ने हत्या के लिए उसकी सजा को बरकरार रखा और ट्रायल कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि की।

पीठ ने कहा, “भारतीय दंड संहिता की धारा 375 और धारा 377 के प्रावधानों को सावधानीपूर्वक पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि मृत शरीर को मानव या व्यक्ति नहीं कहा जा सकता, जिससे भारतीय दंड संहिता की धारा 375 या 377 के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे।” इसे परपीड़न, नेक्रोफीलिया माना जा सकता है और भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के अंतर्गत दंडित करने के लिए कोई अपराध नहीं है।”

मार्च 2023 में ही दिल्ली पुलिस ने नेक्रोफीलिया के एक संदिग्ध मामले में 36 वर्षीय व्यक्ति को अपने पुरुष मित्र की हत्या करने और फिर शव के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया था। घटना 9 फरवरी को अलीपुर क्षेत्र के सिंघू गांव में उसके किराए के मकान में हुई थी। मई 2020 में, असम में एक 50 वर्षीय व्यक्ति को पुलिस ने 14 वर्षीय लड़की के शव के साथ कथित यौन संबंध बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

चर्चा है कि पाकिस्तान में हालात ऐसे हो चुके हैं कि परिवारवाले अपनी महिलाओं की कब्र पर ताला लगाने को मजबूर हो गए हैं क्योंकि, देश में नेक्रोफीलिया के मामले दिनों-दिन बढ़ते जा रहे हैं। 2015 में घाना के स्कर्कुर लुकास, मुर्दाघर में कार्यरत एक अटेंडेंट ने एक लाइव स्ट्रीमिंग न्यूज चैनल पर स्वीकार किया कि उसने मुर्दाघर में महिलाओं के शवों के साथ “कई बार” सेक्स किया क्योंकि उसकी कोई प्रेमिका नहीं थी। अक्टूबर 2017 में बोलिविया के लॉ पाज शहर में मुर्दाघर में रखे महिला के शव के साथ दुष्कर्म का प्रयास करते एक अस्पताल कर्मी को मृतक के पति ने रंगे हाथ पकड़ लिया था।

सोवियत रूस के यूक्रेन में जन्मा कुख्यात सीरियल किलर आंद्रेई शिकाटिलो महिलाओं की हत्या कर उनके साथ शारीरिक संबंध बनाता, फिर आंखें निकाल कर उनका प्राइवेट पार्ट काट देता था। उसने 1978 से 1990 के बीच 56 से अधिक लोगों की हत्याएं की थीं। वह पेशे से टीचर था, जो बचपन में यौन हीन-भावना से ग्रस्त था। 14 फरवरी, 1994 को उसके गुनाहों के लिए सिर पर गोली मारकर उसे मौत के घाट उतार दिया गया।

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जर्मनी के मूल निवासी और अमेरिका में बसे डॉक्टर कार्ल टेंजलर ने एक महिला को अपनी दुल्हन मानकर उसके शव के साथ 7 साल तक शारीरिक संबंध बनाए। जब लोगों को इस बात का पता चला तो वे सन्न रह गए। यह घटना 19339 से 1940 के बीच की है। हालांकि, यथोचित कानून के अभाव में तब डॉक्टर कार्ल भी सजा से बच गया।

दूसरी ओर, दिल्ली की दिल दहलाने वाली घटना के वाइरल सीसीटीवी फुटेज से देश भर में सनसनी है। वीडियो में साहिल नाम का आरोपी 16 साल की नाबालिग पर दो दर्जन से अधिक बार चाकू से हमला करता नजर आ रहा है। चाकू से वार करने के बाद आरोपी ईंट से भी लड़की को बार-बार मारता नजर आता है। इस दौरान वहां कई लोग मौजूद थे लेकिन किसी ने नाबालिग की मदद करने की कोशिश नहीं की। सभी तमाशबीन बने रहे।

झूठ बोले कौआ काटेः

भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, फिर भी यह कुछ अधिकारों के बारे में मौन है, अधिकार जो संविधान का मसौदा तैयार करते समय कल्पना से परे थे। भारतीय कानूनों और विधियों द्वारा एक मृत व्यक्ति के अधिकार बहुत अस्पष्ट रूप से कवर किए गए हैं। यही, नेक्रोफीलिया जैसे अपराधों को जन्म देता है।

तुमकुर मामले में दोषी ने अपनी अपील में तर्क दिया कि कथित कृत्य ‘नेक्रोफीलिया’ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है और इसके लिए सजा का आईपीसी में कोई प्रावधान नहीं है। अभियोजन पक्ष का कहना था कि यह आईपीसी की धारा 375 (ए) और (सी) के प्रावधानों के तहत आता है और आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय है।

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हाई कोर्ट ने मामले में सुझाव के लिए एमिकस क्यूरी की नियुक्ति की थी। उनका कहना था कि भारत में ‘नेक्रोफीलिया’ को अपराध के रूप में मान्यता नहीं है। लेकिन संविधान का अनुच्छेद 21 केवल गरिमा और सम्मान के साथ जीवन का ही अधिकार नहीं देता, बल्कि गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु और उसके बाद अंतिम संस्कार को भी मान्यता प्रदान करता है।

इन दलीलों पर विचार करने के बाद पीठ इस निष्कर्ष पहुंची कि आईपीसी के तहत बलात्कार एक व्यक्ति के साथ होना चाहिए न कि शव के साथ। बलात्कार वह स्थिति है जो किसी की इच्छा के विरुद्ध होता है, जबकि लाश न तो इसके लिए सहमति दे सकता है या विरोध कर सकता है। पीठ ने कहा, “बलात्कार के अपराध में आरोपित के प्रति आक्रोश और पीड़ित की भावनाएं शामिल हैं। एक मृत शरीर में आक्रोश की कोई भावना नहीं होती है।”

सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 21 में एक व्यक्ति के जीवन के जो अधिकार परिभाषित हैं, उसमें उसके मृत शरीर का अधिकार भी शामिल है। ब्रिटेन और कनाडा का उदाहरण देते हुए बताया कि इन देशों में शव के साथ अपराध भी दंडनीय है। ऐसे कानून भारत में भी बनाए जाने चाहिए। पीठ ने कहा, “मृत शरीर की गरिमा की रक्षा के लिए केंद्र सरकार को आईपीसी के प्रावधानों में संशोधन पर विचार करना चाहिए।” शवों के साथ अपराध रोकने के लिए अदालत ने राज्य सरकार को छह महीने के भीतर सभी सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के मुर्दाघरों में सीसीटीवी लगाने के निर्देश भी दिए हैं।

बोले तो, भारत में नेक्रोफीलिया के बहुचर्चित मामलों में से एक निठारी मामला (2006) है जिसमें आरोपी के घर जाने के बाद 19 लड़कियों के लापता होने का पता चलने के बाद आरोपी पंढेर और उसके नौकर कोली को हिरासत में ले लिया गया था। नौकर ने अपराध स्वीकार किया और कहा कि उसने 16 लोगों (9 बच्चियों, 2 बच्चों और 5 वयस्क महिलाओं) को मार डाला। वह पीड़ितों को अपने बेडरूम में मारता था और फिर शवों को बाथरूम में ऊपर की ओर घसीटता था और उनके साथ बलात्कार करने का प्रयास करता था और फिर उन्हें पकाने के लिए छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता था और बाकी को अपने बंगले के पीछे नाले में फेंक देता था। तब, सबूतों की कमी के कारण पंढेर को क्लीन चिट मिल गई, और कोली के खिलाफ मामला लाया गया, जो अपहरण, बलात्कार, हत्या और शवों को दूषित करने के लिए सहमत था।

आम तौर पर, इस तरह के अधिकांश मामलों में अभियुक्तों पर मामले के आधार पर हत्या, बलात्कार, यौन उत्पीड़न और नरभक्षण का आरोप लगाया जाता है, लेकिन नेक्रोफीलिया के लिए आरोप नहीं लगाया जाता है क्योंकि कानून इसके बारे में बहुत अस्पष्ट है। ऐसे अनिश्चित कानूनों के कारण राज्य भी सही आरोप तय नहीं कर पाता और इस घृणित अपराध की सजा से बच जाता है। चूंकि, भारत नेक्रोफीलिया के बढ़ते मामलों का सामना कर रहा है, इसलिए नेक्रोफीलिया के खिलाफ कानून समय की मांग है।

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अब बात साक्षी मामले की। गीता में कहा गया है- जहां पाप का प्रभाव बढ़ रहा हो, जहां छल-कपट हो रहा हो वहां पर मौन रहने से अधिक गंभीर अपराध और कुछ नहीं हो सकता। हत्यारा साक्षी को सरेआम, सरेराह बेरहमी से मार रहा था और आते-जाते, वहां मौजूद लोग नपुंसकों की तरह तमाशबीन बने रहे या अनदेखी करते रहे। तथ्य यह भी है कि शासन-प्रशासन के इकबाल से संगठित अपराधों पर लगाम लग सकती है, लेकिन पुलिस हर घर-गली में मौजूद नहीं रह सकती।

तो, ऐसी कौन सी बात है जो हमें विरोध करने से रोकती है। यह सामने वाले की शक्ति तो नहीं हो सकती। यह तो हमारा खुद का डर होता है जो हमें मौन रहने को विवश करता है। क्या हम मन से डर को निकाल कर अन्याय का विरोध नहीं कर सकते? दो-तीन लोगों ने भी हिम्मत दिखायी होती तो साक्षी की जान बच जाती। इस मामले में लव जिहाद एंगिल की आशंका अभिभावकों की बच्चों के साथ संवादहीनता पर भी प्रकाश डालती है।

और ये भी गजबः

‘नेक्रोफीलिया’ ग्रीक शब्द ‘नेक्रो’ (मृत शरीर) और ‘फिलिया’ (आकर्षित/ प्यार) से लिया गया है और इसे एक पैराफिलिया के रूप में परिभाषित किया गया है जिससे अपराधी को मृत के साथ यौन संबंध बनाने के दौरान यौन सुख मिलता है। एक नेक्रोफिलिक वह व्यक्ति है जो स्वेच्छा से ऐसे कार्यों में शामिल होता है जो आम तौर पर यौन इच्छाओं से प्रेरित होते हैं।

नेक्रोफीलिया एक तरह की मानसिक बीमारी है, जो अधिकतर पुरूषों में पाई जाती हैं। नेक्रोफीलिया को नेक्रोफिलिज्म, नेक्रोलाग्निया, नेक्रोकाइटस, नेक्रोक्लेसिस और थानाटोफिलिया के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी को मनोचिकित्सक डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर कहते हैं। इस बीमारी में सबसे पहले अमेरिका के करेन मार्गरेट नाम के व्यक्ति को दोषी ठहराया गया था।