नाग पंचमी: जानिए क्या है शुभ और अशुभ

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नाग पंचमी: जानिए क्या है शुभ और अशुभ

नाग पंचमी पर्व पर अनिल तंवर की खास रिपोर्ट

आज नाग पंचमी है और हिन्दू धर्म की मान्यता और विश्वास सभी जीव जंतुओं की रक्षा के लिए धार्मिक प्रतिबद्धता के सिद्धांतों का अनुसरण करता है. लोगों में जब तक धार्मिक सिद्धांतों के अनुपालन के लिए नियमों के अंतर्गत पूजा – अनुष्ठान का प्रावधान नहीं किया जाए तब तक आस्था की हिलोरें उठती नहीं है. हमारे प्राचीन वेद , पुराण और धार्मिक ग्रंथों ने इसे स्पष्ट किया है कि मानव को किस राह पर चलना चाहिए ताकि प्रकृति में भी संतुलन बना रहे.

भविष्य पुराण के अनुसार सर्प काटने से किसी की मौत हुई हो तो उनकी सद्गति नहीं होती. ऐसी आत्माओं को मोक्ष नहीं मिलता. ऐसे में नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने से सांप के डसने का भय नहीं रहता, साथ ही जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई है उन्हें मुक्ति मिलती है.

ब्रह्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सर्पों को नाग पंचमी के दिन पूजे जाने का वरदान दिया है. इस दिन अनंत, वासुकी, तक्षक, कारकोटक और पिंगल नाग की पूजा का विधान है. इनकी पूजा से राहु-केतु जनित दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है.

हिंदू धर्म में सर्पों को देवता माना जाता है. वैसे तो सर्प को कभी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए लेकिन खासकर नाग पंचमी के दिन सांपों को कष्ट न पहुंचाएं. ऐसा करने पर आने वाली सात जन्मों तक पीढ़ियों को दोष लगता है.

 

इस दिन किसी भी कार्य के लिए जमीन की खुदाई न करें. ऐसा करने सें मिट्टी या जमीन में सांपों के बिल या बांबी के टूटने का डर रहता है. कहते हैं सांपों को नुकसान पहुंचने पर वंश का नाश हो जाता है. संतान सुख नहीं मिलता.

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इस दिन जीवित सांप को दूध न पिलाएं. सांप के लिए दूध जहर के समान हो सकता है, इसलिए सिर्फ उनकी प्रतिमा पर ही दूध अर्पित करें.

नाग पंचमी पर नुकीली और धारदार वस्तुओं जैसे चाकू, सूई का इस्तेमाल करना अशुभ माना जाता है. इस दिन सिलाई, कढ़ाई नहीं की जाती.

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नाग पंचमी पर लोहे की कड़ाही और तवे में खाना न पकाएं. मान्यता के अनुसार रोटी बनाने के लिए जिस लोहे के तवे का इस्तेमाल किया जाता है उसे नाग का फन माना जाता है.

 

यही आधार है कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए जहाँ धार्मिक अनुष्ठान के निमित्त नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है वहीं 4 दिन बाद नवमी तिथि को नेवला नवमी भी मनाई जाती है.

अब हर गाँव , नगर और शहर में सर्पों, नागों को नहीं मारा जाता है बल्कि निपुण व्यक्ति को बुलाकर इन्हें पकड़वाकर रेस्क्यू किया जा रहा है. पहले जब भी किसी के घर सांप , नाग या अजगर निकलता था तब उसे मार दिया जाता था किन्तु अब प्राय: यह नहीं होता है. सम्बंधित परिवार सबसे पहले किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढते है जो इसे पकड़कर दूर जंगल में छोड़ सके. यह कार्य प्रकृति संतुलन के लिए जरूरी भी है. आदिवासी समुदाय में आज भी अजगर को देवता मानते है और वे इसे मारते नहीं है. पकड़कर दूर जंगल में छोड़ आते है किन्तु सांप प्रजाति के अन्य सभी जंतुओं को भय के कारण मार भी देते है तथा सर्पदंश पीड़ित व्यक्तियों के लिए झाड फूंक, बडवे (आदिवासी पुजारा) का सहारा लेते है जबकि इन्हें निकटतम चिकित्सा सुविधा लेना चाहिए .

नेपाल के पर्यावरणविदों ने विश्वभर में भय का पर्याय समझे जाने वाले सांपों को बचाने के लिए एक पहल करते हुए कहा कि पर्यावरण संतुलन को कायम रखने में सांपों की एक विशेष भूमिका है.

वरिष्ठ सर्प विज्ञानी करण बहादुर शाह ने कहा कि हाल के वर्षों में भय एवं अंधविश्वास के कारण सांपों के मारे जाने में तेजी आई है. इसके अलावा जनजातीय लोगों द्वारा भोजन एवं दवाओं के लिए सर्पों का इस्तेमाल सपेरों इत्यादि के अवैध तरीके से सांप पकड़ने के कारण भी इनकी संख्या में कमी आई है.

डॉ. शाह ने कहा कि सर्पों का पर्यावरण में संतुलन कायम करने में एक अहम योगदान है ही, साथ ही इनसे जुड़े आर्थिक, वैज्ञानिक एवं धार्मिक महत्वों के कारण भी इनकी रक्षा की जानी चाहिए . इसके अलावा एक कृषि प्रधान समाज में सांपों की और भी महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि वे फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहों का भी सफाया कर देते हैं .

डॉ. शाह और उनकी टीम ने शोध कार्य को अंजाम देने के बाद यह भी पाया कि लोग जहरीले और गैर जहरीले सांपों में अंतर नहीं कर पाते हैं। नेपाल के वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1973 के अनुसार पायथन अजगर की महज दो प्रजातियों एशियाटिक राक पायथन और बरमीज रोक पायथन को ही संरक्षण प्राप्त है। पर्यावरणविदों ने इस सूची में किंग कोबरा, रसेल्स वाइपर, मानोक्लेड कोबरा, एशियाटिक रैट स्नेक और रेड सेंड बोआ को भी शामिल किया जाना प्रस्तावित किया है।

 

आलीराजपुर में भी एक सर्प विशेषज्ञ नीलेश परमार है जिन्होंने हजारों सर्प यथा नाग , करैत वाइपर , अजगर , घोड़ा पछाड़ आदि विशालकाय जंतुओं को पकड़कर जंगल में छोड़ा है , अब वे सप्ताह में 5 दिन झाबुआ में रहते है तथा 2 दिन आलीराजपुर. उनके साथ रहकर यह कला शैलेन्द्र शेरा ने सीख ली है और वह भी बड़े बड़े कोबरा , वाइपर , अजगर आदि पकड़ने में निपुण हो गए. अब तक वह 400 से अधिक सर्प प्रजाति जंतुओं को पकड़कर जंगल में छोड़ चुके है. वैसे तो शैलेन्द्र शेरा पेशे से एक सिद्धहस्त फोटोग्राफर है किन्तु वह सर्प प्रजाति के रेस्क्यू में भी माहिर हो गए.