True Incident-जब दादी मां ने आसमान से धरती पर उतरकर पोते की रक्षा की!

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True Incident

True Incident- जब दादी मां ने आसमान से धरती पर उतरकर पोते की रक्षा की!

डॉ.स्वाति तिवारी

लोग रहस्यमय दुनिया के चित्र-विचित्र पहलुओं की चर्चा करते हैं। पचास प्रतिशत लोग तो और जिज्ञासु भी हो जाते हैं। शेष ऐसे विषय को अविश्वसनीय मान लेते हैं। लेकिन जो खुद के परिवार साथ घटित हुआ हो उसे आप अविश्वसनीय कैसे कह सकते हैं?

 True Incident- जब दादी मां ने आसमान से धरती पर उतरकर पोते की रक्षा की!
True Incident- जब दादी मां ने आसमान से धरती पर उतरकर पोते की रक्षा की!

मैं आज जिस घटना का जिक्र कर रही हूँ वह हमारे ही परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य से जुड़ी सच्ची घटना हैं। जहाँ तक मैं उन्हें जानती हूँ वे ना योग साधना करते है,ना कोई तंत्र विद्या जानते है, ना ही  तंत्र ‘सत्कर्म’- ‘योग’ और ‘ध्यान ‘ की ही तरह डायनामिक रिजल्ट देने वाली किसी  प्राच्य विद्याओं के अध्येता  हैं। जहाँ तक मुझे पता है ,वे एक कर्म पर विश्वास करने वाले एक आध्यात्मिक सद्गृहस्थ ही हैं और अपने काम को ही पूजा मानते हैं।

चमत्कार ,या किसी अंध विश्वास को ना भी माने कोई तो भी कई बार कुछ ऐसा होता है जो लौकिक नहीं अलौकिक कहा जा सकता है। अचंभित करती घटनाएं तो किसी के भी साथ हो ही सकती हैं ?

आज मैं रहस्य और रोमांच की इस श्रृंखला में एकदम अलग और सकारात्मक ऊर्जा का किस्सा बताने जा रही हूँ .यह सकारात्मक ऊर्जा हमारे पूर्वजों से भी आती हैं शायद इसलिए कहा जाता हैं कि पूर्वजों का आशीर्वाद लेना चाहिए।

हिंदू धर्म में पूर्वजों को देवताओं का दर्जा दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि अगर पूर्वज नाराज हो जाएं, तो घर परिवार की उन्नति रुक जाती है और हर काम में बाधा आने लगती है। लोग कहते है पितृ भी सताते हैं। उनकी आत्मा को अगर सताया या दुःख दिया तो वे हमेशा पितृ दोष के रूप में पीढ़ियों तक हमारा पीछा करते हैं। लेकिन हमारे परिवार का अनुभव पितृ दोष का तो याद नहीं लेकिन पितृ आशीष का जरुर है। कह सकते हैं कि जीवन संकट के समय पितृ आत्मा  का आसमान से धरती पर उतरकर अपने पोते की जीवन की रक्षा करने का रहा है।

पुराणों के अनुसार पितृपक्ष के समय तीन पीढ़ियों के पूर्वज स्वर्ग और पृथ्वी लोक के बीच पितृलोक में रहते हैं .कोई नहीं जानता इन सब रहस्यों के बारे में लेकिन ये सभी हमारे विश्वास को हमारे मनोबल को शक्ति जरुर प्रदान करते हैं।

भाई साहब दिनेश तिवारी True Incident- जब दादी मां ने आसमान से धरती पर उतरकर पोते की रक्षा की!
भाई साहब दिनेश तिवारी

तो आज  इसी रहस्य के किस्से पर बात करते हैं । हमारे तिवारी परिवार में तीसरे  क्रम वाले बड़े भाई साहब दिनेश तिवारी जी का एक अलग और रोमांचक  अनुभव बता रही हूँ . दिनेश तिवारी जी अपने समय के भौतिक शास्त्र के एमएससी प्रावीण्य सूची में स्थान प्राप्त विद्यार्थी रहे हैं और वे महाविद्यालय के अध्यापन कार्य को बीच में छोड़ कर बैंक अधिकारी बने. भाई साहब के जीवन का  एक अनुभव अपने पितृ दादी माँ के दर्शन का है .बैंक में काम करते हुए उन्हें एक लंबा अरसा हो गया था और उन दिनों वे यूनियन में किसी पद पर थे .यह बात है सन 1991 की है,जब वे उज्जैन में पदस्थ थे .सुखद पारिवारिक जीवन ,तीन बच्चे और प्रतिष्ठित संस्था में नौकरी . व्यक्ति को और क्या चाहिए ? लेकिन कभी कभी जीवन में लिखी घात सब पर भारी पड ही जाती .और आदरणीय दिनेश तिवारी जी पर भी यह घात थी।

वे उन दिनों यात्राएं कम ही करते थे ,लेकिन वह 13 जुलाई 1991 का दिन था और ना चाहते हुए भी वे उस दिन बैंक यूनियन के साथियों के साथ सुबह ही भोपाल गये थे। सारा दिन अपने मीटिंग और बैंक के काम करके ये सभी वापसी के लिए निकले थे। देर रात लगभग 12 बजे होंगे, भोपाल से इंदौर के रास्ते में , शायद वह स्थान जावरा फाटा था जो आष्टा के आसपास था। नींद आँखों को बोझिल कर रही थी और झपकी लगी ही थी कि अचानक जोरदार धमाके जैसा हुआ और कुछ समझ पाते उसके पहले  दुर्घटना घट गई थी। केवल यह समझ आया कि उनकी कार का तेज रफ़्तार ट्रक के साथ एक्सीडेंट हो चुका था और दर्द और पीड़ा ने यह समझा दिया था कि हाथ, पैर और शरीर की कई हड्डियां टूट चुकी है .उन्होने कार चला रहे अपने साथी को आवाज दी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला ,अन्य  साथी भी घायल थे.

True Incident- जब दादी मां ने आसमान से धरती पर उतरकर पोते की रक्षा की!

भाई साहब बताते हैं कि अवचेतना की उन  स्थितियों में मैं देख रहा था कि मेरे शरीर का शायद ही कोई भाग साबुत बचा होगा? जबड़े की ,पैर की, पता नहीं कितनी हड्डियाँ एक साथ टूट कर प्राण निकाल रही थी। दिमाग पर मूर्छा छाने लगी थी और मैं अचेतन अवस्था में चला गया था। इस अचेतन अवस्था में मैंने एक अलग ही दृश्य देखा। हमारे चारों और अन्धेरा था ,वहां केवल चांदनी का उजाला था. मैं  देख रहा था आसमान से धरती  पर आये यम के दूतों को, जिन्होंने पहले मेरे साथी के शरीर से आत्मा को निकाला और वो मेरी तरफ बढे। मेरी भी आत्मा उनके हाथ में थी और मैं भी जा रहा था उनके साथ, तभी एक आकाशीय उज्जवल रोशनी को आते देखा और देखते देखते वह रोशनी मेरे सामने अपने हाथ फैलाती मेरी पूज्य दादी मां में बदल गई .

वे मेरी दादी मां ही थी, जो यमदूत के सामने खड़ी थी। मेरी निश्चेत देह के सामने अपने हाथ लम्बे करते हुए मेरी सुरक्षा के कवच के रूप में एक लक्ष्मण रेखा बनाती हुई। मैं सुन रहा था वे उन दूतों से कह रही थी- इसे वापस रखो इसकी देह में ,ये यहाँ से नहीं जाएगा , इसकी आत्मा को नहीं ले जा सकते। मैं उस अचेतन अवस्था में भी जैसे जागा हुआ सा माँ साब को सुन रहा था और देख रहा था अपनी पितृ शक्ति को जो स्वर्ग लोक से उतर कर पृथ्वी तक की यात्रा कर मुझे बचाने के लिए, अड़ कर मेरी सुरक्षा कवच बन कर खड़ी थी।

कुछ देर के बाद मैं अपनी आत्मा को अपनी देह में फिर महसूस करने लगा .और वे सब जो कुछ देर पहले वहां थे ,वे जा  चुके थे.और माँ साब भी मेरे सर पर हाथ फेरते हुए फिर उसी मार्ग से जा चुकी थी .

भोर हो रही थी और पुलिस और ग्रामीण गाडी में दबे हुए हम सभी को बचाने के लिए हमें और हमारे हाथ पैर निकाल रहे थे जो फ्रैक्चर हो चुके थे .मैंने पूरी तरह बेहोश होने से पहले पुलिस को बताया था कि मैंने एक सोने की चेन ,घड़ी,और रिंग पहनी थी। यह बताने के बाद मैं बेहोश हो गया था। और जब तीन दिन बाद मुझे होश आया तो परिवार के सदस्यों ने बताया कि मैं बेहोशी में अपनी दादी माँ को याद कर रहा था ।मेरे साथ घटी इस बेहद भयावह दुर्घटना में मेरे साथी चले गए थे। मैं बच गया था।सालो साल मेरा इलाज चला .जाने कितने ऑपरेशन हुए। फ्रैक्चर , प्लास्टर, दांतों की सर्जरी से लेकर जाने कितने संकट झेल गया क्योंकि दादी माँ का,मेरे पूर्वजों का आशीर्वाद मिला मुझे था .परिवार उस वक्त मेरी ढाल बन गया था जो सतत मेरे साथ मेरे जीवन के लिए लड़ रहा था।

मैंने महिलाओं को वट -सावित्री का व्रत करते देखा था ,लेकिन सावित्री की तरह सत्यवान के प्राणों की रक्षा करती मेरी  पत्नी लक्ष्मी का उल्लेख जरुर करना चाहूँगा। अस्वस्थता के उस संकट काल में उनकी प्रेम ,समर्पण और सेवा भावना को मैं जीवन पर्यंत भूल नहीं सकता।

मेरे परिवार की सेवा और भाइयों का दिया हुआ रक्त मेरे शरीर में बह रहा था .नया जीवन मिला . माँ साहब का  आशीष और मुझे पितृ दर्शन हुए थे .इसलिए कह सकता हूँ कि पूर्वज उस लोक से भी हमें देख रहे होते हैं और हमारी रक्षा करते हैं।कहा जा सकता है कि पितृ आत्माएं जब परिवार से संतुष्ट होती हैं वे अपने आशीष हम पर बरसाती हैं .जब जब भी संकट आते हैं तब तब वे हमारी रक्षा करती हैं .यह आस्था और विश्वास का आधार भी है।

यह घटना घटी तो भाई साहब के साथ थी लेकिन हमारे पूरे परिवार के मनोबल को हमेशा बढ़ाती है. उस दिन सभी ने यह महसूस किया कि सयुंक्त परिवार की ताकत क्या होती है.हमारा तिवारी परिवार आठ भाई बहनों के परिवारों से मिल कर बना है जिसमें हम लगभग 85 सदस्य है. बाबूजी स्व.पंडित रामानंद तिवारी जी के कच्चे पाट वाले घर की दिवार पर लिखा था “बंधे रहोगे तो गठ्ठर जैसे मजबूत हो और बिखर गए तो कमजोर होती लकड़ी हो जाओगे”. बाबूजी के इस वाक्य को हमारे बड़े भाई साहब परिवार के मुखिया श्री बी एल तिवारी जी ने परिवार का सूत्र वाक्य ही बना दिया और हर सुख -दुःख में वे सबसे पहले सबको लेकर खड़े होते हैं .

मैं मानती हूँ कि पितृ-पूर्वजों के आशीर्वाद ,और परिवार का साथ ही हर संकट से निकाल देता है.

संपर्क -श्री दिनेश तिवारी -9425317055,9425349751