कर्नाटक में किसी की न चली…बस मतदाता ही बली…

514

कर्नाटक में किसी की न चली…बस मतदाता ही बली…

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम ने साफ कर दिया है कि मतदाता ही सबसे बलवान है। मतदाता जो ठान लेता है, वही अंतिम फैसला होता है। फिर मतदाता के आगे किसी की नहीं चलती। चाहे “द केरला स्टोरी” हो या “बजरंगबली”…इनसे मतदाताओं के मन को बदला नहीं जा सकता। कांग्रेस को कर्नाटक में मिलीं 136 सीटें इसका सबूत हैं। तो दूसरी तरफ 65 पर सिमटी भाजपा खुद ही यह बयां कर रही है कि मतदाताओं ने इस चुनाव में उसे खुलकर नकारा है। न तो जेडीएस को किंगमेकर बनने के लायक छोड़ा और न ही कांग्रेस के अलावा किसी भी दल को “किंग” बनने लायक रहने दिया। मानहानि के फैसले से आहत और लोकसभा की सदस्यता खोकर सरकारी मकान खाली करने को मजबूर हुए राहुल गांधी का कर्नाटक ने हौसला बढ़ाया है तो प्रियंका गांधी को भरोसा दिलाया है कि अब देश की राजनीति उनके स्वागत के लिए तैयार है। और मल्लिकार्जुन खड़गे को कर्नाटक ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बतौर शुभंकर के रूप में स्थापित कर दिया है। सोनिया गांधी को आश्ववस्त किया है कि परिवारवाद से भी रहे, पर देश में कांग्रेस आबाद रहेगी। वहीं मतदाता ने यह प्रमाण दिया है कि वह कभी गुमराह नहीं होता। भले ही भरोसा जताकर पांच साल कुछ ही पाता हो और बहुत कुछ खोता हो। पर अंतिम बाजी मतदाता के पाले में ही आती है और तब वह यह अहसास करा ही देता है कि लोकतंत्र में मतदाता ही दाता है और वह सत्ता का सिंहासन उसी को सौंपता है, जो उसके तर्कों की कसौटी पर खरा उतरने की संभावना से भरा हो। और सत्ता में बैठे हुए को नकारना भी मतदाता को बखूबी आता है।

कर्नाटक के विधानसभा चुनाव परिणाम से खुश कांग्रेस को भी मतदाताओं ने खुलकर आइना दिखाया है। हर चुनाव में “ईवीएम” पर रोना रोने वाली कांग्रेस को खुली सीख मिली है कि यदि हिम्मत है तो अब “ईवीएम” के परिणामों को नकार दो। और फिर यह बयान दे दो कि कर्नाटक में भाजपा की हार के लिए “ईवीएम” जिम्मेदार है। तो “ईवीएम” सोनिया, राहुल, प्रियंका और मल्लिकार्जुन सहित कांग्रेस को यह चुनौती दे रही है कि कर्नाटक चुनाव परिणामों से संतुष्ट हो तो फिर कम से कम आगे होने वाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में “ईवीएम” राग अलापने का दुस्साहस न करना। अब तो हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक लगातार दूसरा राज्य है, जहां “ईवीएम” ने कांग्रेस को सिंहासन पर बिठाया है। और छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बैठे कांग्रेस के मुख्यमंत्री कर्नाटक की जीत पर भाजपा को आइना दिखाने की कोशिश कर पा रहे हैं। कर्नाटक के चुनाव ने यह भी साफ किया है कि भ्रष्टाचार, महंगाई जैसे मुद्दों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। सत्ता में बैठे दल के विधायकों-सांसदों को कभी भी यह सोचने की भूल नहीं करना चाहिए कि उनकी करनी मतदाताओं से छिपी है और कथनी पर मतदाता मौन बना रहेगा। मतदाता हर पल जनप्रतिनिधियों का रिपोर्ट कार्ड भरता रहता है और मतदान के दिन उसके आधार पर ही आकलन कर अपना फैसला सुना देता है।

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा का यह बयान हास्यास्पद ही है कि हार-जीत भाजपा के लिए बड़ी बात नहीं है। दो सीट से शुरुआत कर भाजपा आज सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। हां यह बात ठीक है कि कार्यकर्ताओं को दुखी होने की जरूरत नहीं है। हम अपनी हार पर पुनर्विचार करेंगे। हालांकि भाजपा नेता और राज्य के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने ठीक ही कहा, “हम मंज़िल तक नहीं पहुंच पाए…”। उनका यह भरोसा भी ठीक है कि हार के कारणों का आकलन कर हम संसदीय चुनावों में वापसी करेंगे। तो अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष डॉ प्रवीण तोगड़िया ने भोपाल में कर्नाटक चुनाव परिणाम पर कहा कि राम मंदिर बन रहा है, बजरंगबली का नाद गूंज रहा है और भाजपा जीत नहीं रही है। यह बीजेपी के लिए वेक अप कॉल है। बजरंग बली भी बचा नहीं पाए, मंदिर भी बचा नहीं पाया यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। लोगों को महंगाई से निजात चाहिए,रोजगार चाहिए। एक करोड़ युवाओं को सरकारी रोजगार दो। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम कम करो। किसानों को फसल के एमएसपी पर उचित दाम दो। आगे उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए सुझाव देते हुए कहा कि मैं 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी को सुझाव दे रहा हूं। बजरंग बली का नाम लिए बिना भी वोट मिल जाएंगे। 2024 में क्या होगा देश की जनता देखेगी। तोगड़िया की बात काबिले गौर है और भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं को इन्हें गंभीरता से लेना भी चाहिए।

हालांकि कर्नाटक की हार से भाजपा पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई है, यह बात कतई नहीं है। और यह बात भी सही नहीं है कि कर्नाटक के बाद आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कर्नाटकी परफार्मेंस पर ही खरी उतरेगी। मतदाता जागरूक है और विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में उसके फैसले अलग-अलग रहते हैं और आगे भी अलग-अलग ही रहेंगे। और अलग-अलग राज्य के मतदाता स्थानीय परिस्थितियों और मुद्दों पर राज्य के चुनावों में मतदान करते हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इसका उदाहरण है, जहां कांग्रेस लगातार सारे प्रयास करने के बाद भी लगभग शून्य की स्थिति में है। पर यह बात भी सही है कि भाजपा की यह कल्पना भी निराधार है कि देश “कांग्रेस मुक्त” होगा। लोकतांत्रिक भारत का मतदाता पूरी तरह से जागरूक है और “ईवीएम” पूरी तरह से दुरुस्त है… चुनाव चाहे लोकसभा का हो या विधानसभा का हो, चाहे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड का हो या पंजाब, कर्नाटक का। कर्नाटक में किसी की न चली…बस मतदाता ही बली…यह बात सभी राज्यों और देश के चुनाव पर भी समान रूप से लागू होती है। और मतदाता मन के मुताबिक ही अलग-अलग चुनावों में अपना फैसला सुनाता है।