National Handloom Day 2023: मध्य प्रदेश की साड़ियां : विरासत और कला का अनूठा संगम है माहेश्‍वरी साड़ी

विदेशों में भी होती है डिमांड

2027

National Handloom Day 2023:मध्य प्रदेश की साड़ियां : विरासत और कला का अनूठा संगम है माहेश्‍वरी साड़ी

पवित्र नर्मदा नदी के तट पर, महेश्वर का शाही शहर स्थित है । महेश्वर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले का एक छोटा सा शहर है। लेकिन यहां की समृद्ध संस्कृति, इतिहास, पर्यटन और कला का आकार बहुत बड़ा है। प्राचीन काल से हथकरघा बुनाई का एक केंद्र, यह शहर प्रसिद्ध माहेश्वरी साड़ियों के लिए जाना जाता है।एक ऐतिहासिक किला जहां होल्कर वंश का शासन था, तीर्थयात्रा जहां पूरे वर्ष भीड़ रहती है और अंत में, माहेश्वरी कपड़े के पारंपरिक बुनकरों की बस्ती भी .महेश्वर 5वीं शताब्दी से हथकरघा बुनाई के केंद्र के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसे शक्तिशाली मराठा रानी रानी अहिल्याबाई होल्कर (1767-1795) के शासन के दौरान प्रसिद्धि मिली।

890321 karga 1629490724 1Maheshwar: Visit this perfect weekend getaway from Indore to live the city's oldest culture

ऐसा माना जाता है कि पहली माहेश्वरी साड़ी अहिल्या बाई द्वारा डिजाइन की गई थी। खुद एक डिजाइनर होने के नाते, 1760 में, रानी ने अपने साम्राज्य के लिए काम करने के लिए सूरत और मांडू के प्रतिभाशाली हथकरघा बुनकरों को आउटसोर्स किया। उन्हें पगड़ी का कपड़ा और विशेष नौ गज की नौवारी साड़ियाँ तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया था, जिन्हें मालवा दरबार की महिलाओं द्वारा पहना जाता था और शाही मेहमानों को उपहार देने के उद्देश्य से उपयोग किया जाता था। सूक्ष्म और गुणवत्ता में समृद्ध होने के लिए प्रसिद्ध, माहेश्वरी साड़ियाँ हमेशा गरिमा और लालित्य प्रदर्शित करती हैं!

महेश्वरी साड़ीMaheshwari Silk Saree: अब देशी रेशम से तैयार होंगी महेश्वर साड़ियां

को पवित्र नर्मदा नदी के किनारे स्थित महेश्वर शहर में पहली बार  बनाया गया इसलिए इस साड़ी का नाम महेश्वरी साड़ी पड़ा है | महेश्वरी साड़ी का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है |यह साड़ी अब मुख्यतः कपास और रेशम में बुनी जाती है |  महेश्वरी साड़ी की खासियत उसका उल्टा किनारा है ,जिसे  “बुग्गी “भी कहा जाता है | सूत  के लिए बुनकर केवल प्राकृतिक रंगो का ही प्रयोग करते है | इस साड़ी को  डिज़ाइन के अनुसार तैयार करने में 3 से 10 दिन का समय लगता है | इसके पल्लू को बनाने में अधिक समय लगता है |  कहा जाता है ,रानी अहिल्या बाई होल्कर ने शिल्पकारों को नौ गज की विशेष साड़ी डिज़ाइन करने कहा जिसे उनके रिश्तेदारों और महल  में आने वाले मेहमानो को उपहार  में दिया जा सके इस तरह महेश्वरी साड़ी अस्तित्व में आयी |पहले ये  साड़ी केवल सूती ही बनाई जाती थी लेकिन धीरे -धीरे इसमें और अधिक सुधार आया तथा ये उच्च गुणवत्ता वाली रेशमी साड़ियों में भी मिलने लगी है | परन्तु वक्त साथ इस साड़ी की डिमांड या उत्पादन में कमी आयी अतः इसको पुनर्जीवित  किया गया   .

पहले, माहेश्वरी साड़ियाँ महेश्वर किले और मंदिरों पर उकेरी गई जटिलताओं से प्रेरित रूपांकनों के साथ बेहतरीन सूती धागों से बनाई जाती थीं। आज, साड़ी में उपयोग किए जाने वाले कपड़े कोयम्बटूर सूती और बैंगलोर रेशम धागों के मिश्रण का उपयोग करके बुना जाता है, जिसमें कुछ नए और अधिक सुंदर रूपांकनों जैसे रुई फूल (कपास का फूल), चमेली (चमेली), हंस (हंस) और हीरा ( इस पर हीरा) उभरा हुआ है। साड़ी एक प्रतिवर्ती बॉर्डर और पल्लू या आंचल पर अद्वितीय पांच धारियों के साथ आती है। फिर भी, बॉर्डर आमतौर पर ज़री के धागे से बनाया जाता है जो सूरत से प्राप्त होता है। बुनाई में उपयोग किए जाने वाले कुछ रंग हैं टैपकीर (गहरा भूरा), आमरस (सुनहरा पीला) और अंगूरी (अंगूर हरा)।

यह उद्योग  महेश्वर की अर्थव्यवस्था और आजीविका का प्रमुख साधन बना हुआ हैं, इसे महेश्वर के जोड़ने का पूरा श्रेय मातोश्री देवी अहिल्या को जाता हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में देश के दुसरे प्रान्तों से बुनकर और कारीगर बुलाकर यहाँ इस उद्योग की निंव रखी, महेश्वरी साड़ी को मंदिरों की शिल्पकला, बेल बूटे, फुल पत्ती, पान आदि के डिजाईन से बुना जाता हैं जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं कला का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करती हैं । यहाँ बुनाई का काम पारंपरिक और पुश्तैनी  रूप से प्रारंभ से ही क्षत्रिय, कोली, खंगार, गुजर, साली, मोमिन आदि के द्वारा किया जाता आया हैं जो आज भी इन्ही के जरिये अनवरत जारी हैं.80 के दसक तक यहाँ केवल “महाराष्ट्रियन पेटर्न” की साड़ीया बन रही थी जिसके कारण इनकी मांग सीमित थी इस समस्या की ओर यहाँ के वर्तमान महाराजा श्री शिवाजीराव होलकर एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमति शालिनी देवी का ध्यान गया और दोनों ने मिलकर महेश्वरी साड़ी के विकास के लिये किला परिसर में ही “रेवा सोसायटी” की स्थापना की. यहाँ पर बुनाई की बारीकियो और डीजाईन पर गंभीरता से काम किया गया. होलकर दंपत्ति का यह प्रयोग सफल रहा और जल्दी ही महेश्वरी साड़ी का वेरायटी से भरा विकसित रूप सामने आने लगा जो आज तक करीब 2000 हेन्डलूम (पुरे महेश्वर में अलग अलग जगहों पर संचालित) के माध्यम से जारी है. आज भी यहाँ “महाराष्ट्रियन पेटर्न” वाली पारम्परिक साड़ी बनायीं जाती है जिसे “इन्दुरी साड़ी” के नाम से जाना जाता है नई डीजाईन की जो साड़ीया बन रही है उनमे सामिल है :-
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1. 50%सिल्क और 50% काटन साड़ी
2. 75%सिल्क और 25% काटन साड़ी
3. 100%सिल्क साड़ी
4. काटन बूटीदार साड़ी
5. सिल्क और मर्सरायिज्ड काटन साड़ी
6. सिल्क जरी व मर्सरायिज्ड टिशु काटन साड़ी
7. रेशम बार्डर साड़ी
महेश्वरी साड़ीया 6.20 मीटर की होती है जिनमे ब्लाउज पीस भी होता है 500 से 3000 रुपये की रेंज में यहाँ एक ही डीजाईन की 20-25 रंगों में बुनी साड़िया मिल जाती है जो सुन्दर, मनमोहक और पक्के रंगों वाली होती है.

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