limited Prohibition : मध्यप्रदेश सरकार की सीमित शराबबंदी और उसके निहितार्थ! 

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limited Prohibition : मध्यप्रदेश सरकार की सीमित शराबबंदी और उसके निहितार्थ! 

वरिष्ठ पत्रकार छोटू शास्त्री की टिप्पणी

नर्मदा का पावन तट, महेश्वर का पुराना किला, जानकार बुनकरों की महेश्वरी साड़ियां, नर्मदा के तट पर चलते हुए परिक्रमावासी और मध्य प्रदेश का मंत्रिमंडल शुक्रवार का साक्षी रहेगा। इसी तट पर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सीमित ही सही, परंतु शराबबंदी की दिशा में एक लांग मार्च किया। यह वह काम था, जिसे देश की पहली भगवाधारी मुख्यमंत्री उमा भारती तथा नर्मदा के किनारे बसे पांव पांव वाले भैया शिवराज जी ने भी नहीं किया।

शिप्रा के तट से अपने जीवन की राजनीतिक शुरुआत करने वाले मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने नर्मदा के तट पर एक कठिन एवं महत्वपूर्ण अभियान की शुरुआत कर दी। उन्हें इतिहास तथा नर्मदा के पाट पर चलने वाला हर पथिक हमेशा याद रखेगा। इस संदर्भ में याद दिलाना जरूरी है कि सरकार शायद भूलवश जैन समाज के पवित्र स्थल धार जिले के मोहनखेड़ा को शामिल नहीं कर सकी।

शराबबंदी कोई नई अवधारणा नहीं है। परंतु, जब सरकार के पास वित्त का अभाव हो और समाज उच्चतम खुलापन चाहता हो, तो शराबबंदी का निर्णय कुंभ की इस बेला में विषपान जैसा होता है। आज 17 जगह की दुकान बंद होगी, कल 27 फिर 37 और इसके बाद शायद पूरे मध्य प्रदेश ही शराबबंदी का फैसला हो जाए। परंतु कुछ सवाल अभी भी अनुत्तरित हैं। शराबबंदी के बाद भी लोग शराब पीते हैं और जहां शराबबंदी नहीं है, वहां भी आबादी का बड़ा भाग शराब नहीं पीता। शराबबंदी से पूरी तरह शराब रुक जाए यह बात कितना सत्य हो सकता है? लाख शराब बिकती रहे, जिसे नहीं पीना है वह नहीं पिएगा, यह बात कितनी असत्य है? सभी लोग खाने-पीने में बड़े चूजी होते हैं। जो खाना होगा वह खायेगे और जो पीना होगा वह पियेंगे, यह सब परिवारों में रहता है। खाने के लिए उपलब्ध बहुत सारी चीजों में बहुत सारे लोग विभिन्न कारणों से नहीं खाते और नहीं पीते हैं।

इस दृष्टि से देखा जाए तो प्रदेश की बहुतायत जनता शराब नहीं पीती। उनके लिए स्वयं का संयम, संस्कार तथा आचरण ही शराबबंदी है। खाना और पीना हमेशा व्यक्तिगत निर्णय रहा है। क्योंकि, जो आप खाते-पीते हैं, वह आपके पेट में जाता। भगवान ने ऐसी चमत्कारिक व्यवस्था नहीं बनाई कि आप खाएं और दूसरे का पेट भर जाए या आप शराब पिए और दूसरे को नशा हो जाए। परंतु, कोई शराब पीकर नशे में आ जाए और असामाजिक, अमर्यादित, आपराधिक हरकतें करने लगे। उस पर रोक के लिए मुख्यमंत्री ने शराबबंदी की है। शराब बंदी का उद्देश्य खाने-पीने पर नियंत्रण नहीं, बल्कि उसके कुप्रभावों से बचाने का सरकार का एक प्रयास है।

किसी बुजुर्ग का कहना है कि हवा, पानी और शराब किसी के रोके नहीं रुकते हैं। गुजरात और बिहार तथा पूर्व में हरियाणा के अनुभव इस बात की गवाही है। महाकुंभ के प्रारंभ में इस घोषणा को करके मुख्यमंत्री ने अपने इरादे धर्म की चौखट पर अर्पित कर दिए है। जहां तक अर्थव्यवस्था के नुकसान की बात है, तो उसकी भरपाई किसी भी आदमी के स्वास्थ्य एवं समाज की मर्यादा से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। यहां पर मुद्दा शराब के घर-घर के विक्रय को रोकना ज्यादा महत्वपूर्ण है। शराब के कानून इतने ढीले हैं,कि उनसे पूर्ण शराबबंदी की उम्मीद करना ऐसे ही है जैसा 151 की धारा लगाकर किसी घर अपराधी को नियंत्रित करने का प्रयास करना।

शायद इसीलिए मुख्यमंत्री ने चुनिंदा स्थानों पर ही शराब बंदी लागू की। यदि यह अभियान सफल रहा, तो शायद मुख्यमंत्री प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू कर सकेंगे। शराबबंदी का कोई विरोध नहीं करेगा परंतु यह कहा जाएगा कि यह पूरे प्रदेश में क्यों लागू नहीं हुआ? इसका जवाब यह है कि किसी भी कठिन एवं महत्वपूर्ण काम की शुरुआत छोटे स्तर से होती है और योजनाबद्ध तरीके से होती है। क्या इस सरकार के सबसे असरकारी काम पर लाड़ली लक्ष्मी के लाभार्थी तथा वृद्धावस्था पेंशन योजना के लाभार्थी का अनिवार्य नैतिक दायित्व नहीं बनता कि इस योजना को सफल बनाएं?

क्या प्रदेश सरकार के किसी भी योजना के लाभार्थी का यह दायित्व नहीं बनता की मुख्यमंत्री के इस शराबबंदी योजना को प्रत्यक्ष एवं नैतिक समर्थन दें? और यदि नहीं दे रहे हैं एवं प्राप्त राशि का दुरुपयोग शराब के लिए कर रहे हैं तो क्यों न ऐसे लाभार्थियों को योजना से बाहर कर दिया जाए? कैबिनेट की बैठक अभी खत्म हुई है। नर्मदा का तट मुख्यमंत्री के उद्घोषणा की प्रतीक्षा कर रहा है। नर्मदा का पवित्र जल लगातार प्रवाह मान है परंतु मां अहिल्याबाई की आत्मा कुछ शुभ सुनना चाहती है और यह भी चाहती है कि कम से कम नर्मदा के तटो से 20 किलोमीटर के उत्तर एवं दक्षिण क्षेत्र में किसी शराब से लड़खड़ाते पैरों को नर्मदा की तरफ आने की अनुमति नहीं देना चाहती।

शायद मां देवतुल्य अहिल्याबाई की भी यही इच्छा।