Moitra Expelled: कैश फॉर क्वेरी TMC सांसद महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता रद्द!
New Delhi : ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता कैश फॉर क्वेरी मामले में रद्द कर दी गई। इस संबंध में लोकसभा से प्रस्ताव पारित हुआ। संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव रखा, जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दी। इस कार्यवाही का विरोध कर रहे सांसदों ने सदन में जमकर हंगामा किया। महुआ मोइत्रा के समर्थन में तमाम विपक्षी सांसद संसद भवन के बाहर आए, इसमें सोनिया गांधी भी शामिल थीं।
लोकसभा की एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट पर आधे घंटे से अधिक चर्चा हुई। इस दौरान स्पीकर ओम बिरला ने मोइत्रा को बोलने का मौका नहीं दिया। उन्होंने कहा कि मोइत्रा कमेटी के सामने अपनी बात रख चुकी हैं। वहीं विपक्षी सांसदों ने मोइत्रा को बोलने देने की मांग की। संसद सदस्यता रद्द होने पर मोइत्रा ने कहा कि मैंने अडानी का मुद्दा उठाया था जिस वजह से मुझे संसद की सदस्यता से बर्खास्त किया गया। एथिक्स कमिटी के सामने मेरे खिलाफ कोई भी मुद्दा नहीं था, कोई सबूत नहीं थे। बस उनके पास केवल एक ही मुद्दा था कि मैंने अडाणी का मुद्दा उठाया था।
बीजेपी सांसद विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता वाली आचार समिति ने 9 नवंबर को बैठक में मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सदन में सवाल पूछने’ के आरोपों में लोकसभा से निष्कासित करने की सिफारिश वाली रिपोर्ट को स्वीकार किया था। समिति के 6 सदस्यों ने रिपोर्ट के पक्ष में मतदान किया, इनमें कांग्रेस से निलंबित सांसद परणीत कौर भी शामिल थीं। समिति के चार विपक्षी सदस्यों ने रिपोर्ट पर असहमति नोट दिए थे।
टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी ने लोकसभा में चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि यह नियमों और संविधान के खिलाफ हुआ। महुआ मोइत्रा को बोलने का मौका दिया जाना चाहिए। वहीं बीजेपी के सांसदों ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्लंघन हुआ है। बीजेपी की सांसद अपराजिता सारंगी ने लोकसभा में चर्चा के दौरान कहा कि विपक्ष से सवाल है कि महुआ मोइत्रा ने जो किया वो सही था या गलत। तीन बैठकें हुई और इसमें महुआ मोइत्रा को समय दिया गया। मीटिंग के दौरान मोइत्रा ने बदतमीजी की।
कांग्रेस ने महुआ मोइत्रा के खिलाफ आचार समिति की रिपोर्ट पर शुक्रवार को लोकसभा में ‘आनन-फानन’ में चर्चा कराने का आरोप लगाया। पार्टी ने कहा कि यह ‘प्राकृतिक न्याय’ के सिद्धांत का उल्लंघन है। यदि सदस्यों को रिपोर्ट पढ़ने के लिए तीन-चार दिन दे दिए गए होते तो आसमान नहीं टूट पड़ता। कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने कहा कि वकालत पेशे में 31 साल के करियर में उन्होंने जल्दबाजी में बहस जरूर की होगी, लेकिन सदन में जितनी जल्दबाजी में उन्हें चर्चा में हिस्सा लेना पड़ रहा है, वैसा कभी उन्होंने नहीं देखा।