‘दीपक’ की ‘रोशनी’ में किताब माफिया मुक्त हो मध्यप्रदेश…

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‘दीपक’ की ‘रोशनी’ में किताब माफिया मुक्त हो मध्यप्रदेश…

बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है/ हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा। गुजरे जमाने के शायर रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’ का लिखा हुई यह शेर कल भी प्रासंगिक था, आज भी प्रासंगिक है और कल भी प्रासंगिक रहेगा। इस शेर के ‘उल्लू’ शब्द की जगह आज ‘माफिया’ को रखा जा सकता है। हर तरह का माफिया समाज में मौजूद है और आस्तीन का सांप बनकर देशवासियों को डस रहा है। अगर ऐसा न हो, तब शायद समाज में आम लोग ज्यादा सुकून से जी सकें। बहुत कुछ नारकीय स्थितियां खुद-ब-खुद पैदा होने से पहले ही दफन हो जाएं। और अगर प्रशासन प्रण कर ले, तब ऐसे माफियाओं पर नकेल कसकर स्थायी तौर पर न सही, तो कम से कम अस्थायी तौर पर तो आमजन और समाज को राहत दिलायी ही जा सकती है।

संस्कारधानी से एक ऐसी ही राहत वाली प्रशासनिक कार्यवाही ने सबका दिल जीत लिया है। यह खौफनाक सच उजागर हुआ है कि स्कूलों की 90 फीसदी किताबें फर्जी हैं। पुस्तक माफियाओं की कमाई का खेल जानकर सभी के होश उड़ जाएंगे। बच्चों के भविष्य की आड़ में किस तरह पालकों को नौंचा जा रहा है, यह बहुत ही घृणित खेल कई दशकों से देश में खुलेआम जारी है।यह तथ्य सामने आए हैं कि कमीशनखोरी के लालच में स्कूलों में फर्जी किताबें पढने को बच्चों को मजबूर किया जा रहा है, तो आर्थिक शिकंजा पालकों का गला घोंट रहा है। जांच में बिना आईएसबीएन नंबर की 90 फीसदी तक फर्जी किताबें मिली हैं। जबलपुर कलेक्टर ने खुलासा क्या है कि किस तरह बुक्स माफिया हावी है और पालकों को बेरहमी से लूट रहा है।

हर साल प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और कमीशनखोरी की खबरें सामने आती हैं और बिना किसी कार्यवाही के दम तोड़ देती हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने निजी स्कूल और बुक्स सेलर नेक्सस पर कार्यवाही करने के सख्त निर्देश भी दिए थे। पर कार्यवाही का असल शंखनाद संस्कारधानी जबलपुर के कलेक्टर दीपक सक्सेना ने किया है। ऐसा पहली बार ही हुआ है जब किसी कलेक्टर ने ही इस पूरे सिंडीकेट का पर्दाफाश किया है। बात यहीं नहीं थमी। मध्य प्रदेश के जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने इस पूरे माफिया का न सिर्फ खुलासा किया,बल्कि 11 स्कूल संचालकों पर एफआईआर दर्ज कर 27 मई की सुबह सभी 20 आरोपियों को गिरफ्तार कर कार्यवाही की मिसाल पेश की है।

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने खुलासा किया कि स्कूलों में चलने वाली 90 प्रतिशत और कई मामलों में तो 100% किताबें तक फर्जी हैं। उन्होंने अपनी जांच में पाया कि निजी स्कूलों में चल रही किताबों पर जरुरी आईएसबीएन नंबर है ही नहीं। इन किताबों पर जो आईएसबीएन नंबर दर्ज किये गए हैं, वे सब फर्जी हैं। आईएसबीएन एक अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या है। ये 13 अंक का एक कोड होता है,जिसमें पुस्तक से संबंधित हर जानकारी जैसे प्रकाशक, विक्रेता, अधिकतम विक्रय मूल्य की जानकारी दर्ज होती है। आईएसबीएन नंबर होने से पुस्तक का अधिकतम विक्रय मूल्य फिक्स हो जाता है। ऐसे में इसमें कमीशनखोरी की गुंजाइश नहीं रहती। इससे बचने के लिए स्कूलों में चल रही अधिकांश पुस्तकें बिना या गलत आईएसबीएन नंबर के फर्जी चल रही हैं।जांच में सामने आया है कि जबलपुर के 11 स्कूलों में 1907 किताबें चल रही हैं। इनमें से अधिकांश फर्जी हैं। ये आंकड़ा डरावना है। एक स्कूल में नर्सरी से 12वीं तक के एक स्कूल में डेढ दर्जन कक्षाओं में फर्जीवाड़े की यह कहानी रोने पर मजबूर करने वाली भयावह तस्वीर पेश करती है।

जबलपुर कलेक्टर की जांच में सामने आया कि बच्चों के कंधो पर ये बोझ कमीशनखोरी के चक्कर में जानबूझकर डाला जा रहा है। बच्चों का सुनहरा भविष्य दिखाकर पालकों को अतिरिक्त पुस्तकों को खरीदने के लिए तैयार किया जाता है। नतीजा बच्चों पर पढ़ाई के साथ-साथ पुस्तकों का बोझ भी बढ़ रहा है। जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने मामले का खुलासा करते हुए समझाया कि किस तरह से एक सिंडिकेट की तरह ये लोग काम करते हैं। शैक्षणिक सत्र शुरु होने से पहले निजी स्कूल नये सत्र के लिए 25 मार्च को पुस्तकों को सार्वजनिक करते हैं। जबकि इसका आर्डर दिसंबर में ही प्रकाशक को चला जाता है। इसका मतलब ये मोनोपॉली चार महीने पहले से शुरु हो जाती है और सिर्फ दिखावे के लिए नया सत्र शुरु होने से पहले पुस्तकों को सार्वजनिक करने की रस्म अदायगी की जाती है।

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बच्चे और पालक स्कूल की पुरानी किताबों को एक्सचेंज न कर लें इसलिए प्राइवेट स्कूल हर साल ही किताबें बदल देते हैं। हालांकि इसके पीछे कहीं कोई कारण नहीं होता। स्कूल संचालकों के पास किताबें बदलने या नहीं बदलने के पीछे कोई कारण ही नहीं है और न ही कोई एक्सपर्ट्स कमेटी जिसकी सलाह पर हर साल किताबें बदली जा रही हैं। यह पूरा खेल सिंडिकेट की तरह चल रहा है। स्कूल संचालक, प्रकाशक और किताब विक्रेताओं से कमीशन के लिए एमओयू तक साइन कर रहे हैं। जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने अपनी जांच में पाया कि स्कूलों में चल रही 90 प्रतिशत किताबों का अधिकतम विक्रय मूल्य न ही तर्कसंगत है और न ही नियमों से मेल खाता है। किताबों का ये खेल कितना बड़ा है। इसे जानने जबलपुर के कुछ निजी प्रकाशकों से जिला प्रशासन ने प्रिंटिंग के रेट लिए। एक किताब को छपवाने का खर्चा 90 पैसे से लेकर 1.5 रुपये प्रति पेज तक जा सकता है। लेकिन बाजार में जो किताबें पालक खरीद रहे हैं वह 100 फीसदी मार्जिन तक है। मतलब यदि किसी किताब का प्रिंटिंग का खर्चा मात्र 100 रुपये है तो पेरेंट्स को वह मार्केट में 200 या उससे भी अधिक दामों पर मिल रही है। पालक अगर दस या पंद्रह फीसदी डिसकाउंट मिल जाए तो उसमें ही मन को तसल्ली दे लेते हैं।

बच्चों का कैरियर बनाने के नाम पर पालकों की कमाई पर डाका डालकर करोड़पति बनते स्कूल संचालकों और किताब विक्रेताओं का यह घिनौना खेल सबके सामने है। संस्कारधानी से ‘दीपक’ ने ‘रोशनी’ कर इस अंधेरे को चीरने का सफल प्रयास किया है। अब बारी सभी जिलों के कलेक्टर की है कि हर जिले में ऐसे किताब विक्रेता, प्रकाशक और स्कूल संचालक नेक्सेस का खात्मा हो और पालकों को लूट और फर्जीवाड़े से मुक्ति मिले। जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना प्रेरणा बनकर सामने हैं। अब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश के सभी जिलों को किताब माफियाओं, प्रकाशक और स्कूल संचालकों की मिलीभगत से मुक्ति दिलाकर पूरे देश में मिसाल पेश कर सकते हैं

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