तौबा मेरी तौबा क्या दर्द है…

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तौबा मेरी तौबा क्या दर्द है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

एग्जिट पोल आने के बाद राजनैतिक दलों की धड़कनें तेज हैं। 3 दिसंबर क्या सामने लाने वाला है, यह अभी गर्भ में है। एग्जिट पोल पर कौन भरोसा कर रहा है और कौन नहीं, यह फिलहाल मायने नहीं रखता। अभी तो भारतीय जनता पार्टी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा फील गुड में हैं। पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी हार मानने वाले नहीं हैं। जब तक 3 दिसंबर अपना सही रंग-रूप सामने खुलकर नहीं रखती, तब तक हर राजनैतिक दल जीता है और हर राजनैतिक दल बैकफुट पर है।‌ और यही सही लोकतंत्र की ताकत है। पर अब आखिरी रात बाकी है। और यह आखिरी रात सभी के दिल पर भारी है। कल सुबह से ही जो फैसला आएगा, वह सभी को कबूल करना ही पड़ेगा। तब तक मन के जीते जीत के लिहाज से सभी जीते हैं। पर यह भी लोकतंत्र की ताकत ही है, जो तस्वीर सामने आएगी, वह बहुत ही खुबसूरत होगी। और वही मतदाताओं के मन की बात समझकर सबको स्वीकार करनी ही पड़ेगी।

तब तक हम ‘दिल’ फिल्म के इस गाने को एंजॉय कर लेते हैं। गाने के बोल हैं ‘मुझे नींद न आए, चैन न आए’। संगीतकार आनंद-मिलिंद हैं। गीतकार समीर हैं और गायक अनुराधा पौडवाल, उदित नारायन हैं। गाने के बोल हैं मुझे नींद न आए, मुझे चैन न आए कोई जाए ज़रा ढूँढ के लाए न जाने कहाँ दिल खो गया न जाने कहाँ दिल खो गया। तो यही हाल अब राजनैतिक दलों का है। दिल तो सभी का खोया है, नींद आए या न आए लेकिन चैन तो 3 दिसंबर के बाद ही आएगा। इस गीत के बोल हैं कि हालत क्या है कैसे तुझे बताऊँ मैं करवट बदल-बदल के रात बिताऊँ मैं। तो करवट तो एग्जिट पोल के पहले और बाद में भी बदलना मजबूरी है। और राजनीति रोग ही ऐसा है कि कोई समझ न पाए क्या रोग सताए कोई जाए ज़रा ढूँढ के लाए न जाने कहाँ …। जान से भी प्यारा मुझको मेरा दिल है उसके बिना एक पल भी जीना मुश्किल है।‌ सत्ता के बिना राजनैतिक दलों का यही हाल है। वास्तव में यह दर्द बड़ा बे-दर्द है। जो कभी हँसाता है, कभी रुलाता है।

और इसके बाद यदि इससे कनेक्ट कर रहा है तो रवींद्र जैन लिखित और उन्हीं के संगीतमय इस गीत की पहली दो पंक्तियां हैं। इसकी पहली दो पंक्तियां सभी पर लागू होती हैं। यह हैं –

यही रात अंतिम, यही रात भारी

बस एक रात की अब कहानी है सारी।

तो आज की रात अंतिम भी है और भारी भी है। यह बात और है कि यह अंतिम रात किस पर भारी पड़ रही है और कौन इसको सहजता से लेने को राजी है। 3 दिसंबर 2023 का दिन सब कुछ साफ कर देगा। कौन सरकार बनाएगा और कौन विपक्ष में बैठेगा, सब साफ हो जाएगा। पर जब तक सब साफ नहीं हो जाता, तब तक ‘तौबा मेरी तौबा क्या दर्द है’ का भाव तो सबको महसूस होगा ही…।