Loksabha Election 2024:संसद में कूदना लोकसभा चुनाव बिगाड़ने की साजिश तो नहीं ?

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Loksabha Election 2024:संसद में कूदना लोकसभा चुनाव बिगाड़ने की साजिश तो नहीं ?

पिछले दिनों दो युवक दर्शक दीर्घा से संसद हॉल में कूद पड़े और जूतों में छुपाकर ले गये रंगीन धुंए का स्प्रे कर सनसनी फैला दी। बाहर इनके दो साथियों ने नारेबाजी कर ध्यान खींचा। क्या ये घटनायें बस इतनी ही सामान्य लगती हैं कि वे बेरोजगारी से तंग आकर सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाह रहे थे? यदि ऐसा ही होता तो विपक्ष संसद में इतना हंगामा नहीं करता कि उसके 141 सांसदों को सत्र के लिये निलंबित कर दिया जाता। ऐसा लगता है,यह मुद्दाविहीन हो चुके विपक्ष की किसी साजिश का हिस्सा है, जिसके तहत वे इस घटना के बहाने देश भर में प्रदर्शन,धरना,हंगामा मचाना चाहते हैं। विचारणीय तो यह है कि ऐसा हंगामा तो विपक्ष ने तब भी नहीं किया था, जब अटल सरकार के समय आतंकवादी संसद में घुस आये और गोलीबारी कर दी। न ही मनमोहन सरकार के समय भाजपा ने ऐसा हंगामा किया, जब 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तानी आतंकवादी मुंबई में घुस आये और करीब 175 लोगों को मार डाला था। तब चिंदी जैसी घटना के लिये लोकसभा में तख्तियां लेकर प्रदर्शन करने जैसा अमर्यादित आचरण जानबूझकर किया गया लगता है।संसद और सड़क का इतना फर्क तो विपक्ष भी जानता ही होगा।

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2024 के लोकसभा चुनाव बेहद आसानी से संपन्न हो जायें, इसमें संदेह नजर आता है। सत्ता प्राप्ति के इस पांच साला अवसर की दहलीज पर सांसें रोके खड़ा विपक्ष इसे हाथ से यूं ही फिसल जाने दे,ऐसा लगता तो नहीं है। तब क्या देश में ऐसे हालात तो पैदा नहीं कर दिये जायेंगे, जो या तो चुनाव को टालने की नौबत ला दे या वे इतने दूषित हो जायें कि उसके परिणामों की सत्यता पर संदेह मंडराने लग जाये? अभी तो वैसा कुछ नजर नहीं आ रहा, किंतु इस बार के चुनाव आर-पार के होने पर किंचित भी संदेह तो नहीं है। लोकतंत्र में विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते हुए देश में अराजक हालात खड़े कर देना कितना ही देश हित में न हो,लेकिन मौजूदा परिदृश्य में इस तरह की आशंकाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। इसके कुछ ठोस कारण साफ दिखाई दे रहे हैं ।

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प्रधानमंत्री मोदी

2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद जब उसने वास्तविक अर्थों में जनहितकारी सरकार की तरह क्रियाकलाप प्रारंभ किये और जनता के बीच उसके प्रति अटूट विश्वास जमने लगा तो विपक्ष की नींव हिलने लगी। 2019 के आम चुनाव में गैर भाजपा दलों को फिर से मिली विफलता और राज्य-दर-राज्य कांग्रेस और अन्य भाजपा विरोधी दलों के हाथ से निकलने लगे तो उसकी यह धारणा मजबूत होने लगी कि यदि मोदी को 2024 में नहीं रोका गया तो 2029 तक तो ऐसे हालात हो जायेंगे कि विपक्ष कहीं ढूंढे नहीं मिलेगा और उत्तर-दक्षिण,पूरब-पश्चिम चारों तरफ राज्य सरकारें भी ज्यादातर भाजपा की हो सकती हैं। उसका यह भय तमाम भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर तो ले आया है। जबकि वे स्वयं भी परस्पर विरोधी हैं और अतीत में एक-दूसरे के खिलाफ इतना विष वमन कर चुके हैं कि सोशल मीडिया पर दौड़ रहे उनके बयान और वीडियो की सफाई भी देते नहीं बन रहा। इतने विरोधाभासी आचरण के बावजूद भी वे गठबंधन बना रहे हैं तो केवल इसलिये कि पहले मोदी नामक विराट अवतार से निपट लें, फिर आपसी रंजीशें तो बाद में देख लेंगे।

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Loksabha Election 2024
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मोदी और भाजपा पर तेज हमला 22 जनवरी के आसपास भी हो सकता है, जब अयोध्या में राम मंदिर में मूर्ति स्थापना होने जा रही है। इसकी प्रतीक्षा आम भारतीय तो आतुरता से कर ही रहा है, दुनिया भी इस युगांतरकारी घटना की साक्षी बनने को उत्सुक है। इस घटना को देश में करीब सौ करोड़ लोग अपने घरों में बैठकर भी देख सकें,ऐसी व्यवस्था की जा रही है। विपक्ष इससे बेहद भयाक्रांत तो होगा ही। यह संयोग भाजपा को देश में मजबूती देने में जबरदस्त योगदान देगा। इसमें भी संदेह नहीं कि 22 जनवरी 2024 के बाद का भारत एकदम अलग,नया और अधिक सनातनी होगा। अकेले राम मंदिर के मामले में कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को घुटनों पर ला दिया है। वे इस ऐतिहासिक पल से भाजपा को मिलने वाले स्वाभाविक लाभ से किसी भी कीमत पर रोक नहीं सकते। यही उनके किसी खुराफात को अंजाम देने का बड़ा कारण हो सकता है। जबकि वे किसी भी व्यवधान का कारण बने,तब भी वे जनता के द्वारा अधिक वेग से खारिज तो किये ही जायेंगे,इसमें संदेह नहीं । तब होना तो यह चाहिये कि वे सच्चे भारतीय की तरह राम मंदिर के आयोजन में सहभागिता दिखायें और अपने तुष्टिकरण के चेहरे पर नकाब डाल लें। वोट बैंक की राजनीति उन्हें वैसा कुछ करने नहीं देगी और बिना किये वे बहुसंख्यक वर्ग के समर्थन से वंचित रहने के खतरे के बीच अपनी दुविधा से कैसे उबरेंगे, फिलहाल तो वे भी ये नहीं जानते।

भारत के लिये 22 जनवरी 2024 एक तारीख नहीं, इतिहास निर्माण का ऐसा विलक्षण मौका है, जिसमें सकारात्मक भागीदारी इतिहास में दर्ज की जायेगी और विरोध प्रदर्शन अपने अस्तित्व के खात्मे में आखिरी कील साबित होगी। भारतीय जनता दब्बू, प्रताड़ना पसंद,दबी-सहमी झुंड नहीं है, जो अपनी बेचारगी का रोना रोये। वह इस बार सबक सिखाने लायक बलशाली और बुद्धिशाली है। फैसला विपक्ष को लेना है कि वह अपनी तकदीर किस कलम से लिखवाना चाहता है।

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