Manipur Violence-Viral Video: देश तभी जागता है जब कोई वीडियो वायरल होता है ?
स्वाति तिवारी की कुछ सवाल करती रिपोर्ट :सवाल आज भी जिन्दा
आज सुबह आँख खुलते ही एक पोस्ट फेसबुक पर देखी। जयपुर में भूकंप- और उठ कर बैठ गयी। हे भगवान अच्छा हुआ तूने ये फेसबुक, ट्वीटर, वाट्सअप जैसे प्लेटफोर्म बना दिए नहीं तो भूकंप आने पर हिलती धरती देख कर भी मैं शायद नहीं जागती .
अब सोशल मीडिया से ही लोग जागते हैं ,सरकारें जागती है,प्रशासन और मीडिया जागता है . जब तक वीडियो वायरल ना हो सरकारें घडियाली आंसू भी नहीं बहाती ? किसी भी शोषण के विरुद्ध पहले वीडियो बनाना बेहद जरुरी हो गया है .उसके बिना दिल्ली से दोलताबाद तक और सीधी से मणिपुर तक सरकारें , पुलिस ,प्रशासन ,और मीडिया के कैमरे,सब जागना तो दूर हिलते भी नहीं है .देश तभी जागता है जब कोई वीडियो वायरल होता है ?उसके पहले सपने में भी कोई नहीं बताता कि देश में क्या क्या हो रहा है?
देश में एक के बाद एक जिस तरह एक आदमी द्वारा ही दूसरे आदमी पर क्रूरता, निर्दयता और मानवीय गरिमा को रौंदने की घटनाएं हो रही हैं, वे सब दुनिया तो छोडिये, सामने खड़े पुलिस वालों को भी नहीं दिखती और प्रशासन को भी नहीं ? भला हो इस सोशल मीडिया का,इस पर ही वायरल होने पर बड़ा गोदी मीडिया भी फिर भागते हुए घटना पर चिल्ला चिल्ला कर बोलने लगता है .तो मेरे कहने का अर्थ यह है कि “वायरल” होने का इंतज़ार वे भी कर रहे थे जिन्हें अब गुस्सा आ रहा है और देश भी कर रहा था जो अब शर्मिंदा हो रहा है .वायरल ना होते तो शर्मनाक और मानव सभ्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाते ये घटना क्रम सरकार और मीडिया को पता चलते?
समझाती हूँ दो उदाहरण देकर- पहली घटना सीधी की अगर वीडियो वायरल नहीं होता तो तीन साल तक सीधी में सब सो रहे थे. सीधी क्या पूरे प्रदेश में ही आदिवासी रो रहे थे पर कोई जागा था क्या? जाने कितने दशमत इस देश में मूत स्नान कर रहे होगें . और दूसरी घटना मणिपुर की तरह हर गली में नंगे नाच हजारों की भीड़ में होने के बावजूद गुमनाम किस्से ही रह जाते. 48 दिन बाद FIR, 77 दिन बाद गिरफ्तारी; महिलाओं से बर्बरता, बचाने आए भाई को मार डालायह सब वायरल के बाद उजागर हुआ और क्रियान्वित भी .
मई की शुरुआत में राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाया गया था. इन महिलाओं को भीड़ पुलिस सुरक्षा से खींचकर ले गई थी. कल वायरल हुए इस घटना के वीडियो को लेकर आक्रोश और दहशत का माहौल है .सोचिये मणिपुर जैसे अति संवेदनशील राज्य में सेकड़ों की भीड़ में दो स्त्रियाँ निर्वस्त्र सड़क पर जिस बेशर्मी से प्रदर्शित की गयी और उनकी परेड निकाली गयी , इन घटनाओं का किसी को कानो कान पता भी नहीं चलता। सरकार को भी कौन बताये ? खूफिया तंत्र कहाँ इतना सक्षम है हमारा, कि सड़क पर होते चीर हरण को देख कर दिल्ली को बता सके ?इस हैवानियत का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो सरकार से लेकर आम लोगों तक सभी के होश उड़ गए। किसी को अपने आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। मानवता शर्मसार हो रही थी। हालांकि, ये घटना चार मई को हुई, जबकि इसकी एफआईआर करीब डेढ़ महीने बाद 21 जून को दर्ज हुई। वहीं गुरुवार सुबह मामले में पहला आरोपी गिरफ्तार हुआ है। क्यों क्या यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए ?
देश भर में आक्रोश के बीच मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने गुरुवार शाम को कहा कि मणिपुर में दो महिलाओं को नग्न कर घुमाने के भयावह मामले में एक और व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है. वहीं, राज्य पुलिस ने बताया कि दो अन्य को भी गिरफ्तार किया गया है, जिससे कुल गिरफ्तारियों की संख्या चार हो गई है. राज्य पुलिस ने कहा कि कथित अपराधियों में से एक को गुरुवार सुबह गिरफ्तार कर लिया गया.तो वीडियो आने के बाद ही हुआ ना सब ताबड़तोब.अगर कोई नामुराद वायरल नहीं करता तो इसकी जरूरत कहाँ थी ? उनका क्या वे तो ओरतें है उन्हें तो सब झेलना ही होता है!
अगर इनके वीडियो वायरल नहीं होते तो सब ठीक चल ही रहा है देश में ? हमने कुछ देखा ही नहीं, की तर्ज पर बड़े बड़े मीडिया हाउस चलाने वाले,गली गली में बैठे पत्रकार, जागरूक नेता,प्रशासन और सरकारें सबके सब सोये ही रहते हैं!
मणिपुर का पैशाचिक वीडियो अगर सोशल मीडिया पर वायरल ना होता तो सच सामने कैसे आता ? अब सरकारों के गुण गाने वाले, चुनाव के लिए इमेज चमकाने वाले ये कठपुतलियाँ संसाधन बेचारे चुप ही थे. पोल तो सोशल मीडिया ने खोली .उन्हें भी खबर सोशल मीडिया से ही लगी , क्योंकि वे सब ढाई महीने तक मणिपुर की तरफ देख ही नहीं पा रहे थे। उन्हें राजनैतिक पार्टियों की नौटंकी दिखाने से फुर्सत मिले तब ना!
अब देखिये सीधी के प्रशासन की ही बात करते हैं। जैसे हो वीडियो वायरल हुआ, आरोपी के घर में अतिक्रमण निकल आया। रातोंरात उसके घर का बाहरी हिस्सा सरकार की फ़ाइल पर अवैध निकल आया ? भवन तोड़ने सरकारी जमीन बचाने के लिए, तीन साल पुराना एक वीडियो वायरल होना कितना जरुरी था ? जब भवन बना होगा पुलिस, प्रशासन, रहवासी, किसी को नहीं पता कि यहाँ निर्माण हुआ है क्योंकि तब तक वहां पावर रहता था , रहनेवाला दमदार था पर भला हो उस मूत्रपात वीडियो वायरल का, जिसने सुदामा के पैर कृष्ण से धुलवाकर रातों रात एक दशमत को सेलिब्रिटी में बदल दिया ? तो सोचिये इन वीडियो का सोशल मिडिया पर वायरल होना देश की अति आवश्यक खुफिया व्यवस्था से ज्यादा बड़ा तंत्र हुआ की नहीं ?
दूसरा वायरल मणिपुर का ? मई माह की घटना चुपचाप घटित हो गयी ?सेकड़ों गूंगे बहरे नपुंसको की भीड़ में ? भेडचाल में वे सब चल रहे थे अपनी आत्मा और दिमाग को गिरवी रख कर. दो औरतों के साथ चलने वाले लोगों का क्या? उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ा की वे स्त्रियाँ भी उनके देश प्रदेश की स्वाभिमानी नागरिक हैं। उनके लिए वे बदला लेने का एक सबसे घिनौना तरीका है। याद करिए यह कृत्य सालों पहले मध्यप्रदेश में फूलन देवी के साथ भी हुआ था। लोगों को तो तब पता चला था जब शेखर कपूर ने एक गंभीर फिल्म में यह वाहियात सीन को फिल्माया और वायरल किया ?
मणिपुर हो या सीधी हम सब सोशल मीडिया पर ही निर्भर हो गए है और तभी जागते है जब वायरल होता है। अगर सरकारों को जगाना है या आत्मस्तुति से बाहर लाना है तो वीडियो के बम फोड़ने पर ही विपक्ष के कानों में आवाज और सरकारों के बुलडोजरों में पहिये लग सकते है .
हम अपने कानों में रुई ,आँखों पर पट्टी बाँध सदियों से बैठे है.जुबान पर भी ताले ही लगे हैं .
एक सवाल मणिपुर के बहाने सरकार से पूछा जाय जब FIR हुई थी तो महकमें ने सूचना नहीं दी थी क्या ?आला अफसर तब क्या मणिपुर से बाहर किसी बाग़ बगीचे में पिकनिक पर निकल गए थे क्या ? और गुस्से से जो अब लाल पीले हो रहे महंगे टमाटर जैसे मंत्री संतरी दिल्ली में कोई मीटिंग सिटींग कर रहे थे क्या ? और वे कैमरामेन जो सीमा – सचिन के घर के बाहर डेरा डाल कर बैठे हैं, वे मणिपुर से अनजान थे क्या ? और वह वर्दी वाले जिनके हाथों में सिर्फ लम्बी बंदूक ही मणिपुर की तस्वीरों में दिखाई जाती है, वे इस तमाशे को कार में बैठ कर जब देख रहे थे तो उसका वीडियो भी तो वायरल होना चाहिए ना? और वे लोग, जो भाषण देते हुए नहीं थकते, उनसे पूछा जाना चाहिए कि बुलडोजर घरो पर ही क्यों, कुर्सियों पर क्यों नहीं चलते ? मानव बम की तर्ज पर नया नामकरण कर देते है इनका “वीडियोबम’.
क्या अब भी सरकारें करवटें बदलती रहेंगी ? उठिए जागिये जनाब, दीमक जैसी व्यवस्थाओं को उखाड़ फेंकिये ना, जिन्हें आज भी स्त्रियाँ अपमानित करने का साधन दिखती है .ग्राम प्रधान द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के मुताबिक, चार मई को शाम लगभग तीन बजे 900-1000 की संख्या में कई संगठनों से जुड़े लोग बी. फीनोम गांव में जबरदस्ती घुस आए। इनके पास एके राइफल्स, एसएल.आर इंसास और 303 राइफल्स जैसे अत्याधुनिक हथियार थे। क्या सो रहे थे वे ?
सरकार बचानी है तो निकम्मे सरकारी तंत्र को बदलिए, वह ढाई महीने से चुप क्यों था ? किसके कहने पर था ? किसके इशारे पर सोया रहा प्रशासन? कुछ घर इनके भी तोडिये . अपराध तो हर हाल में अपराध है। उसके लिए सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान के बाद जागना और फिर गुस्सा दिखाने का नाटक सब समझ रहे है ,अब बहुत हो गया ?
तीसरी घटना इंदौर तिलक नगर थाने की भी याद कीजिये . लाडली बहनों के प्रदेश में एक ब्राहमण बहन पुलिस द्वारा बेल्ट और डंडे से फ्रैक्चर होने तक थाने के अन्दर पीट रही थी ,बाहर बहनों के स्वाभिमान की रक्षा के बड़े बड़े विज्ञापन घर घर में देखे जा रहे थे .
सोशल मीडिया को भी नियंत्रित करिए साहब! —से लेकर बंद कमरों में और सड़क पर निर्वस्त्र प्रभात फेरी में अपमानित होती स्त्री के मानवीय सम्मान की रक्षा वीडियो वायरल होने के बाद करने के बजाय उन दरिंदों को सजा दीजिये.ये दो या अभी अभी मिली खबर वाली पांच स्त्रियों की देह नहीं भारत माता का चीरहरण है अपने ही पुत्रों द्वारा। देश चुनावी महाभारत में व्यस्त है यहाँ बहन-बेटियाँ भी अब चुनावी मुद्दे बन रही है उनके नकली आत्मसम्मान के बजाय उनके असली स्वाभिमान की रक्षा ना भी करें तो जीने के अधिकार तो बचाए रखिये .