ऐसा और इतना विरोध ? – Bullet Train या मृग मरीचिका
समाचार आया है कि अहमदाबाद मुंबई बुलेट ट्रेन(bullet-train) का निर्माण करने वाली एजेंसी नैशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड NHSRCL द्वारा मुंबई में प्रस्तावित बुलेट ट्रेन के भूमिगत टर्मिनस का टेंडर निरस्त कर दिया गया है।यह टर्मिनस बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में बनाया जाना है जो मुंबई का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र बनता जा रहा है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा इस टर्मिनस की भूमि उपलब्ध न करा पाने के कारण यह टेंडर निरस्त किया गया है।
भारत में बुलेट ट्रेन (bullet-train)की परिकल्पना मनमोहन सिंह की UPA सरकार के समय हुई थी। भारत और जापान के बीच में 2013 में इसका MOU किया गया था। सत्ता परिवर्तन के बाद मई 2014 में मोदी सरकार ने इस परियोजना को स्वीकृति दी। इसके बाद मोदी ने इस परियोजना का इतना ढिंढोरा पीटा कि बुलेट ट्रेन को उन्हीं के मस्तिष्क का शिगूफा मान लिया गया।
14 सितंबर 2017 को मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने इस परियोजना की आधारशिला रखी। प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप इस परियोजना का विरोध भी हुआ और इसे भारत जैसे पिछड़े और जर्जर रेल व्यवस्था वाले देश के लिए अनुपयुक्त माना गया। दुर्भाग्यवश इस परियोजना का विरोध राजनैतिक रूप से मोदी विरोध से भी जुड़ गया। इसे संभ्रांत लोगों का एक सपना बताया गया। कुछ विरोधी दलों को इससे मोदी का क़द बढ़ने और उनके महिमामंडित होने की आशंका होन लगी।
फिर भी इस परियोजना की कार्य- योजना बनती चली गई। भारत जैसी घनी आबादी वाले देश में जहाँ वन भूमि भी बहुत कम बची है, किसी भी बड़ी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण करना एक कठिन कार्य है। इस कठिन कार्य में यदि राजनीतिक मट्ठा मिला दिया जाए तो समस्या और विकराल हो जाती है। स्मरण करे पश्चिम बंगाल में सिंगूर और नंदीग्राम के भूमि अधिग्रहण का सफल विरोध कर सत्ता में आयी ममता बनर्जी अब समारोहपूर्वक उद्योगपतियों को ज़मीन दिखा कर आमंत्रित कर रही है।
प्रारंभ में भूमि अधिग्रहण का कार्य तेज़ी से आगे बढ़ा। विशेष रूप से गुजरात सरकार ने इसमें अधिक फुर्ती दिखाई। इस परियोजना के भविष्य पर तब ग्रहण लगा जब नवंबर 2019 के विधानसभा के चुनाव के बाद क्षण भंगुर फड़नवीस सरकार गिरने के बाद ऊधव ठाकरे की महाराष्ट्र विकास अगाड़ी की सरकार का गठन हुआ। इसके बाद महाराष्ट्र में भूमि अधिग्रहण का कार्य लगभग प्रत्येक रूट के खंडों में किसी न किसी कारण ( अर्थात् बहाने ) से बाधित होता रहा।इस परियोजना की मूल अवधारणा में बुलेट ट्रेन का पूरा 508 किलोमीटर मार्ग का निर्माण कार्य अक्टूबर 2023 तक पूरा हो जाना था।
भूमि अधिग्रहण में आयी कठिनाइयों के कारण इसके समापन का समय अक्टूबर 2028 तक बढ़ा दिया गया है। बांद्रा कुर्ला कॉम्पलेक्स की भूमि न मिलने के कारण टेंडर अनेक बार स्थगित किया गया और अब हार कर इसे निरस्त कर दिया गया है। अब परियोजना का समापन कब होगा यह कहना कठिन है।
ऊधव ठाकरे ने मोदी सरकार के विरुद्ध अपने व्यक्तिगत विद्वेष के कारण इस पूरी परियोजना को खटाई में डाल दिया है। इस परियोजना के सफल निर्माण का श्रेय निश्चित रूप से मोदी को मिलता परंतु केवल इस बुलेट ट्रेन के भरोसे वे महाराष्ट्र या देश में चुनाव जीत जाएंगे न ऐसा सोचना किसी के लिए भी ग़लत होगा।
आज यह समाचार पढ़कर मुझे अपनी 300 किलोमीटर प्रतिघंटे वाली बेजिंग- शंघाई, 200 किलोमीटर प्रति घंटे वाली मॉस्को- सैंट पीटर्सबर्ग और 200 किलोमीटर प्रति घंटे की ही गति वाली बार्सिलोना-मैड्रिड में बुलेट ट्रेन की यात्रा का इस्तेमाल हो गया। अपनी आयु के इस पड़ाव पर मुझे अब अहमदाबाद मुंबई बुलेट ट्रेन में बैठने का अवसर मिलने की संभावना कम ही है।
देश को आगे ले जाने वाली शक्ति को राजनीतिक कारणों से बाधा पहुँचाने से देश और पिछड़ता जाएगा। बुलेट ट्रेन जब तक भारत में आएगी तब तक यह टेक्नोलॉजी पुरानी पड़ चुकी होगी। बुलेट ट्रेन (bullet-train)कोई विलासिता की वस्तु नहीं है बल्कि यह भारत के विकास का इंजन सिद्ध हो सकती थी। प्रजातंत्र में हमें विरोध के कोई और निश्छल तरीक़ों की खोज करनी होगी।