
MP बनेगा ‘चीता स्टेट’: कुनो, गांधीसागर के बाद नौरादेही में आयेंगे चीते
नीलिमा तिवारी
मध्य प्रदेश एक बार फिर वन्यजीव संरक्षण और पर्यटन के क्षेत्र में देश को नई दिशा देने की ओर अग्रसर है। बाघों की धरती के रूप में पहचान बना चुके प्रदेश को अब एक और गौरवशाली उपनाम मिलने जा रहा है — ‘चीता स्टेट’। इसकी बुनियाद रखी गई है श्योपुर जिले में स्थित कुनो नेशनल पार्क, जहाँ विलुप्त हो चुके चीतों को फिर से भारतीय धरती पर बसाने का ऐतिहासिक प्रयास सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 17 सितंबर 2022 को कुनो में चीतों को खुले जंगल में छोड़े जाने के साथ ही भारत में वन्यजीव संरक्षण का एक नया अध्याय शुरू हुआ। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में इस परियोजना को गति मिली और कुनो आज सिर्फ एक नेशनल पार्क नहीं, बल्कि संरक्षण, पर्यटन और विकास का जीवंत उदाहरण बन चुका है।
प्रोजेक्ट चीता, भारत में चीतों की ऐतिहासिक वापसी—
चीता भारत का एक समय का स्वदेशी वन्यजीव था, लेकिन अत्यधिक शिकार, घटते जंगल और मानव हस्तक्षेप के कारण 1952 में इसे भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया। करीब 70 साल बाद केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत कर इतिहास को बदलने का साहसिक कदम उठाया।
इस परियोजना के तहत सबसे पहले नामीबिया से 8 चीते भारत लाए गए। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कुनो नेशनल पार्क में बसाए गए। सभी चीतों को वैज्ञानिक निगरानी, रेडियो कॉलर और विशेष देखरेख के साथ जंगल में छोड़ा गया।
लगातार बढ़ रहा कुनो का चीता कुनबा–
आज कुनो नेशनल पार्क में चीतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह इस परियोजना की सबसे बड़ी सफलता मानी जा रही है।
कुनो में भारत में जन्मे चीतों ने इस प्रयास को ऐतिहासिक बना दिया है। मादा चीता मुखी द्वारा शावकों को जन्म देना इस बात का प्रमाण है कि कुनो का पर्यावरण चीतों के लिए अनुकूल बन चुका है।
चीतों के परिवारों को अलग-अलग नाम दिए गए हैं, जिनसे उनकी पहचान और निगरानी आसान हो सके।
इन चीतों की कहानियाँ संघर्ष, अनुकूलन और जीवटता से भरी हैं। कुछ चीतों की मौत भी हुई, जो प्राकृतिक चयन और जंगल के कठोर नियमों की याद दिलाती है, लेकिन कुल मिलाकर कुनो में चीता आबादी का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा है।
कुनो नेशनल पार्क: प्रकृति का जीवंत संसार—
श्योपुर जिले में स्थित कुनो नेशनल पार्क विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं के बीच फैला हुआ है। यह पार्क कुनो नदी के नाम पर जाना जाता है, जो पूरे क्षेत्र की जीवनरेखा है।
यहाँ चीते के अलावा भी समृद्ध जैव विविधता देखने को मिलती है—
तेंदुआ,
भालू,
सांभर,
नीलगाय,
चिंकारा,
जंगली सूअर,
सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी,
हरी-भरी घाटियाँ, साल और खैर के जंगल, खुला घास मैदान और बहती नदियाँ कुनो को एक परिपूर्ण वन्यजीव आवास बनाती हैं।
कुनो में शुरू हुई जंगल सफारी——
चीतों की बढ़ती संख्या और सुरक्षा व्यवस्था के सुदृढ़ होने के बाद कुनो में जंगल सफारी की शुरुआत की गई है।
पर्यटक अब तय मार्गों पर गाइड के साथ जीप सफारी के जरिए कुनो के जंगलों को नजदीक से देख सकते हैं।
सफारी के दौरान पर्यटकों को चीतों के अलावा अन्य वन्यजीवों और प्राकृतिक दृश्यों को देखने का अवसर मिलता है। यह सफारी पूरी तरह से पर्यावरण-अनुकूल और नियंत्रित है, जिससे वन्यजीवों को कोई नुकसान न पहुँचे।
पर्यटन का विस्तार: इवोक ने बनाई टेंट सिटी—-
कुनो में बढ़ते पर्यटन को देखते हुए निजी और सरकारी स्तर पर सुविधाओं का तेजी से विकास किया गया है।
प्रसिद्ध पर्यटन कंपनी इवोक एक्सपीरियंसेज़ द्वारा यहाँ लक्ज़री टेंट सिटी विकसित की गई है, जिसे कुनो फॉरेस्ट रिट्रीट के नाम से जाना जाता है।
यह टेंट सिटी आधुनिक सुविधाओं से युक्त है, लेकिन प्रकृति से सामंजस्य बनाए रखते हुए बनाई गई है। यहाँ पर्यटकों को—
आरामदायक टेंट, स्थानीय भोजन, जंगल वॉक,बर्ड वॉचिंग,स्टार गेज़िंग, सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे अनुभव मिलते हैं।
पर्यटन निगम बना रहा जंगल रिज़ॉर्ट—-
मध्य प्रदेश पर्यटन निगम भी कुनो क्षेत्र में आधुनिक जंगल रिज़ॉर्ट विकसित कर रहा है। यहां तेईस करोड़ से अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण जंगल रिसॉर्ट बनाया जा रहा है। इसमें दो दर्जन कमरे, हाल,पूल, पाथ वे, डायनिंग हाल, प्रतीक्षा कक्ष और अन्य सुविधाएं विकसित की जा रही है। इसका उद्देश्य है कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को विश्व-स्तरीय सुविधाएँ मिलें और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हों।
इन परियोजनाओं से कुनो अब सिर्फ एक वन क्षेत्र नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर उभरता हुआ गंतव्य बन रहा है।
देव खो, कुनो नदी और अन्य रमणीय स्थल—-
कुनो के आसपास कई प्राकृतिक और धार्मिक स्थल हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं—
*देव खो—-*
घाटियों और चट्टानों के बीच स्थित यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य और शांति के लिए प्रसिद्ध है। यहां पहाड़ों के बीच निरंतर प्राकृतिक झरना बहता रहता हैं। इस झरने का पानी ऊंचाई से शिवलिंग पर गिरता हैं। यह दृश्य काफी मनोरम दिखता हैं।
*कुनो नदी–*
यह नदी न सिर्फ जंगल की जीवनरेखा है, बल्कि इसके किनारे बसे क्षेत्र प्राकृतिक पर्यटन के लिए आदर्श हैं।
*झरने और वन क्षेत्र–*
मानसून के दौरान कुनो के आसपास के झरने और हरियाली पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की विशेष भूमिका—-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुनो में चीतों को छोड़कर इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्व दिया।
वहीं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव लगातार कुनो परियोजना की समीक्षा कर रहे हैं और इसे मध्य प्रदेश की पहचान से जोड़ने पर जोर दे रहे हैं।
राज्य सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में मध्य प्रदेश को विश्व का प्रमुख चीता संरक्षण केंद्र बनाया जाए।
स्थानीय लोगों के लिए नई उम्मीद–
चीता परियोजना से कुनो और आसपास के गांवों में रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं।
स्थानीय युवक गाइड, ड्राइवर, होटल स्टाफ और ‘चीतामित्र’ के रूप में काम कर रहे हैं।
इससे न सिर्फ आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ी है।
पर्यटन और संरक्षण का संतुलन–
कुनो मॉडल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ पर्यटन और संरक्षण के बीच संतुलन बनाया गया है।
पर्यटकों की संख्या सीमित रखी जाती है, नियमों का सख्ती से पालन कराया जाता है और वन्यजीवों की सुरक्षा सर्वोपरि है।
भविष्य की दिशा: ‘चीता स्टेट’ मध्य प्रदेश—
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसी तरह संरक्षण, विज्ञान और पर्यटन को साथ लेकर चला गया, तो आने वाले समय में मध्य प्रदेश को ‘चीता स्टेट’ के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी।
कुनो सिर्फ चीतों का घर नहीं, बल्कि यह संदेश भी है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर विकास संभव है।
कुनो नेशनल पार्क आज मध्य प्रदेश की शान बन चुका है।
यहाँ दौड़ते चीते, हरियाली से भरे जंगल, विकसित होती पर्यटन सुविधाएँ और स्थानीय लोगों की भागीदारी — सब मिलकर एक नई कहानी लिख रहे हैं।
मध्य प्रदेश अब सिर्फ बाघों की धरती नहीं, बल्कि चीतों की नई पहचान — ‘चीता स्टेट’ की ओर मजबूती से बढ़ रहा है।
(गजानंद फीचर सर्विस)





