‘वक्त है बदलाव का’ के रास्ते पर मप्र कांग्रेस….
अगले साल प्रस्तावित विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर मध्यप्रदेश कांग्रेस ‘वक्त है बदलाव का’ के रास्ते पर है। कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव हो रहे हैं, कार्यशैली के पुराने ढर्रे को भी छोड़ा जा रहा है। कमलनाथ ने साफ कर दिया था कि जिसे चुनाव लड़ना है, उसे संगठन छोड़कर मैदान में जाना होगा। इसके तहत पहले कुछ जिलाध्यक्षों के इस्तीफे हुए। इसके बाद कमलनाथ ने कोर ग्रुप से अपने खास सज्जन सिंह वर्मा, एनपी प्रजापति एवं बाला बच्चन जैसे नेताओं की छुट्टी कर दी। इनके स्थान पर चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी, महेंद्र जोशी एवं ओमकार सिंह मरकाम को जगह दी गई है।
एक और बड़ा बदलाव हुआ। मप्र को समय न देने वाले मुकुल वासनिक बदल दिए गए। उनके स्थान पर जय प्रकाश अग्रवाल को मप्र कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया है। कमलनाथ ने तय किया है कि इस बार पार्टी प्रत्याशी तीन माह पहले घोषित कर दिए जाएंगे और वचन पत्र 6 माह पहले ही आ जाएगा। ये असंभव दिखने वाली योजना है, फिर भी कमलनाथ धुन के पक्के हैं, वे कितना कर पाते हैं, यह आने वाले समय में पता चलेगा। फिलहाल कमलनाथ मैदान में भले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पीछे हों, लेकिन चुनावी तैयारी में उन्नीस नहीं हैं। भाजपा में भी इसकी चर्चा है।
‘उमा’ जैसा तो नहीं होगा ‘कैलाश’ का हश्र….!
तेज तर्रार भाजपा नेत्री रहीं साध्वी उमा भारती लंबे समय से राजनीति की मुख्य धारा से अलग-थलग हैं। बार-बार स्टेंड बदलने के कारण उनकी फायर ब्रांड नेता की छवि जाती रही और जनता के बीच उनकी साख भी। हाल ही में उन्होंने फिर अपना स्टेंड बदला। उन्होंने शराबबंदी को लेकर आंदोलन का एलान किया था, अब कह दिया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चर्चा के बाद वे संतुष्ट हैं। इसलिए अब कोई आंदोलन नहीं करेंगी। सबसे मजेदार उनका यह कथन है कि उन्होंने पूर्ण शराबबंदी की बात कभी कही ही नहीं।
कैलाश विजयवर्गीय भाजपा के दूसरे कद्दावर नेता हैं, जो उमा की तरह भाजपा में किनारे होते दिख रहे हैं। पहले भाजपा ने पश्चिम बंगाल में नया प्रभारी बना दिया था, अब जारी ताजा सूची में कैलाश को किसी प्रदेश का प्रभार नहीं दिया गया जबकि वे अमित शाह के नजदीक हैं और जेपी नड्डा के भी। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री तो वे हैं ही। अटकलें हैं कि कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर तो कैलाश को किनारे नहीं कया जा रहा! कैलाश के विधायक बेटे आकाश विजयवर्गीय के एक मामले को लेकर नरेंद्र मोदी बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने आकाश को पार्टी से बाहर करने तक का इशारा किया था। तो क्या मोदी अब तक कैलाश से नाराज हैं?
यह ‘आम तो आम गुठलियों के दाम’ वसूलना….
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘आम तो आम गुठलियों के दाम’ वसूलने में भी माहिर हैं। बस, कोई न कोई लाभ होना चाहिए। मसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ा हो, तब देरी की गुंजाइश ही नहीं। शिवराज की आदत है , प्रधानमंत्री मोदी किसी योजना का जिक्र भर कर दें, मध्य प्रदेश में सबसे पहले उसका क्रियान्वयन शुरू हो जाएगा। नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को मुख्यमंत्री कुछ इसी तरह भुनाने की तैयारी में हैं।
पहला, मोदी अपने जन्मदिन 17 सितंबर को मप्र के दौरे पर आ रहे हैं। दूसरा, इसी दिन अफ्रीकी चीतों को लाने की तिथि निर्धारित है अर्थात मोदी ही इन अफ्रीकी चीतों को कूनो अभ्यारण में प्रवेश कराएंगे। तीसरा, मुख्यमंत्री के आग्रह पर प्रधानमंत्री मोदी ने महिला स्व सहायता समूह के एक और कार्यक्रम में शामिल होने की अनुमित दे दी है और चौथा यानि अंतिम शिवराज ने अपने बुद्धि कौशल का परिचय देते हुए प्रदेश में प्रधानमंत्री जन पखवाड़ा मनाना प्रारंभ कर दिया। इसके लिए मंत्रियों को समूहों में बांट कर जिलों का प्रभारी बना दिया। इसके तहत सरकारी अमला 17 सितंबर तक लोगों के घर-घर जाकर और सरकारी योजनाओं पर अमल का फीडबैक ले रहा है। जैसे, लोगों के घर कुंडी खटखटा कर पूछा जा रहा है कि आपका आयुष्मान कार्ड बना या नहीं। है न एक्सिलेंट आइडिया।
जातिवादी राजनीति और गोपाल की खरी-खरी….
राजनीति में फलते-फूलते जातिवाद पर दो दिग्गजों की ताजा टिप्पणियां गौर करने लायक हैं। पहली भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती की है। उन्होंने दो बातें कहीं। एक, सरकार में जातीय और क्षेत्रीय संतुलन नहीं है। इससे समस्या पैदा होती है। दूसरा, उन्होंने प्रीतम लोधी और धीरेंद्र शास्त्री के बीच विवाद पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि लोधी और ब्राह्मण समाज आमने-सामने हैं। पिछड़ा वर्ग लामबंद हो रहा है। इसे रोकना चाहिए। दोनों टिप्पणियां जातिवाद को बढ़ावा देती दिखती हैं। दूसरी तरफ सरकार के कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव की टिप्पणी है कि जातिवादी राजनीति समाज और देश के लिए घातक है।
जाति के आधार पर कोई निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए। भार्गव खुद जाति की राजनीति नहीं करते। वे जिस क्षेत्र से 8 बार विधानसभा का चुनाव जीते हैं, वहां मात्र 5 फीसदी ब्राह्मण हैं। भार्गव भविष्यवाणियां भी करते रहते हैं। जैसे, कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्होंने कहा था कि जब तक कांग्रेसी मंत्री बंगलों की सफाई-पुताई कराएंगे और वे तैयार हो जाएंगे तो रहने हम पहुंच जाएंगे। हुआ भी यही, डेढ़ साल के अंदर कांग्रेस सरकार गिर गई। सवाल यह है कि भार्गव की जातिवाद को लेकर खरी बात पर कितना ध्यान दिया जाएगा और भविष्य मापने के उनके पैरामीटर को परखा भी जाएगा या नहीं?
इंदौर को अहमियत या बन रहा पावर सेंटर….
मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। वजह हैं दिग्गज नेताओं की मेल -मुलाकातें। पहले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने बेटे के साथ कैलाश विजयवर्गीय के घर जाकर मुलाकात की, भोजन भी किया। कैलाश-सिंधिया की जुगलबंदी की चर्चा परवान चढ़ रही थी। इसी बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सुमित्रा महाजन की अलग अंदाज में मुलाकात हो गई। मुख्यमंत्री ने ताई को लेने के लिए अपना हेलीकाप्टर इंदौर भेजा। जितनी देर कैलाश-सिंधिया की एकांत चर्चा हुई थी, लगभग उतनी ही देर शिवराज-ताई की मुलाकात हुई। लाने के लिए हेलीकाप्टर भेजने से अलग तरह की चचार्ओं ने जोर पकड़ा। इस बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की भी ताई और भाई से मुलाकात हो चुकी है। सवाल यह है कि इंदौर को अहमियत दी जा रही है या यह शहर वास्तव में पॉवर सेंटर बन रहा है। यह ठीक है कि ताई अर्थात सुमित्रा महाजन लोकसभा अध्यक्ष रही हैं और भाई कैलाश भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। बावजूद इसके लगभग 18 साल से प्रदेश की सत्ता में काबिज भाजपा सरकार के मंत्रिमंडल में इंदौर को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला। ताई-भाई के बीच प्रतिद्वंद्विता का इस अंचल को नुकसान उठाना पड़ा।