Literature & Media Festival : हम नैतिकताओं से मुक्त समय में जी रहे!
Mumbai : ‘आज हम नैतिकताओं से मुक्त समय में जी रहे हैं जहां नई नैतिकताएं हैं। यह न्यू इंडिया है यहां पुराने और प्राचीन परम्परावादी समाज, संस्कारों से दूर वे संस्कार जो हमें साहित्य देता था। भाषा के संस्कार, विचारों के संस्कार, सभ्यता के संस्कार, व्यवहार के संस्कार पर आज का युवा साहित्य मशीनों के तंत्र में उलझा है। मशीन कभी मस्तिष्क का विकल्प नहीं हो सकती।
यह विचार कथाकार पत्रकार हरीश पाठक ने तीन दिवसीय ‘भारत : साहित्य एवं मीडिया महोत्सव’ के अंतिम दिन के पहले सत्र में ‘युवा और साहित्य’ विषय पर बोलते हुए व्यक्त किए। वे इस सत्र के अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा कि आज का युवा दो वर्गों में बंटा है साधनहीन व साधन संपन्न। साधनहीन आठ घण्टे की नौकरी के बाद भी रच रहा है, पढ़ रहा है। साधन संपन्न पढ़ना भूल चुका है। उसके पास फिल्म, ओटीटी, यूट्यूब और सोशल मीडिया है।
आज विषय बदल गए हैं। समलैंगिकता और लिव इन केंद्रीय धारा में आ गए हैं। फिर भी कुछ हैं जो नया रच रहे हैं।’उन्होंने नीलेश रघुवंशी, कविता कर्मकार की कविताएँ व दुष्यंत व मिथिलेश प्रियदर्शी की कहानियों के उदाहरण दिए। इस सत्र में जयप्रकाश नागला, डॉ अत्रि भारद्वाज, डॉ आकाश शॉ, डॉ अलीम मोहम्मद, मनीष खत्री आदि ने अपने विचार रखे। इस महोत्सव का आयोजन केंद्रीय हिंदी संस्थान, महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी, मुंबई मराठी पत्रकार संघ व काशी वाराणसी विरासत फाउंडेशन ने किया था।